पुस्तक मेले में इक्यावनवीं पुस्तक का विमोचन (व्यंग्य)

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जिस लेखक की एक भी किताब नहीं छपी वह सोचता होगा कि इतनी किताबें लिखने में ही कितना समय और दिमागी मेहनत लगी होगी। फिर छपवाना, विमोचन, बिकवाना, पढ़ने के लिए प्रेरित करना । किताब का प्रचार भी करना। कितने काम होते हैं।

पुस्तक मेले में जब किसी की इक्यावनवीं पुस्तक का विमोचन होता है तो लगता है पुस्तकें सिर्फ ज्ञान नहीं देती बल्कि समाज को अनेक सन्देश भी देती होंगी। जिनकी प्रेरणा से हम पारिवारिक, सामाजिक जीवन में वैचारिक एकता, समरसता, भाई बन्धुत्त्व और राष्ट्रीय प्रेम अपने भीतर समाहित कर सकते  होंगे । कुछ पाठक ज़रूर सोचते होंगे कि इससे लेखकों को भी सन्देश मिलता तो होगा कि क्यूं लिखे जा रहे हो। जो कुछ लिखा है उसका कुछ फायदा समाज को हुआ या नहीं। 

जिस लेखक की एक भी किताब नहीं छपी वह सोचता होगा कि इतनी किताबें लिखने में ही कितना समय और दिमागी मेहनत लगी होगी। फिर छपवाना, विमोचन, बिकवाना, पढ़ने के लिए प्रेरित करना । किताब का प्रचार भी करना। कितने काम होते हैं। कब पाठक किताब पढेगा, उसका शरीर और मन बदलाव का संकल्प लेगा, कब वास्तविक बदलाव शुरू होगा, बड़ा लंबा रास्ता है। अब तो कितने व्यक्ति दूसरों की देखा देखी में अपनी किताब भी छपवा देते हैं। पता नहीं अपना लिखा दोबारा पढ़ते भी होंगे ? सिर्फ परिवार में एकता, समरसता आ पाई होगी? यह बात भी सच है कि बढ़ती उम्र में पत्नी अर्धांगिनी नहीं रह जाती पूरांगिनी हो जाती है। 

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आजकल अधिकांश लेखकों को रॉयल्टी नहीं मिलती या कहो उनका लेखन वैसा नहीं होता कि रॉयल्टी नामक शहद चटाने लायक हो। किताब छपवाकर अपने शहर के लेखकों, मित्रों या जिन रिश्तेदारों से सम्बन्ध ठीक हैं उन्हें देनी पड़ती है। कुछ ऐसे लोगों को भी देनी पड़ती है जो किताब पकड़ते हुए निहायत नकली मुस्कराहट देते हुए सिर्फ होटों से थैंकयू कहते हैं मगर वास्तव में वह कह रहे होते हैं इसका हम क्या करेंगे।  बेचारी किताब उनके घर में किसी उदास सी जगह पर पड़ी रहती है। कई बार कुछ किताबें ऐसे लोगों को भेज दी जाती हैं जो, अच्छा ! इसने भी छपवाली किताब, कहकर कहीं रख देते हैं। किसी प्रसिद्ध कवि, प्रसिद्ध बाल साहित्यकार या प्रसिद्ध उपन्यासकार को व्यंग्य संग्रह भेज दो तो उन्हें अच्छा नहीं लगता ।

इक्यावनवीं पुस्तक के विमोचन से पहले, दुनिया की सबसे बड़ी, सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली बुक, फेसबुक के फेस पर संभावित मेहमानों की सार्थक उपस्थिति के लिए निमंत्रण छापा जाता है। यह भी बताया जाता है, आएंगे तो पुस्तक की प्रति मिलेगी। बिना किताब का लेखक इतने बड़े मेले में प्रवेश की हिम्मत कम ही करता है। उसे लगता है वहां तो सभी व्यवसायी हैं। कहीं उसे लगता है कि अपनी किताब सिर्फ अपने लिए है। बिक जाए, खर्चा निकल आए, दो चार संस्थाएं सम्मानित कर दें। शायद स्तरीय कहा जाने वाला पुरस्कार मिल सके। इसमें ही काफी मेहनत है। जिनके पास अकादमिक योग्यता, सरकारी समय और प्रतिभा है उनकी बात तो अलग है जी। इसलिए हैरानी होती है जब कोई अपनी पुस्तक मेले में इक्यावनवीं पुस्तक का विमोचन करवाता है। 

- संतोष उत्सुक

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