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धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरी और यम की पूजा का महत्व
- विंध्यवासिनी सिंह
- नवंबर 10, 2020 14:13
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धनतेरस के दिन सोने, चांदी, पीतल के बर्तन खरीदने की परंपरा भी रही है। कहा जाता है कि भगवान धनवंतरी अपने हाथ में कलश लेकर अवतरित हुए थे, इसलिए आज के दिन बर्तनों की खरीदारी की जाए तो भगवान धन्वंतरी प्रसन्न होते हैं और साल भर आपके घर में कृपा बरसती रहती है।
हिंदुओं के सबसे बड़े त्यौहार दीवाली से 2 दिन पूर्व पड़ने वाले धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। आज ही के दिन भगवान धन्वंतरि अवतरित हुए थे, इसीलिए धनतेरस को 'धन्वंतरी जयंती' के रूप में भी मनाया जाता है। दीवाली के पांच दिवसीय त्योहार की शुरुआत धनतेरस से ही हो जाती है जो कि भैया दूज को समाप्त होती है।
वहीं धनतेरस के दिन माँ लक्ष्मी के साथ ही यम देव की पूजा का भी विधान है। आज के दिन यम देवता की पूजा करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
भगवान धन्वंतरि की कथा
देवता और दानव मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे। तब कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ। भगवान धन्वंतरी चार भुजाओं के साथ प्रकट हुए और उनके हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश था। इसी अमृत कलश की वजह से देवताओं को अमरत्व की प्राप्ति हुई। भगवान धन्वंतरी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। संसार को आरोग्य दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने धनवंतरी के रूप में जन्म लिया था। भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं और इनकी पूजा से आरोग्य की कामना की जाती है।
धनतेरस की पूजा विधि
धनतेरस के दिन सबसे पहले घर की साफ -सफाई करके शुभ मुहूर्त में पूजा की शुरुआत करनी चाहिए। आज के दिन भगवान कुबेर जोकि धन- धान्य के देवता हैं, उनकी भी पूजा किये जाने का विधान है। आज के दिन 13 दिए जलाए जाते हैं और धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान धन्वंतरी, भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
धनतेरस के दिन सोने, चांदी, पीतल के बर्तन खरीदने की परंपरा भी रही है। कहा जाता है कि भगवान धनवंतरी अपने हाथ में कलश लेकर अवतरित हुए थे, इसलिए आज के दिन बर्तनों की खरीदारी की जाए तो भगवान धन्वंतरी प्रसन्न होते हैं और साल भर आपके घर में कृपा बरसती रहती है।
यम देव की कथा
शास्त्रों में धनतेरस के दिन यमराज यानी कि यम देव की पूजा का भी व्याख्यान मिलता है और इससे संबंधित एक कथा बहुत प्रचलित है, जिसमें एक राजा थे जिन्हें संतान नहीं प्राप्त हो रही थी। उन्होंने बहुत अधिक पूजा-पाठ और यज्ञ हवन के बाद संतान की प्राप्ति की। वहीं जब राजा को पुत्र प्राप्त हुआ तो ज्योतिषों ने बताया कि आपके पुत्र का यदि विवाह होगा तो विवाह के 4 दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। ज्योतिषों की बात सुनकर राजा बहुत चिंतित हुए और अपने पुत्र को एक ऐसे स्थान पर निवास करने के लिए भेज दिया जहां किसी भी महिला का आना जाना नहीं होता था।
लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जहां राजा का पुत्र निवास कर रहा था वहां से अचानक राजकुमारी गुजर रही थी। राजकुमारी को देखकर राजकुमार मोहित हो उठे और दोनों ने आपस में विवाह कर लिया। लेकिन विवाह के 4 दिन बाद ज्योतिष की भविष्यवाणी सच हुई और राजकुमार की मृत्यु हो गई। अपने पति के प्राणों को बचाने के लिए राजकुमारी ने बहुत विलाप किया और यमदूत से आग्रह किया कि उसके पति के प्राण को बख्श दें। तब यमराज ने उस राजकुमारी की दशा को देखकर उसे कहा कि धनतेरस के दिन जो भी प्राणी रात्रि के तीन पहर बीत जाने के बाद मेरा पूजन करेगा और दीया जला कर घर के दक्षिण दिशा में रखेगा तो उसके ऊपर से 'अकाल मृत्यु' का भय हट जाएगा। तभी से धनतेरस के दिन रात्रि के तीन पहर बीत जाने के बाद चौमुखी दिया घर के दक्षिण तरफ रखने की प्रथा चली आ रही है।
