Vishwakhabram: Iran और Pakistan क्यों हुए एक दूसरे के खून के प्यासे? क्या है दोनों के बीच संघर्ष का पुराना इतिहास?

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देखा जाये तो ईरानी हमले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व थी क्योंकि पाकिस्तान में ईरान की ओर से किया गया यह पहला हवाई हमला था। वैसे दोनों देशों के बीच अविश्वास का पुराना इतिहास है जिसने 2012 में जैश अल-अदल के उद्भव के साथ एक खतरनाक मोड़ ले लिया था।

ईरान ने पाकिस्तान पर मिसाइल और ड्रोन हमला कर आतंकवादियों के ठिकानों का ध्वस्त करने का दावा किया तो पलटवार में पाकिस्तान ने भी ईरान पर जवाबी हमला कर आतंकवादियों के ठिकानों को ध्वस्त करने का दावा किया। इस वार और पलटवार से दुनिया हैरान है क्योंकि जहां देखों वहीं जंग छिड़ती चली जा रही है। रूस-यूक्रेन दो साल से लड़ रहे हैं, इजराइल और हमास गत अक्टूबर महीने से आपस में भिड़े हुए हैं। उधर लाल सागर में आतंक फैला रहे हूतियों के खिलाफ अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने कार्रवाई करते हुए यमन में हमला बोल रखा है। ऐसे में अब पाकिस्तान और ईरान जिस तरह आपस में भिड़ रहे हैं उससे प्रश्न खड़ा होता है कि क्या दुनिया को एक और युद्ध देखने को मिलेगा? वैसे ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान और ईरान पहली बार भिड़े हैं। दरअसल इन दोनों ही देशों के बीच संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है। आज जिस आतंकी संगठन जैश अल-अदल पर आरोप लगाते हुए ईरान ने हमला किया है वह कैसे खड़ा हुआ और उसका अतीत क्या है यह समझने के लिए इतिहास की कुछ घटनाओं को जानना जरूरी है।

हम आपको बता दें कि सब्ज़ कोह एक सीमावर्ती शहर है जोकि जैश अल-अदल के पूर्व सेकेंड-इन-कमांड मुल्ला हाशिम का गृहनगर है। मुल्ला हाशिम चरमपंथी समूह जुनदुल्लाह [भगवान के सैनिक] का उत्तराधिकारी है। इस समूह ने हाल के वर्षों में दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिएस्तान-ओ-बलूचिस्तान में ईरानी सुरक्षा बलों पर कई हमले किए हैं। हम आपको बता दें कि मुल्ला हाशिम को 2018 में ईरान की सीमा से लगे सरावन में ईरानी सुरक्षा बलों ने मार डाला था। सब्ज़ कोह में जहां ईरान ने हवाई हमले किए, वहां शोर और हंगामे के आधार पर निवासियों को शुरू में संदेह हुआ कि पाकिस्तान के सुरक्षा बल कोई ऑपरेशन कर रहे होंगे। बाद में उन्हें विदेश में रिश्तेदारों से पता चला कि यह ईरान द्वारा किया गया हमला था। हम आपको बता दें कि इस छोटे से सुदूर गांव में मुख्य रूप से वे लोग रहते हैं जो कई साल पहले पड़ोसी देश से आकर बस गए थे। पंजगुर के निवासी शिर अहमद शिरान नारौई के अनुसार, लगभग 50 परिवार यहां स्थायी रूप से रहते हैं।

