डेमोक्रेसी स्वाहाः विसंगतियों पर तीव्र प्रहार का दस्तावेज़ (पुस्तक समीक्षा)

book review
दीपक गिरकर । May 5 2020 4:19PM

व्यंग्यकार सौरभ जैन एक संवेदनशील रचनाकार है। इस संग्रह में लेखक ने अपनी भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है। लेखक की रचनाओं के विषय और व्यंग्य शैली दोनों में ताजगी हैं। सौरभ की व्यंग्य रचनाएँ पाठक के मानसिक धरातल पर कुठाराघात करती हैं।

देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सौरभ जैन की व्यंग्य रचनाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। लेखक की दैनिक भास्कर में प्रति शनिवार हास्य रंग पृष्ठ पर 'सेंसिबल मीम' और 'ह्यूमर ट्यूमर' व्यंग्य स्तंभ में रचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं। सौरभ ने हेरा फेरी फिल्म्स, बैंगलौर के 'पिछले हफ्ते में' नामक फनी न्यूज शो की स्क्रिप्ट का एक वर्ष तक लेखन किया था। लेखक ने छोटी उम्र में ही व्यंग्य विधा में अपनी पैठ बनाई है। 25 वर्षीय श्री सौरभ जैन नयी पीढ़ी के होनहार व्यंग्यकार है। "डेमोक्रेसी स्वाहा" लेखक का पहला व्यंग्य संग्रह है जो इस वर्ष भावना प्रकाशन से प्रकाशित होकर आया है, इन दिनों काफी चर्चा में है। व्यंग्यकार ने इस संग्रह की रचनाओं में वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं, खोखलेपन, पाखण्ड इत्यादि अनैतिक आचरणों को उजागर करके इन अनैतिक मानदंडों पर तीखे प्रहार किए हैं। इस व्यंग्य संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ व्यंग्यकार साहित्यकार श्री आलोक पुराणिक ने लिखी है और साथ ही वरिष्ठ व्यंग्यकार अरविंद तिवारी ने इस पुस्तक पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी लिखी हैं। श्री आलोक पुराणिक लिखते है "सौरभ जैन नयी पीढ़ी के वह महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं, जो एक साथ परंपरा और नए प्रयोगों से रिश्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” अरविंद तिवारी ने अपनी टिप्पणी में लिखा है “ व्यंग्यकार सौरभ जैन के कहन का अंदाज जुदा है जो उन्हें भीड़ में पहचान देता है।" 

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समीक्ष कृति की रचनाएं सौरभ की व्यंग्य क्षमता का परिचय देती है। “दफ्तर के बड़े साहब" आजादी के बाद की अफसरशाही पर करारा व्यंग्य किया गया है। "एक हफ्ते वाला प्रेम" रचना कृत्रिम प्रेम भावना पर तीखा कटाक्ष है। "कामचोरी का राष्ट्रवाद" व्यंग्य में व्यवस्था में व्याप्त मक्कारी, अड़ंगेबाजी, पैंतरेबाजी, कामचोरी इत्यादि प्रवृर्त्तियों को गहराई से प्रस्तुत करके लेखक ने कामचोरों के खिलाफ विक्षोभ व्यक्त किया है। "बाजार का काम चूना लगाना" व्यंग्य रचना में व्यंग्यकार ने बाजारवादी व्यवस्था के पाखंड पर तीखी चोट की है। "से मन! चरण वंदना कर" चाटुकारिता पर मज़ेदार तंज है। "शिक्षा का शॉपिंग मॉल" इस संकलन की श्रेष्ठ व्यंग्य रचना है जिसमें आज की शिक्षा व्यवस्था पर तीव्र कटाक्ष है। "मच्छर, बिजली और सरकार" व्यंग्य बिजली विभाग की कारगुजारियों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। "जूते आज फिर शर्मिंदा हैं!" एक उम्दा व्यंग्य रचना है, जिसमें लेखक ने जूतों के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को रेखांकित किया है। "सड़क का एक्सीडेंट", “अनाज की अभिलाषा”, “अर्थशात्री बनता आम आदमी", "प्री इलेक्शन फोटो शूट का जमाना", "व्हाट्सएप के रूठे फूफा, "सरकार के विकास का क्रम", "हिमालयी प्राणवायु की सेल", "सूरज का यूं रुठ जाना", "कलयुग के श्रवण कुमार", "एक उपेक्षित लेखक की व्यथा" "बी-ग्रेड नेता का सी-ग्रेड भाषण", "बाजारवाद के दौर में मानसून", "जेलतंत्र पर टिका लोकतंत्र", "फिजा में रंग सेल्फीयाना", "नेताजी का हिन्दी दिवस", "डिजिटल इंडिया में भगवान", "ऑनलाइन फूड में रुचि लेने वाले कौवें", "पुलिया की बायोपिक", "गरीबी की जाति", "संवेदनाओं का डिजिटलाइजेशन" जैसी रोचक व्यंग्य रचनाएँ अपनी विविधता का अहसास कराती है और पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाती हैं। 

