कुत्तों द्वारा सीखना (व्यंग्य)

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विदेशियों के मुताबिक यह नया अध्ययन है कि कुत्ते किसी भी भाषा के संज्ञा शब्द को आसानी से समझ लेते हैं। उनका कहना है कि कुत्ते संज्ञा तो समझ लेते हैं लेकिन क्रिया या विशेषण नहीं समझते। बेचारे कुत्तों को भी व्याकरण में फंसा दिया।

विदेशी भी क्या क्या अध्ययन करते रहते हैं। लगता है उनका काम बिना रोज़ी रोटी कमाए चल रहा है। बिना मेहनत किए पका पकाया खाना और पीना मिल रहा है। यह पूरी दुनिया जानती है कि कुत्ते स्वामी  भक्त होते हैं। उनके इशारों, आदेशों और भावों को समझते हैं। लेकिन इन विदेशियों के मुताबिक यह नया अध्ययन है कि कुत्ते किसी भी भाषा के संज्ञा शब्द को आसानी से समझ लेते हैं। उनका कहना है कि कुत्ते संज्ञा तो समझ लेते हैं लेकिन क्रिया या विशेषण नहीं समझते। बेचारे कुत्तों को भी व्याकरण में फंसा दिया।

  

हंगरी के, समझ के भूखे वैज्ञानिकों ने कुत्तों की समझ के स्तर को समझने के लिए काफी मेहनत की। इसके लिए उन्होंने अलग अलग प्रजाति के कुत्तों को ट्रेनिंग दी। उनके अनुसार इन वफादार जानवर विद्यार्थियों ने एक हज़ार से ज्यादा संज्ञाओं को सीखा और समझ लिया। यह तो वही बात हुई कि नेताजी मंदिर गए, पूजा पाठ किया और मुस्कुराते हुए घोषणा की कि हमें भगवान ने आशीर्वाद दे लिया है यानी हमने आशीर्वाद ले लिया है।

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मुझे तो हैरान होते हुए यह पहली बार पता चला कि कुत्तों को, सामान्यत पंद्रह से दो सौ पचास शब्दों के मायने पता होते हैं। बात तो सही है, कुत्तों को ‘सिट डाउन’ या ‘गो देयर’ समझ आता ही है, चाहे बोलने वाले को ज्यादा अंग्रेज़ी न आती हो मगर कुत्ते को अंग्रेज़ी में ही हुक्म दिया जाता है। खाना परोसकर तो कुत्ते से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ती। एक विश्वविद्यालय के ताज़ा बायोलोजी जर्नल में छपे अध्ययन की लेखिका का कहना है कि कुत्ते शब्दों के प्रति एक ख़ास व्यवहार सीख रहे हैं। वास्तव में वे इंसानों की तरह कुछ निजी अर्थ भी समझ सकते हैं। हंसने की बात यह है कि अध्ययन में केवल डेढ़ दर्जन यानी अट्ठारह कुत्तों की मानसिक स्थिति का विश्लेषण किया गया। 

हे भगवान्! विदेशों में जानवरों बारे, उनकी मानसिक स्थिति और व्यवहार जानने समझने के लिए कितनी सुविधाएं हैं। हमारे यहां तो बच्चों और बूढों की भी ज्यादा परवाह नहीं की जाती। कुत्तों की ही बात करें तो पॉटी करवाने के लिए वहां उनके साथ साथ पोलीथिन लेकर चलते हैं और उठाकर उचित जगह डालते हैं। हमारे यहां आवारा कुत्तों का ही नहीं पालतू कुत्तों का भी बुरा हाल है। आम लोगों को काटने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। थोड़ी सी संजीदगी तब दिखती है जब कुता किसी ख़ास आदमी को काटता है। नेता को काटने की हिम्मत किसी कुत्ते में है नहीं। कहीं गुस्से में नेता अगर कुत्ते को डांट दे तो कुत्ता बीमार या बेहोश हो सकता है, ज़्यादा गुस्से में कुत्ते को काट ले तो कुत्ता मर भी सकता है। वह बात दीगर है कि ऐसी बातों को तवज्जो नहीं दी जाती, आखिर कुत्ता जानवर ही है। हम बेवफा लोगों की दुनिया में थोड़ी सी बेवफाई तो सीख ही सकता है। अध्ययन इस बारे में भी किया जा सकता है।

- संतोष उत्सुक

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