देखा जाये तो इस हमले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व थी क्योंकि पाकिस्तान में ईरान की ओर से किया गया यह पहला हवाई हमला था। वैसे दोनों देशों के बीच अविश्वास का पुराना इतिहास है जिसने 2012 में जैश अल-अदल के उद्भव के साथ एक खतरनाक मोड़ ले लिया था। हम आपको बता दें कि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से बलूचों के प्रति तेहरान के कठोर व्यवहार ने सिस्तान-ओ-बलूचिस्तान में सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया है। बताया जाता है कि ईरान से जातीय बलूच बलूचिस्तान और कराची चले गए थे और ईरान के शाह के खिलाफ गतिविधियों में शामिल हो गए। समय के साथ यह लोग अधिक धार्मिक हो गए और कट्टरपंथी भी बन गये। यही कारण है कि ईरान के राजा मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी ने बलूच विद्रोह के पूर्वी ईरान में फैलने के डर से 1973 से 1977 तक पाकिस्तान में बलूच घुसपैठ के दौरान इस्लामाबाद की सहायता के लिए ईरानी पायलटों के साथ 30 कोबरा गनशिप भेजे थे।

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बताया जाता है कि आतंकवादी समूह, सिपाह-ए-रसूल अल्लाह, 1990 के दशक में एक ईरानी बलूच मौलूक बक्स दरख्शां के तहत उभरा। यह समूह बलूचिस्तान के केच जिले से ईरान के सिस्तान-ओ-बलूचिस्तान में सीमा पार घुसपैठ करने वाला पहला समूह था। मौलूक को पाकिस्तान में शिया-विरोधी समूहों से समर्थन मिला, जिसने उसके प्रयासों को 'जिहाद' के रूप में परिभाषित करके, ईरान के खिलाफ बलूच प्रतिरोध के धार्मिक आयाम को महत्वपूर्ण आकार दिया था। सिपाह-ए-रसूल अल्लाह की स्थापना के अलावा, उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में कुलाहू परिसर में सुन्नी जिहादियों के लिए एक शिविर स्थापित किया। 2006 में मौलूक की मृत्यु के बाद उसके भाई मुल्ला उमर ईरानी को सिपाह-ए-रसूल अल्लाह और परिसर का नेतृत्व संभालना पड़ा। ईरान द्वारा मारे गए अपने भाई का बदला लेने की इच्छा से प्रेरित होकर मुल्ला उमर ईरानी ने संघर्ष जारी रखा। ईरान सीमा से 45 मील (72 किमी) पूर्व में स्थित केच के कुलाहू में उमर का परिसर 25 नवंबर, 2013 को पहले ईरानी मिसाइल हमले का लक्ष्य था। बाद में ईरान के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए मुल्ला उमर ईरानी ने अपने सिपह-ए-रसूल अल्लाह को जुनदुल्लाह के साथ मिला दिया, जिसका नेतृत्व अब्दुल मलिक रिगी नामक युवक कर रहा था, जो मौलूक के प्रभाव में बड़ा हुआ था।

हम आपको बता दें कि दक्षिण-पूर्व ईरान के गरीब क्षेत्र में बलूच अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए 2002 में स्थापित जुनदुल्लाह को दिसंबर 2005 में सिएस्तान-ओ-बलूचिस्तान प्रांत में तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के काफिले पर एक असफल हमले के बाद प्रसिद्धि मिली थी। इसके बाद 16 मार्च 2006 को पुलिस और सैन्य कर्मियों के वेश में जुनदुल्लाह आतंकवादियों ने ज़ाहेदान और ज़ाबोल के बीच एक चौकी स्थापित की। उन्होंने 22 यात्रियों को उतार दिया और उनकी हत्या कर दी। इस चौंकाने वाली घटना ने ईरान को पाकिस्तानी अधिकारियों के सामने जुनदुल्लाह की गतिविधियों को उठाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद 14 जून 2008 को पाकिस्तान सरकार ने दोनों देशों के बीच विश्वास बनाने के प्रयास में अब्दुल मलिक रिगी के भाई अब्दुल हामिद को सौंप दिया, जिसे कुछ महीने पहले केच जिले के बुलेदा और तुरबत क्षेत्रों से गिरफ्तार किया गया था। अब्दुल हामिद को 24 मई 2010 को सिस्तान-ओ-बलूचिस्तान की राजधानी ज़ाहेदान में फाँसी दे दी गई। हालांकि पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा रिगी के भाई की गिरफ्तारी और उसे सौंपे जाने से जुनदुल्लाह पर कोई असर नहीं पड़ा। अक्टूबर 2009 में इस आतंकी समूह ने पाकिस्तान के साथ ईरान की सीमा के पास पिशिन में एक घातक बमबारी की, जिसमें ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के छह कमांडरों सहित 43 लोग मारे गए। इसके बाद पहली बार ईरान ने खुले तौर पर जुनदुल्लाह और अब्दुल मलिक रिगी का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान और पश्चिम को दोषी ठहराया।

