Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा इस विधि से करें, जानें घटस्थापना का मुहूर्त, पढ़ें आरती और कथा
चैत्र नवरात्रि देवी दुर्गा के नौ रूपों का उत्सव मनाती है। यह 9 से 17 अप्रैल तक मनाया जाएगा। महत्वपूर्ण तिथियों और समय में 9 अप्रैल को घटस्थापना, 16 अप्रैल को अष्टमी, 17 अप्रैल को पारण और नवमी शामिल हैं। मां शैलपुत्री की पूजा इस विधि से करें, जानें घटस्थापना का मुहूर्त, पढ़ें आरती और कथा।
आज यानी 09 अप्रैल 2024 को चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो चुका है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना की जाती है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा उपासना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि इस तरह से करें, कलश स्थापना, आरती, भोग और मंत्र जानें सब कुछ।
कलश स्थापना का मुहूर्त
कलश स्थापना का मुहूर्त 11 बजकर 57 से लेकर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। क्योंकि यह अभिजीत मुहूर्त है। इस के अलावा इस समय वैघृत योग और अश्विनी नक्षत्र का संयोग भी रहेगा।
मां शैलपुत्री का भोग
मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अधिक पसंद हैं। मां को भोग में सफेद मिष्ठान और घी अर्पित करें। मान्यता के अनुसार मां शैलपुत्री की पूजा करने से और ये भोग लगाने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
मां शैलपुत्री के प्रभावशाली मंत्र
-ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
- वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
- या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां शैलपुत्री पूजा विधि
- सबसे पहले पूजा और घटस्थापना करें।
- मां की पूजा करें।
- मां शैलपुत्री को अक्षत, सफेद फूल, धूप, दीप, फल और मिठाई अर्पित करें।
- पूजा के दौरान ऊपर दिए गए मांत्रो का उच्चारण करें।
- पूजा के बाद मां शैलपुत्री की घी के दीपक से आरती करें।
- देवी मां को दूध से बनी हुई मिठाई का भोग लगाएं।
मां शैलपुत्री की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति,
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी,
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू,
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी,
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती,
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै,
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥
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