राजनीति छोड़ना चाहते थे वाजपेयी, मगर राजनीति उन्हें नहीं छोड़ती थी

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[email protected] । Aug 16 2019 12:52PM

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था, ‘‘कविता वातावरण चाहती है, कविता एकाग्रता चाहती है, कविता आत्माभिव्यक्ति का नाम है और वो आत्माभिव्यक्ति शोर-शराबे में नहीं हो सकती।’’

अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे करिश्माई राजनेता थे जिन्होंने राजनीति में तो बुलंदियों को छुआ ही, साथ ही अपने ‘कवि मन’ से उन्होंने साथी नेताओं और आम जनता दोनों के दिलों पर राज किया। दिवंगत नेता वाजपेयी का कवि मन अक्सर उनकी कविताओं के जरिए प्रदर्शित होता था।

वाजपेयी जब संसद को संबोधित करते थे तो न सिर्फ उनके सहयोगी दल बल्कि विपक्षी पार्टियों के नेता भी उनकी वाक्पटुता की प्रशंसा से खुद को रोक नहीं पाते थे। जब वह रैलियों को संबोधित करते थे तो उन्हें देखने-सुनने आई भीड़ की तालियों की गड़गड़ाहट आसमान में गुंजायमान होती थी। लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 93 वर्ष की आयु में वाजपेयी का निधन हुआ।

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पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपनी कविता ‘अपने ही मन से कुछ बोलें’ में मानव शरीर की नश्वरता के बारे में लिखा है।

इस कविता के एक छंद में उन्होंने लिखा है--

‘‘पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,

जीवन एक अनंत कहानी

पर तन की अपनी सीमाएं

यद्यपि सौ शरदों की वाणी,

इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें।'

वाजपेयी ने एक बार अपने भाषण में यह भी कहा था, ‘‘मनुष्य सौ साल जिये ये आशीर्वाद है, लेकिन तन की सीमा है।’’ साल 1924 में ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी की अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी। बहरहाल, जब वह हिंदी में बोलते थे तो उनकी वाक्पटुता कहीं ज्यादा निखर कर आती थी। अपने संबोधन में वह अक्सर हास्य का पुट डालते थे जिससे उनके आलोचक भी उनकी प्रशंसा से खुद को रोक नहीं पाते थे।

काफी अनुभवी नेता रहे वाजपेयी कोई संदेश देने के लिए शब्दों का चुनाव काफी सावधानी से करते थे। वह किसी पर कटाक्ष भी गरिमा के साथ ही करते थे। वाजपेयी के भाषण इतने प्रखर और सधे हुए होते थे कि उन्होंने इसके जरिए अपने कई प्रशंसक बना लिए। उन्हें ‘शब्दों का जादूगर’ भी कहा जाता था। भाजपा नेता वाजपेयी के ज्यादातर भाषणों में देश के लिए उनका प्रेम और लोकतंत्र में उनका अगाध विश्वास झलकता था। उनके संबोधनों में भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने की ‘दृष्टि’ भी नजर आती थी।

संसद में मई 1996 में अपने संबोधन में वाजपेयी ने कहा था, ‘‘....सत्ता का तो खेल चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।’’

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वाजपेयी की कई रचनाएं प्रकाशित हुईं जिनमें ‘कैदी कविराय की कुंडलियां’ (आपातकाल के दौरान जेल में लिखी गई कविताओं का संग्रह), ‘अमर आग है’ (कविता संग्रह) और ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ भी शामिल हैं। 

उन्हें अक्सर ऐसा महसूस होता था कि राजनीति उन्हें कविताएं लिखने का समय नहीं देती। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने एक बार कहा था, ‘‘...लेकिन राजनीति के रेगिस्तान में ये कविता की धारा सूख गई।’’ 

वाजपेयी को नई कविताएं लिखने का समय नहीं मिल पाता था, लेकिन वह अपने भाषणों में कविताओं के अंश डालकर इसकी कमी पूरी करने की कोशिश करते थे। एक सार्वजनिक संबोधन में उन्होंने ‘आजादी’ के विचार पर अपने करिश्माई अंदाज में बोला था और इसके लिए खतरा पैदा करने वालों पर बरसे थे। वाजपेयी ने कहा था, ‘‘...इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो कि चिंगारी का खेल बुरा होता है; औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खड़ा होता है।’’ ।

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रूमानी अंदाज वाले वाजपेयी ज्यादातर धोती-कुर्ता और बंडी पहना करते थे, खाली समय में कविता लिखते थे, खानपान के शौकीन थे और राजनीति में सक्रियता के दौरान अनुकूल माहौल नहीं मिल पाने के बारे में खुलकर बोलते थे।

एक बार उन्होंने कहा था, ‘‘कविता वातावरण चाहती है, कविता एकाग्रता चाहती है, कविता आत्माभिव्यक्ति का नाम है और वो आत्माभिव्यक्ति शोर-शराबे में नहीं हो सकती।’’ अपने हास्य-विनोद के लिए मशहूर वाजपेयी ने एक बार कहा था, ‘‘मैं राजनीति छोड़ना चाहता हूं, पर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती।’’

उन्होंने कहा था, ‘‘लेकिन, चूंकि मैं राजनीति में दाखिल हो चुका हूं और इसमें फंस गया हूं, तो मेरी इच्छा थी और अब भी है कि बगैर कोई दाग लिए जाऊं...और मेरी मृत्यु के बाद लोग कहें कि वह अच्छे इंसान थे जिन्होंने अपने देश और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने की कोशिश की।’’

और संभवत: वाजपेयी को इसी तरह याद किया जाएगा। वाजपेयी के योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें मार्च 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया था।

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