यम के दीए जलाने की विधि
धनतेरस की आधी रात बीत जाने के बाद यमराज की पूजा की जाती है और इस पूजा में चौमुखी दिए का प्रयोग किया जाता है। अगर आपके पास मिट्टी का चौमुखी दिया नहीं है, तो आप आटे का चौमुखी दिया बनाकर अपने मुख्य द्वार के दाएं तरफ रख दें। ध्यान रहे कि दिए की बाती का मुख दक्षिण की तरफ रहना चाहिए। वहीं दीपक के साथ रोली, चंदन, फूल, जल, चावल और नैवेद्य आदि से पूजा कर भगवान यमराज से अकाल मृत्यु ना हो, इसकी कामना की जाती है।
- विंध्यवासिनी सिंह
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- विंध्यवासिनी सिंह
- फरवरी 20, 2021 13:47
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अगर आपके ऊपर चंद्रमा की पीड़ा है, या चंद्रमा का कष्ट है, तो इस कष्ट को दूर करने के लिए आपको अपने घर के पास 'गूलर' का पौधा लगाना चाहिए। ऐसा करने से चंद्रमा के दुष्प्रभाव का असर आपके ऊपर कम हो जाता है।
प्राचीन समय से ही पेड़ पौधों की पूजा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है और आज भी हम किसी न किसी रूप में पेड़ पौधे की पूजा अवश्य ही करते हैं। वह चाहे पीपल हो, तुलसी हो, समी हो या फिर बरगद का ही पेड़ क्यों ना हो, हमारे लिए काफी महत्त्व रखते हैं।
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हमारे शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि हर मनुष्य को अपने जीवन काल में एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए। इतना ही नहीं, शास्त्र यह भी कहते हैं कि अगर किसी कारण वश कोई मनुष्य एक पेड़ काटता है, तो उसे 10 पेड़ लगाकर उनका पालन करने के उपरांत ही एक पेड़ काटने के पाप से मुक्ति मिल पाएगी। ऐसे में पेड़ लगाने की महत्ता कितनी है, इसे आप सहज ही समझ सकते हैं।
अगर आप भी पेड़ लगाने का विचार अपने मन में ला रहे हैं, तो वास्तु में इसके कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करते हुए अगर वृक्षारोपण किया जाए, तो इसका सकारात्मक असर हमारे जीवन में देखने को मिलता है।
आईये जानते हैं ...
पेड़ लगाने का सही समय
वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर आप पेड़ लगाने जा रहे हैं या बगीचे का निर्माण करने जा रहे हैं, तो इसके लिए आपको कुछ विशेष नक्षत्रों का इंतजार करना होगा। जिनमें स्वाति, उत्तरा, हस्त, रोहिणी और मूल नक्षत्र को सबसे सर्वोत्तम बताया गया है। अगर आप इन नक्षत्रों में पेड़ लगाते हैं तो यह पेड़ आपके जीवन में खुशहाली लेकर आएंगे।
पेड़ लगाते समय दिशा का ध्यान
अगर आप वृक्षारोपण करने जा रहे हैं, तो आपको यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि वह वृक्ष सही दिशा में लगें। अगर आपके घर में बगीचे के लिए जगह छोड़ी जा रही है, तो आप को ध्यान रखना चाहिए कि वह जगह वाम पार्श्व होना चाहिए। नेत्रत्व या अग्नि कोण में बगीचे का निर्माण करना अशुभ बताया जाता है और कहा जाता है कि इसका दुष्प्रभाव पूरे घर के ऊपर पड़ता है।
इसके साथ ही ध्यान देने वाली बात यह है कि घर के पूर्व दिशा में कभी भी बड़े और विशाल पेड़ पौधों को नहीं लगाना चाहिए। अगर भूलवश आपसे ऐसा हो गया है तो इस भूल के दुष्परिणाम को कम करने के लिए आपको घर के उत्तर दिशा में आंवला, हरश्रृंगार, तुलसी और अमलतास के पौधों का रोपण करना चाहिए।
वृक्ष फल नहीं दे रहे हों तो करें यह उपाय