फरवरी 2010 में तेहरान ने अब्दुल मलिक रिगी को सफलतापूर्वक पकड़ लिया जब वह दुबई से किर्गिस्तान की उड़ान पर था। उसे उसी वर्ष जून में फाँसी दे दी गई थी। इसके बाद जुनदुल्लाह ने फरवरी 2010 से 2011 तक अल-हज मोहम्मद धाहिर बलूच के नेतृत्व में अपनी गतिविधियाँ जारी रखीं। धाहिर के तहत, इस आतंकी समूह ने जुलाई 2010 में हुए बम विस्फोटों की जिम्मेदारी ली, जिसमें सिस्तान-ओ-बलूचिस्तान में स्थित ईरान के ज़ाहेदान की एक मस्जिद में शिया समुदाय के 20 से अधिक सदस्य मारे गए थे। इसी तरह के हमलों ने दिसंबर 2010 और अक्टूबर 2012 में चाबहार में कई शिया मुसलमानों को निशाना बनाया। हालांकि समय के साथ, जुनदुल्लाह ने अपनी ताकत में गिरावट का अनुभव किया। उसी समय, तुर्बत स्थित मुल्ला उमर ईरानी ने समान विचारधारा वाले लोगों के साथ मिलकर 2012 में जैश अल-अदल की नींव रखी, जो अब पाकिस्तान और ईरान के बीच अविश्वास का स्रोत बन गया है।

जैश अल-अदल को न्याय की सेना के रूप में भी जाना जाता है। इसकी स्थापना 2012 में पाकिस्तान और ईरान के सीमावर्ती क्षेत्रों में की गई थी। हालाँकि इसका नेतृत्व काफी हद तक अज्ञात है, लेकिन यह व्यापक रूप से माना जाता है कि मुल्ला उमर ईरानी इसके प्रमुख संस्थापकों में से एक था। अक्टूबर 2013 में सरवन में सड़क किनारे बम विस्फोट में 13 रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के मारे जाने के बाद यह समूह सुर्खियों में आया था। हम आपको बता दें कि अक्टूबर 2013 के हमले के जवाब में ईरान ने पहली बार केच में मुल्ला उमर ईरानी के परिसर कुलाहू पर एक घातक मिसाइल दागी। मुल्ला उमर बच गया, हालाँकि उसका घर और बगल की मस्जिद क्षतिग्रस्त हो गई।

हिंसा का दौर जारी रहा। फरवरी 2014 में जैश अल-अदल ने चार ईरानी सैनिकों का अपहरण कर लिया और कथित तौर पर उन्हें पाकिस्तान में ले आया, जिसके बाद ईरान ने सीमा पार घुसपैठ को नियंत्रित करने में पाकिस्तान की विफलता के आरोप लगाए। ईरान ने सैनिकों को रिहा नहीं करने पर पाकिस्तान में सेना भेजने की धमकी दी। सैनिकों को अंततः उसी वर्ष अप्रैल में रिहा कर दिया गया। इसके बाद अक्टूबर 2014 में जैश अल-अदल के एक असफल हमले में सरवन में ईरानी सुरक्षा बलों के चार सदस्यों की मौत हो गई। इस बार, सरवन के ब्रिगेडियर जनरल हुसैन सलामी ने जैश अल-अदल पर लगाम लगाने में विफल रहने पर पाकिस्तान में सेना भेजने की धमकी दी। मार्च 2016 तक स्थिति और भी गंभीर हो गई थी। ईरानी सीमा के पास बलूचिस्तान के मशकेल इलाके में एक सेवानिवृत्त भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान ने ईरान पर पाकिस्तान में विद्रोह में शामिल बलूच अलगाववादियों को आश्रय देने का भी आरोप लगाया था।

