Tulsi Pujan Diwas: एक बार तुलसी जी भगवान विष्णु से दूर चली गईं, तो कैसे श्रीहरि ने उन्हें मनाया

Tulsi Pujan Diwas
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हिंदू परंपरा में तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है और लगभग हर घर में उनका स्थान पूजनीय होता है। मान्यता है कि तुलसी माता भगवान नारायण को अत्यंत प्रिय हैं, इसी कारण उन्हें अत्यंत पवित्र माना गया है। जब भगवान श्रीहरि ने तुलसी को स्वीकार किया, तब उनके साथ और देवी लक्ष्मी के संग दिव्य आनंद का वातावरण बना, जिससे तुलसी का महत्व और भी बढ़ गया।

सनातन धर्म में तुलसी मां की पूजा हर घर में होती है। श्री विष्णु को तुलसी अति प्रिय हैं। जब भगवान विष्णु ने तुलसी को अपना लिया तो तुलसी को पाकर और लक्ष्मी के साथ आनंद सहित रहने लगे। श्री विष्णु ने तुलसी को गौरव और सौभाग्य में लक्ष्मी के समान बना दिया लक्ष्मी ने तो तुलसी के भाग्य और गौरव को सह लिया, किंतु सरस्वती यह सब सहन न कर सकीं। सरस्वती के द्वारा अपना अपमान होने से तुलसी अंतर्धान हो गईं। भगवान ने उसे न देखकर सरस्वती को समझाया और उनसे आज्ञा लेकर भगवान विष्णु तुलसीवन में गए। तुलसी की स्तुति की।

भगवान ने ऐसे की तुलसी की पूजा

तुलसी के लिए घी का दीपक जलाया, धूप, सिंदूर, चंदन, नैवेद्य और पुष्प आदि उपचारों से तथा स्तोत्र द्वारा पूजा की, इसके अलावा उनका बीज मंत्रों से पूजा की और कहां कि जो भी मां तुलसी के बीज मंत्रों को अच्छे से सुनेंगे और बोलेंगे, वे सभी प्रकार की सिद्धियां पा लेगा। इस प्रकार से तुलसी को प्रसन्न हुई। अतः वह वृक्ष से तुरंत बाहर निकल आईं और परम प्रसन्न होकर भगवान श्री हरि के चरणकमलों की शरण में चली गईं। तब भगवान ने उसे वर दिया- हे देवी! तुम सर्वपूज्या हो जाओ। मैं स्वयं तुम्हें अपने मस्तक तथा वक्षः स्थल पर धारण करुंगा। संपूर्ण देवता तुम्हें अपने मस्तक पर धारण करेंगे। इतना कहकर भगवान श्री हरि मां तुलसी के अपने साथ लेकर अपने स्थान पर लौट गए। 

धार्मिक मान्यता है कि मां तुलसी की श्रद्धाभाव से पूजा करने से संपूर्ण पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक में चला जाता है। भगवान विष्णु की पूजा भी तुलसी के बिना अधूरी है। माना जाता है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करने से, दस हजार गोदान का फल निश्चित रुप से प्राप्त होता है। तुलसी जी के बिना श्रीहरि भोग स्वीकार नहीं करते हैं। तुलसी की माला पहनने वालों का भी कल्याण होता है।

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