अगर आपके घर के आस-पास फलदार वृक्ष लगे हुए हैं और वह फल नहीं दे रहे हैं, तो वास्तु शास्त्र के अनुसार इन पौधों या पेड़ों की जड़ों में मूंग, उड़द, कुलथी, तिल और जौ मिलाकर पानी तैयार करना चाहिए और इस पानी को वृक्षों की जड़ों में डालना चाहिए।
जमीन संबंधी परेशानी दूर करने के लिए
जिस जमीन पर आपका आवास बना हुआ है, उस पर यदि कोई दोष है, तो इस दोष को दूर करने के लिए आपको 'आंवले' का पौधा अपने आवास के आसपास ज़रूर लगाना चाहिए।
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चंद्रमा की पीड़ा को दूर करने के लिए
अगर आपके ऊपर चंद्रमा की पीड़ा है, या चंद्रमा का कष्ट है, तो इस कष्ट को दूर करने के लिए आपको अपने घर के पास 'गूलर' का पौधा लगाना चाहिए। ऐसा करने से चंद्रमा के दुष्प्रभाव का असर आपके ऊपर कम हो जाता है।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए
माता लक्ष्मी की कृपा आपके ऊपर बनी रहे, इसके लिए आपको अपने घर के पास बेल यानी कि बिल्व का पेड़ अवश्य लगाना चाहिए। कहा जाता है कि बेल के पेड़ पर माता लक्ष्मी का निवास होता है और घर के आस-पास इस पेड़ को अगर लगाया जाए, तो माँ लक्ष्मी आपसे प्रसन्न रहती हैं।
घर के आसपास इन पेड़ - पौधों को लगाने से बचें
- अगर आपके घर के आसपास केला, बेर और बाँझ अनार के वृक्ष हों तो आपके ऊपर इनका नकारात्मक असर पड़ता है। कहा जाता है कि इन तीनों वृक्षों की वजह से आपकी संतान के ऊपर हमेशा कष्ट बना रहता है।
- इसके अलावा कैक्टस के पौधों को भी कभी भी अपने आवासीय परिसर में नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने से आप हमेशा शत्रु बाधा से गिरे रह सकते हैं और आपके ऊपर धन हानि का योग भी बना रहेगा।
- अपने आवासीय परिसर में कभी भी कंचन, पलाश, अर्जुन के पेड़ नहीं लगाने चाहिए। इन पेड़ों से नकारात्मक शक्ति निकलती है और यह अशांति के कारक होते हैं।
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हालाँकि पेड़ -पौधे हमारे जीवन दाता हैं। इनसे मिलने वाली ऑक्सीजन से ही हम ज़िंदा रहते हैं, इसलिए अपने आसपास अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाएं। लेकिन वास्तु के इन नियमों का ध्यान अवश्य रखें।
विंध्यवासिनी सिंह
क्यों 'स्वाहा' बोले बिना नहीं मिलता है यज्ञ का फल
- विंध्यवासिनी सिंह
- फरवरी 2, 2021 16:16
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ऐसी ही एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि 'स्वाहा' राजा दक्ष की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ संपन्न कराया गया था। इसीलिए अग्नि में जब भी कोई चीज समर्पित करते हैं, तो बिना स्वाहा का नाम लिए जब वह चीज समर्पित की जाती है, तो अग्निदेव उसे स्वीकार नहीं करते हैं।
भारत शुरू से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यहां होने वाले धार्मिक क्रियाकलाप का आयोजन ऋषि परंपरा की ही देन है।
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पहले के समय में तमाम ऋषि -धर्मात्मा यज्ञ, हवन जैसे धार्मिक अनुष्ठान के द्वारा मानवता के कल्याण के उपाय करते ही रहते थे। आज भी हम अपने घर में जब भी कोई शुभ कार्य होता है, तो यज्ञ- हवन जरूर कराते हैं। कहते हैं कि कोई भी पूजा-पाठ बिना हवन के संपन्न नहीं होता है। वहीं जब भी आप अपने घर में या कहीं भी हवन होते हुए देखते होंगे तो आपने एक बात पर गौर जरूर किया होगा कि हवन कुंड में हवन सामग्री डालने के बाद 'स्वाहा' शब्द बोलना अनिवार्य बताया जाता है।
अगर आपको लगता है कि पंडित जी यूं ही 'स्वाहा' बोलने को कह रहे हैं, तो हम आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि किसी भी यज्ञ में अगर 'स्वाहा' बोले बगैर यज्ञ सामग्री डाली जाती है तो वह यज्ञ सामग्री देवताओं को प्राप्त नहीं होती है। और हमारा यज्ञ अधूरा रह जाता है।
आइये जानते हैं इसके पीछे का रहस्य...