व्यंग्यकार सौरभ जैन एक संवेदनशील रचनाकार है। इस संग्रह में लेखक ने अपनी भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है। लेखक की रचनाओं के विषय और व्यंग्य शैली दोनों में ताजगी हैं। सौरभ की व्यंग्य रचनाएँ पाठक के मानसिक धरातल पर कुठाराघात करती हैं। सौरभ की एक और विशेषता है, वे व्यंग्य में नये-नये प्रयोग करते रहते हैं। लेखक को अपने आसपास की जो घटनाएं झकझोरती हैं, वे उसी समय अपनी लेखनी से त्वरित व्यंग्य आलेखों के माध्यम से राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र से जुड़े सभी कर्णधारों को सचेत करते रहते है और पाठकों का ध्यान आकृष्ट कर उन्हें सोचने को मजबूर कर देते हैं। आलोच्य कृति “डेमोक्रेसी स्वाहा” में कुल 52 व्यंग्य रचनाएं हैं। व्यंग्य की राह बहुत कठिन और साहस का काम है, लेकिन सौरभ की लेखनी का नश्तर व्यवस्था में फैली विसंगतियों पर तीव्र प्रहार करता है। व्यंग्य लेखन में सौरभ की सक्रियता और प्रभाव व्यापक है।

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व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं और हर ज्वलंत मुद्दे को गहरे तक छुआ है। ठेकेदारों की मक्कारी, चरण वंदना, खाद्य विभाग, बिजली विभाग की कारस्तानियां, प्रशासन की बेईमानी, सोशल मीडिया, वेलेंटाइन वीक, मंचीय कवियों का ग्लैमर, बाजारीकरण, पर्यावरण, कामचोरी, लेखक की व्यथा, मिडिया, न्यूज चैनल, सेल्फी, सरकारी अधिकारियों के तबादले, सियासत, ब्यूरोक्रेसी, देशभक्ति का प्रर्दशन, आज की शिक्षा व्यवस्था, हिन्दी दिवस, डिजिटलीकरण, प्रर्दशन-प्रियता इन सब विषयों पर व्यंग्यकार ने अपनी कलम चलाई है। व्यंग्यकार सौरभ जैन ने अपनी सहज लेखन शैली से गहरी बात सामर्थ्य के साथ व्यक्त की है। संग्रह की विभिन्न रचनाओं की भाषा, विचार और अभिव्यक्ति की शैली वैविध्यतापूर्ण हैं। इस पुस्तक की सभी रचनाएँ पाठकों को वर्तमान विसंगतियों पर सोचने को मजबूर कर देती हैं। भविष्य में युवा व्यंग्यकार सौरभ जैन से ऐसी और भी पुस्तकों की प्रतीक्षा पाठकों को रहेगी।

आलोच्य पुस्तक: डेमोक्रेसी स्वाहा 

लेखक: सौरभ जैन  

प्रकाशक: भावना प्रकाशन, 109-ए, पटपड़गंज, दिल्ली– 110091 

मूल्य: 195 रूपए, 

पेज: 127

समीक्षकः दीपक गिरकर

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