कोरोना अगर इंसान हो जाए (व्यंग्य)

Corona

इंसानी ज़िंदगी की आज़ादी लौट रही है लेकिन असली आज़ादी अभी भी कोरोना के पास ही है, कहां प्रकट हो जाए कोई नहीं जानता। जब चाहे किसी को भी जकड लेता है, ऊंच नीच बिलकुल नहीं करता। बड़े से बड़े शक्तिशाली, वैभवशाली, धनशाली व्यक्ति को भी क्वारंटीन करवा सकता है।

नए नए शोध कोरोना के चरित्र की विशेषताएं खोज रहे हैं लेकिन रोज़ कुछ नया पता लगने से लगता है कुछ भी ठोस पता नहीं चल रहा। वह ऐसा हो सकता है वैसा हो सकता है, अंदाज़ा लगाने में वक़्त खराब किया जा रहा है क्यूंकि कोरोना अदृश्य है। इंसानी ज़िंदगी की आज़ादी लौट रही है लेकिन असली आज़ादी अभी भी कोरोना के पास ही है, कहां प्रकट हो जाए कोई नहीं जानता। जब चाहे किसी को भी जकड लेता है, ऊंच नीच बिलकुल नहीं करता। बड़े से बड़े शक्तिशाली, वैभवशाली, धनशाली व्यक्ति को भी क्वारंटीन करवा सकता है। हो सकता है कुछ दिन बाद यह शोध अध्ययन भी आ जाए कि जोर से हंसने, ज़रा सा रोने या गौर से देखने पर कोरोना हो सकता है। कुछ दिन बाद नई घोषणा की जाए कि दिमाग पर ज्यादा जोर डालने से कोरोना हो सकता है। क्या पता एक दिन ज्यादा इंसानी शोध, अध्ययनों व राजनीतिक घोषणाओं से प्रेरित होकर शातिर कोरोना इंसान से भी कुछ नया सीख कर अपनी प्रवृति ही बदल डाले और इंसान के साथ इंसान जैसा व्यवहार करना शुरू कर दे।

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ऐसा हुआ तो क्या होगा, सबसे पहले इसका पता किसे चलेगा। उम्मीद है सबसे पहले हमारे देश की राजनीति को इसका पता चल जाएगा क्यूंकि इस बारे उसके सुरक्षित गुप्तचर कई महीने पहले से सक्रिय है जो चौबीस घंटे आंखें फाड़े निगरानी कर रहे हैं कि इंसानी शोध और अध्ययनों से तंग आकर कोरोना कब इंसानों की तरह व्यवहार करना शुरू करे तो वे उसे काबू कर अपनी राजनीति के हिसाब से आम जनता के साथ व्यवहार करना सिखाएं। किसे बख्शना है और किसे टपकाना है समझा दें। उन्हें पता है अवगुण ग्रहण करना हमेशा आसान रहा है।

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कोरोना को यह अनुमान लगा लेगा कि उसके बदले हुए व्यवहार का ज़्यादा फायदा राजनीति ही उठाएगी तो वह भी ऐसे तत्व सीखेगा जो प्रयोग कर उसकी उपयोगिता बढे। कोरोना का व्यक्तिगत, सांप्रदायिक, जातीय, धार्मिक, राजनीतिक व आर्थिक फायदा उठाना शुरू करने की बेताबी उन्हें परेशान किए जा रही है। हालांकि फायदा उठाया जा रहा है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि अभी तक पूरा शुभ लाभ नहीं उठाया जा सका। यह भी संभव है कोरोना के प्रभाव का बाज़ारी फायदा उठाने के लिए कुछ दिनों बाद बाज़ार में ऐसी टी शर्ट व मास्क मिलने लगें जिन पर लिखा हो ‘लिविंग विद कोरोना’, ‘माय कोरोना गौन’, ‘मेक कोरोन फ्रेंड’। इन्हें आम लोगों में मुफ्त बांटकर डर खत्म नहीं कम किया जा सकता है और जिस चीज़ का डर खत्म कर दिया जाए उस पर जीत दर्ज की जा सकती है। कोरोना के इंसानी रूप का राजनीतिक प्रचारक, डांसर के रूप में प्रयोग हो सकता है। हमें मानकर चलना होगा, कोरोना अगर इंसान हो जाए तो समझो इंसानियत का काम हो जाए।

- संतोष उत्सुक

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