हमारी शान है असमानता (व्यंग्य)

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Prabhasakshi
संतोष उत्सुक । Mar 26 2024 5:03PM

कुछ लोगों का कहना है यह रिपोर्ट किसी गांव के प्रधान ने तैयार नहीं की है बल्कि फ़्रांस, अमेरिका, पेरिस जैसे शहरों में रहने वाले अर्थशास्त्रियों ने पकाई है तभी तो स्वादिष्ट है। इसके स्वाद से लगता है हम विकसित, चमकदार नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ते सांस्कृतिक समाज का शानदार हिस्सा हैं।

पिछले दिनों फिर से जारी की एक रिपोर्ट ने, फिर से विदेशियों की सोच को उजागर कर दिया। मेरे दिल ने इसे बिना सोचे समझे बोला झूठ करार दिया। इस रिपोर्ट को विश्व असमानता रिपोर्ट कहते हैं। यह गलत कहा जा रहा है कि हमारे यहां अमीरों और गरीबों के बीच, अंग्रेजों के शासन से भी ज्यादा असमानता का मौसम है। कितनी गलत बात है आज़ादी के लगभग सतहत्तर साल बाद कैसी बातें की जा रही है। लगता है विदेशों की साजिशें कम नहीं हुई। उन्होंने कहना शुरू कर दिया है कि देश की चालीस प्रतिशत संपत्ति एक प्रतिशत अमीरों के पास है। यह भी कह रहे हैं कि ऐसा सौ साल में पहली बार हुआ है। 

यह तो खुशी की बात है कि सौ साल में पहली बार हुआ है। यह तो एक रिकार्ड की तरह हुआ न। हमें तो रिकॉर्ड बनाना वैसे भी बहुत पसंद है। बढ़ोतरी तो बढ़ोतरी ही होती है। इस रिपोर्ट को ‘अरबपति राज का उदय’ कहा जा रहा है जो एक महान ऐतिहासिक फिल्म का नाम जैसा लगता है। समाज में गरीबों का बढ़ना अच्छा माना जाएगा या अरबपतियों का, ज़ाहिर है अरबपतियों का। उनका निर्माण तो पैसे से ही होगा और जो पैसा लगाएगा वही कमाएगा और उसकी सफलता का फल पाएगा। 

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कुछ लोगों का कहना है यह रिपोर्ट किसी गांव के प्रधान ने तैयार नहीं की है बल्कि फ़्रांस, अमेरिका, पेरिस जैसे शहरों में रहने वाले अर्थशास्त्रियों ने पकाई है तभी तो स्वादिष्ट है। इसके स्वाद से लगता है हम विकसित, चमकदार नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ते सांस्कृतिक समाज का शानदार हिस्सा हैं। रही असमानता वह तो हमें शुरू से ही पसंद है। हम तो सृष्टि की उत्कृष्ट रचनाओं बालक और बालिकाओं में भी भेदभाव करते हैं। हम तो दूसरों की उन्नति में खुश रहने वाले लोग हैं। हम नम्बर गेम में विशवास नहीं करते। इस बात का बिलकुल बुरा नहीं मानते कि विश्व हैप्पीनेस सूचकांक में हमारा स्थान कौन सा है। 

संयुक्त राष्ट्र नाम की किसी संस्था की यह रिपोर्ट विदेशों की साज़िश है। वे भी हमारे राजनीतिक और धार्मिक विकास से जलते हैं तभी इस तरह की रिपोर्ट्स पकवाते हैं। पिछले दिनों कह रहे थे कि दुनिया के एक सौ तिरतालिस देशों में खुशी की एक सौ छबीसवीं सीढ़ी पर हम बैठे हैं। उनके अनुसार हमारा निकट पड़ोसी हमारे से ऊँची पायदान पर है लेकिन आतंक, भ्रष्टाचार, गरीबी और राजनीतिक अस्थिरता की कमियों में खुश है। हो नहीं सकता कि हमारा समझदार समाज तीसरी विश्व आर्थिक ताक़त बनने के बावजूद नाखुश हो। यह रिपोर्ट भी कुछ ऐसे गलत लोगों द्वारा बनाई गई लगती है जो हमसे प्यार नहीं करते या हमसे नहीं डरते। कैसे कैसे लोग शामिल होंगे इस रिपोर्ट को गढ़ने में जो हमारे देश के सामने, छोटे से बच्चे जैसे देश फिनलैंड को सातवीं बार सबसे खुशहाल देश बता रहे हैं। कहां हम कहां वो। वैसे हम बड़े दिलवाले ऐसी छोटी छोटी बातों की परवाह नहीं करते। इतने बड़ी दुनिया में थोड़ी बहुत असमानता तो चलती है।

- संतोष उत्सुक

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