ज़िन्दगी का हर एक पहलू सँवार (ग़ज़ल)
शशांक शेखर त्रिपाठी । Jun 11 2018 4:20PM
हिन्दी काव्य संगम से जुड़े शशांक शेखर जी कि रचना (ग़ज़ल) ''जिन्दगी का हर पहलू सँवार'' में जीवन के संघर्ष और छोटी छोटी आरजुओं को पूरा करने की जद्दोजहद पर प्रकाश डाला गया है।
हिन्दी काव्य संगम से जुड़े शशांक शेखर जी कि रचना (ग़ज़ल) 'जिन्दगी का हर पहलू सँवार' में जीवन के संघर्ष और छोटी छोटी आरजुओं को पूरा करने की जद्दोजहद पर प्रकाश डाला गया है।
ज़िन्दगी का हर एक पहलू सँवार..
पर ख्वाहिशें मत कर दरकिनार..
गर है ज़िन्दगी तो मसले हैं हज़ार..
यहाँ हर दिन नहीं आती है बहार..
खुद के सिवा वज़ूद सारे नकार..
किसी सेहरा से खुद को पुकार..
कर आरज़ूओं से छोटा सा करार..
एक बार तो खुद से जा भी हार..
भूल फ़िक्र सारी भीग ज़ार ज़ार..
बारिश की जो पड़े ठंडी फुहार..
जिसको तू अपना कहता है यार..
ले उसका हाथ थाम बस एक बार..
अब छोड़ खुदी तू कर ले प्यार..
जीने के फक़त हैं दिन ही चार..
-शशांक शेखर त्रिपाठी
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
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