तनाव तब और बढ़ गया जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2016 में अपनी ईरान यात्रा के दौरान चाबहार बंदरगाह के निर्माण और संचालन की योजना की घोषणा की। ईरान ने ग्वादर को अपने चाबहार बंदरगाह के प्रतिस्पर्धी के रूप में देखना शुरू कर दिया। आरोप-प्रत्यारोप का खेल और बढ़ गया और ईरान ने पाकिस्तान के सीमावर्ती शहरों में रॉकेट दागे। जुलाई 2017 में, ईरान ने पंजगुर में रॉकेटों की बौछार की। इसके बाद जून 2017 में विदेश कार्यालय ने पहली बार पुष्टि की कि पाकिस्तान वायु सेना ने पाकिस्तान के पंजगुर क्षेत्र में उड़ रहे एक ईरानी ड्रोन को मार गिराया था। जुलाई 2019 में पाकिस्तानी बलों ने चगाई में एक ईरानी जासूसी ड्रोन को जब्त कर लिया, जिससे आरोप-प्रत्यारोप का खेल और बढ़ गया। तनाव के बावजूद, पाकिस्तान ने स्थिति को बढ़ाने से परहेज किया; बल्कि कूटनीतिक तरीके से स्थिति को शांत करने का प्रयास किया गया।

इसके अलावा, 2020 में नवंबर की शाम को ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ के इस्लामाबाद दौरे के ठीक दो दिन बाद, तुरबत पुलिस ने कथित तौर पर ईरान के सर्वाधिक वांछित आतंकवादी नेता मुल्ला उमर ईरानी और उसके दो बेटों की कथित मुठभेड़ में गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस के मुताबिक, मुल्ला ईरानी तुर्बत के पॉश सैटेलाइट टाउन में छिपा हुआ था। लेकिन आरोप-प्रत्यारोप का यह खेल अब एकतरफा नहीं रह गया है। जनवरी, अप्रैल और जून 2023 में पाकिस्तान ने बलूच अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तान में किए गए तीन हमलों के पीछे ईरान पर आरोप लगाया। अप्रैल 2019 में तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ईरान पर बलूच अलगाववादी समूहों के एक छत्र संगठन राजी आजोई संगर (बीआरएएस) को आधार प्रदान करने का आरोप लगाया, जिसने बलूचिस्तान में एक बस पर हमला किया, जिसमें 14 यात्रियों की मौत हो गई थी। इसके बाद इस सप्ताह ईरान द्वारा पाकिस्तान में की गयी कार्रवाई अभूतपूर्व थी और पिछले हमलों की तुलना में अधिक घातक थी। हम आपको बता दें कि यह हमला दिसंबर में जैश अल-अदल द्वारा ईरानी शहर रस्क पर किए गए हमलों के कारण हुआ था, जिसमें 11 ईरानी सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। 

बहरहाल, ऐसा नहीं है कि ईरान और पाकिस्तान सिर्फ आतंकी संगठनों के कारण ही आपस में भिड़े हैं। देखा जाये तो ग्वादर और चाबहार के कारण दोनों देशों के आर्थिक हित प्रभावित हो रहे हैं। इसके अलावा खाड़ी देशों तथा अमेरिका के साथ पाकिस्तान के बढ़ते सहयोग ने भी ईरान को उकसा दिया है। देखना होगा कि दोनों देशों के बीच क्या कूटनीतिक वार्ता के जरिये शांति स्थापित हो पाती है या क्षेत्र में एक नये युद्ध का आगाज़ होता है।

-नीरज कुमार दुबे

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