हवन के समय 'स्वाहा' बोले के पीछे की प्राचीन कथा
हमारे धार्मिक ग्रंथों में 'स्वाहा' को लेकर तमाम तरह की किवदंती प्रचलित हैं।
ऐसी ही एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि 'स्वाहा' राजा दक्ष की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ संपन्न कराया गया था। इसीलिए अग्नि में जब भी कोई चीज समर्पित करते हैं, तो बिना स्वाहा का नाम लिए जब वह चीज समर्पित की जाती है, तो अग्निदेव उसे स्वीकार नहीं करते हैं।
ऐसे ही एक और कथा प्रचलित है, जिसमें कहा जाता है कि प्रकृति की एक कला के रूप में स्वाहा का जन्म हुआ था, और स्वाहा को भगवान कृष्ण से यह आशीर्वाद प्राप्त था कि देवताओं को ग्रहण करने वाली कोई भी सामग्री बिना स्वाहा को समर्पित किए देवताओं तक नहीं पहुंच पाएगी। यही वजह है कि जब भी हम अग्नि में कोई खाद्य वस्तु या पूजन की सामग्री समर्पित करते हैं, तो 'स्वाहा' का उच्चारण करना अनिवार्य होता है।
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ऐसी ही एक अन्य कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें यह बताया गया है कि एक बार देवताओं के पास अकाल पड़ गया और उनके पास खाने-पीने की चीजों की कमी पड़ने लग गई। इस विकट परिस्थिति से बचने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने यह उपाय निकाला कि धरती पर ब्राह्मणों द्वारा खाद्य-सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाए।
इसके लिए अग्निदेव का चुनाव किया गया, क्योंकि यह ऐसी चीज है जिसमें जाने के बाद कोई भी चीज पवित्र हो जाती है। हालांकि अग्निदेव की क्षमता उस समय भस्म करने की नहीं हुआ करती थी, इसीलिए स्वाहा की उत्पत्ति हुई और स्वाहा को आदेश दिया गया कि वह अग्निदेव के साथ रहें। इसके बाद जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित किया जाए तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक उस चीज को पहुंचा सके।
यही कारण है कि जब भी अग्नि में कोई चीज हवन करते हैं, तो 'स्वाहा' बोलकर इस विधि को संपूर्ण की जाती है, ताकि खाद्य पदार्थ या हवन की सामग्री देवताओं को सकुशल पहुंच सके।
तो ये हैं वह कारण, जिसके चलते हवन में डाली सामग्री के बाद 'स्वाहा' बोलना धार्मिक रूप से अनिवार्य होता है।
- विंध्यवासिनी सिंह
जीवन में आये संकट दूर करने हेतु पति-पत्नी करें भगवान बृहस्पति की पूजा
- विंध्यवासिनी सिंह
- जनवरी 23, 2021 18:11
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गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को भोग के रूप में भीगे हुए चने और मुनक्के चढ़ाने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं, और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश यानि कि 'त्रिदेव' में से भगवान विष्णु को सृष्टि के संचालन का कार्य सौंपा गया है। यही वजह है कि पृथ्वी पर आयोजित होने वाले किसी भी मांगलिक कार्य के लिए बृहस्पति देव, जो स्वयं विष्णु भगवान के एक रूप हैं, उनको याद किया जाता है। विशेष तौर पर शादी-विवाह जैसे बंधनों को मजबूत बनाने के लिए बृहस्पति देव की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
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शास्त्र हमें यह भी बताते हैं कि किसी के भाग्य में बृहस्पति का संयोग ठीक नहीं है, तो उसके वैवाहिक जीवन में क्या-क्या संकट आ सकते हैं। शास्त्रों में इस बात का भी वर्णन है कि अगर पति पत्नी संयुक्त रूप से भगवान बृहस्पति की पूजा करते हैं, तो निश्चय ही उनके जीवन पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है और उनका रिश्ता मधुर बना रहता है।
