हिंदी नहीं अंग्रेज़ी नहीं हिंदी (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Sep 14 2022 1:12PM

हिंदी, सितम्बर माह में खूब प्रयोग की जाती है। अन्य किसी महीने में ज़्यादा प्रयोग करने की इच्छा हमारे दिमाग में प्रवेश नहीं कर पाती। वह अलग बात है कि हम ज़बान से कहते रहते हैं कि हिंदी को दिल से प्यार करते हैं।

हमने ऐसे कई स्कूल देखे हैं जहां हिंदी अंग्रेज़ी में पढ़ाई जाती है। ऐसे प्रांगण हैं जहां हिंदी बोलने पर डांट पड़ती है। हिंदी दिवस भी पैंतीस प्रतिशत से ज्यादा अंग्रेज़ी में मनाया जाता है। वातावरण से रोम रोम में रचा बसा उच्चारण कभी रिसता ही नहीं। इतने डायलेक्ट हैं जो भाषा के साथ पूंछ की तरह चिपके रहते हैं। उसी रास्ते पर अध्यापक भी बरसों चलते हैं तो उनके विद्यार्थी भी उसी मार्ग पर चलेंगे न। संसार में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा को हमने अंग्रेजी के साथ अन्य मसाले डालकर स्वादिष्ट सब्जी हिंगलिश बना दिया है। परीक्षा या सरकारी नीतियों के कारण हिंदी प्रयोग करनी पड़ती है। इसलिए जितने में काम चल जाए उससे थोड़ी ज़्यादा सीख लेते हैं। गौर से देखें तो इतनी सीखते हैं कि ठीक से आती नहीं, चली जाती है।  

हिंदी, सितम्बर माह में खूब प्रयोग की जाती है। अन्य किसी महीने में ज़्यादा प्रयोग करने की इच्छा हमारे दिमाग में प्रवेश नहीं कर पाती। वह अलग बात है कि हम ज़बान से कहते रहते हैं कि हिंदी को दिल से प्यार करते हैं। दिल से प्यार करना शरीर के अन्दर की बात होती है। बोलने के लिए जीभ हिलानी पड़ती है। शहर में दफ्तरों के और दूसरे नाम पट्ट अभी भी अंग्रेज़ी में ही लिखवाए जाते हैं क्यूंकि वास्तव में हिंदी हमें आती नहीं (कृपया इसे ऐसे पढ़िए कि हमें हिंदी प्रयोग करते हुए बहुत शर्म आती है)। अधिकांश अनपढ़ और पढ़े लिखे लोग अपने बच्चों के शादी ही नहीं जन्मदिन या किसी अन्य आयोजन के कार्ड भी अंग्रेज़ी में छपवाते है। इक्का दुक्का साधारण बेशर्म बंदे ही हिंदी में छपवाते हैं। वास्तव में मुश्किल काम है। 

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बेचारे अधिकांश फ़िल्मी कलाकार फिल्मों में हिंदी खूब बोल लें लेकिन सार्वजनिक रूप से बात करते हुए उन्हें हिंदी भूल जाती है। कुछ लोग जब हिंदी बोलते हैं लगता है कुछ राजनीतिक हो रहा है। नेताओं का क्या कहना वे तो अपने दौरे के दौरान सम्बंधित प्रदेश या क्षेत्र की भाषा बोलकर वोट लूट ले जाते हैं। अंग्रेज़ी की विश्वस्तरीय स्वीकार्यता, बढती महत्ता, कम होती नहीं। इन विशेषताओं को देखते हुए राजधानी की सरकारजी ने हिंदी नहीं अंग्रेज़ी सिखाने का ज़िम्मा लिया है वह भी कोचिंग सेंटर की तर्ज पर। मुफ्त में सिखाएगी युवाओं को, इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स कराएगी। इस रास्ते से हिंदी चाहे आए न आए अंग्रेज़ी तो आ ही जाएगी। इस बहाने हिंदी के बढ़िया डायलाग अंग्रेज़ी में सुनने को मिलेंगे। वह बात अलग है कि युवाओं ने शब्दों को काट पीटकर नई भाषा ईजाद कर ली है।  

दिलचस्प यह है कि अंग्रेज़ी सीखने में गंभीरता उगाने के लिए रिफंडेबल राशि ली जाएगी चाहे बाद में हिंगलिश ही चालू रहे। वैसे तो हमारे यहां मदिरापान के बाद मुंह और पेट से स्वत अंग्रेज़ी और सच एक साथ निकलने लगते हैं। एक सौ बीस या एक सौ चालीस घंटे में अंग्रेज़ी बोलना दिमाग में घुस जाए तो बढिया है। नौकरियों के कम होते युग में अच्छी नौकरी और.... भी तो मिल सकती है। हो सकता है अंग्रेज़ी सीखने के लिए, भुला दिया जाने वाला क़र्ज़ भी दिया जाए। यह भी तो हो सकता है इस कोर्स से प्रेरित होकर हिंदी सिखाने की कोचिंग भी शुरू हो जाए बेशक नॉन रिफंडेबल सिक्युरिटी लेकर।

- संतोष उत्सुक

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