मुसाफिर हूं यारों (पुस्तक समीक्षा)

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''मुसाफिर हूं यारों'', जिस तरह से इस पुस्तक का नाम रखा गया है ठीक यही अनुभूति होती है इसको पढ़कर...जब आप कविताओं को पढ़ना शुरू करते हैं तो आप उसमें खोने लगते हैं और फिर उसको जीने लगते हैं।

'मुसाफिर हूं यारों', जिस तरह से इस पुस्तक का नाम रखा गया है ठीक यही अनुभूति होती है इसको पढ़कर...जब आप कविताओं को पढ़ना शुरू करते हैं तो आप उसमें खोने लगते हैं और फिर उसको जीने लगते हैं। 

वो चाहें कितनी डींगें मारें,

चाहें उनकी लाख तैयारी है

 

मेरे देश का एक बच्चा भी,

तेरे पाकिस्तान पे भारी है

 

उसको यह समझा दो लोगों, 

अब हमले की न भूल करें,

 

वह तीन बार तो हार चुका है,

और अबकी चौथी बारी है

 

हम मर जाएंगे, मिट जाएंगे,

पर माटी का एक कण न देंगे

अपने शीश से बढ़कर हमको,

भारत मां की इज्ज़त प्यारी है

 

है दोस्त जो भारत माता के 

उनसे तो अपनी भी यारी है

लेकिन देश के हर दुश्मन पर

मेरा एक वीर तिरंगा भारी है

'मुसाफिर हूं यारों', जिस तरह से इस पुस्तक का नाम रखा गया है ठीक यही अनुभूति होती है इसको पढ़कर...जब आप कविताओं को पढ़ना शुरू करते हैं तो आप उसमें खोने लगते हैं और फिर उसको जीने लगते हैं। इस पुस्तक को भी बिल्कुल इसी अंदाज में लिखा गया है। इसे कविता संग्रह कहना शायद उचित नहीं होगा, हालांकि इसमें कविताएं तो हैं, मगर हर कविता अपने आप में एक मुक्कमल कहानी है। 

इस किताब को जब पढ़ना शुरू किया तो यह बिल्कुल भी नहीं लगा कि इसे किसी प्रशासनिक ओहदे वाले व्यक्ति ने लिखा है, बल्कि यही अनुभूति हुई कि कोई रचनाकार अपने आस-पास की जिन्दगी को एक रूपरेखा दे रहा है। इस किताब को पढ़ने के बाद हर व्यक्ति का समाज को देखने का नजरिया बदल जाएगा। जब वह किसी फौजी को देखेगा तो उसे देश प्रेम नजर आएगा और बेटी से लगाव बढ़ता जाएगा। 

यह किताब बिल्कुल एक डायरी के समान प्रतीत होती है मतलब कि जो अपनी जिन्दगी के अलग-अलग अनुभवों को एक साथ उकेरने का प्रयास कर रहा है। इस लिहाज से किताब का नाम 'मुसाफिर हूं यारों' एक दम सही साबित होता है। 

आज के दौर में जब हजारों पुस्तकें प्रकाशित होती हैं ऐसे में मुसाफिर हूं यारों की कल्पना सराहनीय है। एक वक्त ऐसा भी आया जब कवि खुद को भीड़ के बीच में अकेला पाता है तो वह अपने शब्दों को जबान देते हुए लिखता है कि न सावन है न होली है/ न दीपों में कोई जगमग…। बहरहाल, पुस्तक पढ़ने लायक है और राजीव अग्रवाल द्वारा रचित कविताएँ आपको अवश्य ही पसंद आएंगी।

कविता संग्रह: मुसाफ़िर हूँ यारो…

कवि: राजीव अग्रवाल

प्रकाशन: रंजन पब्लिकेशन, फ़रीदाबाद

सहयोग राशि: 250 रुपए

-अनुराग गुप्ता

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