ऐसे में हम आज आपको भगवान बृहस्पति को प्रसन्न करने के कुछ ऐसे उपाय बताएंगे, जिससे दांपत्य जीवन में मधुरता बनी रहेगी और आपसी सामंजस्य बना रहेगा।
बिगड़े बृहस्पति का ऐसा होता है आपके जीवन पर असर
अगर आपके भाग्य में बृहस्पति शुभ नहीं है या वृहस्पति ग्रह टेढ़ा है तो इसका सीधा असर आपके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है और आपके वैवाहिक जीवन में खलल पढ़ना प्रारंभ हो जाता है।
इतना ही नहीं, अगर आप शादीशुदा नहीं हैं और आपके भाग्य में बृहस्पति बाधित है, तो इसका असर यह होता है कि आपका विवाह संपन्न होने में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं।
वहीं महिलाओं के संदर्भ में कहा जाता है कि अगर उनके भाग्य में बृहस्पति कमजोर है तो उनका चरित्र खराब होने की संभावना बनी रहती है।
दांपत्य जीवन खुशहाल बनाने के लिए ऐसे करें बृहस्पति भगवान की पूजा
अगर आप पति पत्नी हैं और आपके रिश्ते में उठापटक जारी है यानी कि पति पत्नी के बीच किसी भी बात को लेकर मनमुटाव चल रहा है तो ऐसे में आपको भगवान बृहस्पति की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके रिश्ते का गतिरोध समाप्त होगा और आप आनंद पूर्वक गृहस्थ जीवन का सुख भोग सकेंगे।
इसके लिए आप गुरुवार के दिन, अपने पूजा वाले स्थान पर बृहस्पति भगवान के लिए आसन लगाएं। इसके लिए आपको पीले कपड़े का आसन बिछाना होगा और उस पर भगवान बृहस्पति यानी कि लक्ष्मी और विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित कर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करना होगा।
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भगवान बृहस्पति की पूजा में यह बेहद आवश्यक है कि पति और पत्नी दोनों सम्मिलित हों और खुशी मन से भगवान की आराधना करें।
पूजा के दौरान पति पत्नी को पीले रंग के वस्त्र पहनना बहुत आवश्यक है। पीले रंग के वस्त्र पहनने से भगवान प्रसन्न होते हैं।
वृहस्पति भगवान की पूजा के दौरान सुहागन औरत को सुहाग की प्रतीक चुनरी अपने सर पर ओढ़ना चाहिए, तो वहीं पति को कोई कपड़ा अपने कंधे पर अवश्य रखना चाहिए।
वृहस्पति भगवान की पूजा के दौरान देसी घी का दीपक जलाना भी बहुत शुभ होता है। जहां तक संभव हो इस दिए में केसर का एक धागा अवश्य डालें।
अगर पति पत्नी के बीच अत्यधिक विवाद होते हैं, तो पूजा के दौरान लाल रंग के धागे या मौली को भगवान के सामने अर्पित करें और इस मौली को दोनों पति पत्नी अपने दाहिने कलाई पर बांध लें, इससे दोनों के बीच मनमुटाव कम होंगे और रिश्ते मधुर बनेंगे।
अगर पति पत्नी के बीच में कटुता एक सीमा से भी ज्यादा बढ़ गई है, तो आपको लगातार 11, 21 या 51 गुरुवार का व्रत रखकर भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहिए, जिससे आपके रिश्ते सामान्य हो सकें।
गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को भोग के रूप में भीगे हुए चने और मुनक्के चढ़ाने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं, और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं।
बृहस्पतिवार के दिन अगर ब्राम्हण को पीले रंग का अन्न, दान के रूप में दिया जाए, तो भी यह बेहद कारगर माना जाता है दाम्पत्य की स्थिरता बनाये रखने में।
इन उपायों को अपना कर आप अपना बिगड़ा हुआ बृहस्पति सुधार सकते हैं और सुखद वैवाहिक जीवन का आनंद ले सकते हैं।
- विंध्यवासिनी सिंह

