काली कोयल की सफ़ेद बातें (व्यंग्य)

Nightingale (Humour)

आम के वृक्ष पर बैठे हुड़दंगी बंदर द्वारा टहनी हिलाते, गंजे सिर पर कच्चा आम गिरने के कारण मुझे विचार कौंध गया कि क्यूँ न बंदर का साक्षात्कार किया जाए। लेकिन अगले ही क्षण तमाम सरकारी व गैर सरकारी खतरे दिमाग में घूम गए लेकिन परिणाम सुरीला रहा।

सुबह सैर के समय, आम के वृक्ष पर बैठे हुड़दंगी बंदर द्वारा टहनी हिलाते, गंजे सिर पर कच्चा आम गिरने के कारण मुझे विचार कौंध गया कि क्यूँ न बंदर का साक्षात्कार किया जाए। लेकिन अगले ही क्षण तमाम सरकारी व गैर सरकारी खतरे दिमाग में घूम गए लेकिन परिणाम सुरीला रहा। विचार आया आज तक किसी ने भी कोयल से बातचीत नहीं की होगी। सुंदर, बड़बोले, बेईमान व भ्रष्टाचारियों से ही पीछा नहीं छूटता, कौन काली कलूटी से संवाद करेगा। हमारे यहां वीआईपी, धन दौलत व प्रसिद्धि पालकों के पास मुझ जैसे के लिए समय कहां है और उनका सीधा लगता टेढ़ा मुंह, नकली खूबसूरती, असली झूठी मुस्कुराहटें, सचमुच झूठे वायदे, ज़बान पर लदे चुनिंदा शुद्ध लुभावने शब्द और दिमाग में सच्ची नफरत व ईर्ष्या द्वेष से जितना बचो उतना अच्छा।

खूबसूरत लोगों ने खूबसीरत लोगों को हमेशा नीचा दिखाने की ‘सफल’ कोशिश की। हालांकि लाल बत्ती पूजा घर चली गई मगर शरीर और दिमाग पर तो चिपकी साफ़ दिखती है। मैंने युगों से मिठास बरकरार रखने वाली अपना रंगढंग न बदलने वाली कोयल से संवाद साधने की सोची। एक मित्र जो दर्जनों पक्षियों की बोलियां बोलने में सिद्धहस्त हैं, ने मध्यस्थ्ता करते हुए कोयल से संपर्क स्थापित किया। सभी कोयल ने एक जैसी ही बात करनी थी इसलिए चुनाव ज़रूरी नहीं था, हां किसी इंसान की बात होती तो सोचना पड़ता। वही मित्र जो हज़ारों लाखों स्कूली बच्चों को पक्षियों की मधुर बोली सुना चुके हैं, ने दोबोलिए की भूमिका भी निभाई। इंसान का इंसान से ईमानदार संवाद मुश्किल में है। पक्षी व जानवर संवाद करने में सहज हैं। कोयल से मेरा पहला प्रश्न रहा, आप हर साल आम को मीठा करने आती हैं, इतनी तन्मयता, ईमानदारी व समयबद्धता कैसे? कोयल ने कहा, हम प्रकृति की बेटियां हैं, हमारा कर्तव्य आम के वृक्षों के साथ समन्वय बना कर रखना है। कुछ भी बदलाव लाना असंतुलन की तरफ ले जाएगा फिर आम में मिठास कैसे घुल पाएगी। मैंने पूछा, मिठास आप घोलती हैं ? बोली, मिठास तो मां प्रकृति घोलती है हमारा काम तो आवाज़ निकालना है और वह भी ठीक वैसी ही जैसा बचपन से सिखाया गया है। हमें आम के वृक्षों पर बैठकर  नियमबद्ध तरीके से यह पारिवारिक पारम्परिक कर्तव्य निभाना होता है।

मैंने कोयल से कहा, आपको पता है कि आम फलों का राजा है और हम सब बड़े शौक से इसे खाते हैं। कोयल ने कहा हम तो साधारण कार्यकर्ता हैं, हमारे यहां सब एक जैसे होते हैं, ऊंच नीच नहीं होता। सभी को एक जैसे घोंसले बनाकर रहना होता है। एक जैसा खाना पीना होता है तभी अनुशासन रहता है। इतनी समानता, समरसता, एकरूपता, एकात्मता हमारे जीवन में है कि पता नहीं कि राजा क्या होता है। मेरा अगला सवाल था, कोई बागवाला आपको पाल पोसकर, अच्छा खिला पिलाकर, आपको अपने आम के बागीचे में ज्यादा कूकने को कहे तो। कोयल ने थोड़ा मुस्कुराकर कहा, हम सब मां प्रकृति के परिवार की सदस्य हैं। हमें कुछ भी ऐसा व्यवहार नहीं सिखाया गया। हम सबको एक समान समझते हैं। भेद भाव नहीं कर सकते। यदि हम ऐसा सोचेंगे भी तो हमारी सुरीली तान में खराबी आने का अंदेशा रहता है। हमें इंसानों से हमेशा सतर्क व सुरक्षित रहने को कहा गया है, प्रकृति के नियम पारदर्शी, सहज व न बदलने वाले हैं। मैंने कहा दुनिया कितनी बदल गई, हज़ारों साल से आपकी तान वैसी ही है, कोई परिवर्तन नहीं। हमें यही सिखाया गया है कि कभी अपना अच्छा चरित्र न बदलो। प्रतिस्पर्द्धा या लालच यहां तक कि मजबूरी में भी अडिग रहो। इसी गुण से आपके व्यक्तित्व की पहचान बनती है। झिझकते हुए मैंने जानना चाहा, आपको नहीं लगता आपका रंग काला न होकर, भूरा, लाल या कोई और...? जवाब आया, हमारे पूर्वजों ने हमें यही शिक्षा दी कि रंग से कुछ नहीं होता, सब आपके ढंग से होता है। हमारा रंग यदि उजला, पीला होता तो आप हमें पसंद करते मगर हमारी आवाज़ सुरीली न होती तो कितना देर तक सुन पाते। तब क्या आप अपने बच्चों को हमारी तरह बोलने को कहते। मेरे प्रश्न समाप्त हो गए थे।

कोयल को आभास हुआ कि उसे अमुक आम समूह में कूकने जाना है। मेरा पक्षी मित्र समझ गया। कोयल, प्रतीक्षारत आम के वृक्षों की ओर मिठास संभाले उड़ चली। पक्षी इंसानों की तरह हो जाएं, बोली बदल लें, कई बोलियां सीख लें, नए रंग का चोगा पहन लें, मुंह फेरना सीख लें तो प्रकृति के आंतरिक संतुलन का क्या होगा। दुनिया के किसी कोने में शायद कोई तो ऐसा करवाने की कोशिश कर रहा होगा मगर प्रकृति ऐसा होने तो नहीं देगी। किसी ने ठीक कहा है, ‘खूबसीरत लड़कियों के हाथ पीले हो गए, खूबसूरत लड़कियां हाथ मलती रह गईं'। कोयल की सफ़ेद बातें बार बार यही साबित करती हैं।

-संतोष उत्सुक

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