दास नहीं..... उदास वोटर (व्यंग्य)

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Prabhasakshi
संतोष उत्सुक । Apr 26 2024 3:46PM

दरअसल हम परम्पराओं के शिकंजे में गिरफ्तार रहने वाले मतदाता हैं। हमें नकद और वस्तु के रसपान की पुरानी समृद्ध परम्परा अभी भूली नहीं। हमें विज्ञापन कम, सामान की फ्री डिलीवरी ज़्यादा पसंद है। कुछ लेकर कुछ देना अच्छा लगता है।

देश में उदास वोटर बढ़ते जा रहे हैं। इन्हें कोई भी राजनीतिक पार्टी अपना दास नहीं बना सकी न ही चुनाव करवाने वाले अपनी अदाओं से प्रभावित कर सके। ये इस बार के महाचुनाव के पहले चरण में वोट डालने नहीं गए। वोटिंग में आई गिरावट को उठाने के लिए प्रयास जारी हैं जो तकनीकी ज्यादा लगते हैं। अभियान चलाए जा रहे जिन्हें मिनी आन्दोलन नहीं कहा जा सकता। प्रशासनिक प्रयास भी हमेशा सीमित और उदास होते हैं। जिन कम्पनियों ने करोड़ों का चंदा दिया, कोशिश कर रही हैं। उन्हें कहीं से ख़ास संदेश आया होगा। अपने कर्मचारियों को सवैतनिक छुट्टी, घर से काम की सुविधा दे रही हैं। वोटर को निर्वाचन क्षेत्र में भेजने की योजना है। सीमेंट वाले प्रत्येक प्रतिज्ञा के लिए एक किलो सीमेंट दान करने की बात कर रहे हैं। देशभक्ति प्रेरित विज्ञापनों के इलावा हालांकि प्रतिज्ञाएं दिलाई जा रही हैं लेकिन सब जानते हैं कि अधिकांश लोग सिर्फ मुंह से प्रतिज्ञा लेते हैं दिल और दिमाग से नहीं और जल्दी भूल भी जाते हैं। 

दरअसल हम परम्पराओं के शिकंजे में गिरफ्तार रहने वाले मतदाता हैं। हमें नकद और वस्तु के रसपान की पुरानी समृद्ध परम्परा अभी भूली नहीं। हमें विज्ञापन कम, सामान की फ्री डिलीवरी ज़्यादा पसंद है। कुछ लेकर कुछ देना अच्छा लगता है। कुछ ऐसे भी होंगे जिनका स्वाद थोडा बदल गया होगा तो ऐसे भी होंगे जो नए होंगे और कुछ नया स्वादिष्ट चाहते होंगे। शादी में हर कुछ उपहार की जगह, नकद लेना सभी पसंद करते हैं।

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वोट न देना भी एक किस्म की नाराज़ उदासी दिखाना है। यह अनमनापन है। व्यवस्था के खिलाफ शांत प्रदर्शन है। वोट न देने वाले उदास वोटरों को अपनी समस्याओं का हल किसी के पास नहीं दिखता। उन्हें लगता है किए जा रहे उपाय कुछ दिनों के लिए हैं। यह बात हैरान करती है कि युवाओं में वोट डालने की ललक नहीं है।  

तम्बू के नीचे पीने का पानी पिलाना, गर्म हवा ही फेंक रहे पंखे क्या कर सकते हैं। जागरूकता फैलाने का क्या है जनता महा जागरूक है। साक्षरता भी क्या करेगी, यहां तो पढ़े लिखे अनपढ़, धर्म भीरु, अंधविश्वासी हैं। नुक्कड़ नाटक, खेल और साइकिल रैली तो मनोरंजन है। ध्यान रहे हमारे यहां तो जेल से बार बार पैरोल पर आने वाले बाबा के इशारे पर लाखों वोट डाले या नहीं डाले जा सकते हैं।

मतदाताओं की उदासी कम करने के लिए स्थानीय और मौसमी फल, मौसम के हिसाब से टोपी, नेकर, टमाटर, आलू, पानी या तरल, दो चार दिन का पैक खाना भी उदासी को संतुष्टि में बदल सकते हैं। नवोन्मेषी विचारों की क्या कमी है दुनिया में। कुल मिलकर वोटिंग का दिन, ज़िम्मेदार पिकनिक दिवस की तरह हो सकता है। 

- संतोष उत्सुक

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