विशेषण का संज्ञा बनना (व्यंग्य)

noun-and-adjective-satire

बचपन में हम सभी ने स्कूली दिनों में संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण की परिभाषाएँ रटी होंगी। कुछ को तो आज तक याद होंगी कुछ-कुछ इस तरह- किसी व्यक्ति, प्राणी, स्थान, वस्तु, क्रिया और भाव आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं।

बचपन में हम सभी ने स्कूली दिनों में संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण की परिभाषाएँ रटी होंगी। कुछ को तो आज तक याद होंगी कुछ-कुछ इस तरह- "किसी व्यक्ति, प्राणी, स्थान, वस्तु, क्रिया और भाव आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं।" इसी तरह "वाक्य में संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं।"

पर मुरारी जी सदा अपने को अज्ञानी महसूस करने लगते जब-जब उनका बेटा त्रिपुरारी संज्ञा और विशेषण को लेकर उनकी परीक्षा लेने आ जाता। त्रिपुरारी बचपन से ही फिल्मी गानों का शौकीन था और त्रिपुरारी का यही शौक उसके और मुरारी जी के लिए मुसीबत लेकर आता। एक दिन जब उसने पूछा- "पिताजी चाँद संज्ञा है या विशेषण।" "संज्ञा है बेटा"- मुरारी जी ने सहजता से उत्तर दिया।

"चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था- गाने ने मुझे कंफ्यूज कर दिया है कि चाँद क्या है"- त्रिपुरारी के चेहरे से उदासी साफ झलकने लगी थी। पर अज्ञानी होने के दंश ने मुरारी के चेहरे पर डबल उदासी वाले भाव ला दिए थे।

अगले दिन त्रिपुरारी फिर नए प्रश्न के साथ उपस्थित था- "पिताजी 'गोरी' संज्ञा है या विशेषण"

"बेटा- ये तो हंड्रेड परसेण्ट विशेषण है"- मुरारी उत्साहित होकर बोले।

"पिताजी- गोरी है कलाइयाँ ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ- में तो आप सही लगते हैं पर अमोल पालेकर जब कहते हैं कि 'गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा' तो दिमाग का दही बन जाता है"

मुरारी जी फिर मात गए लेकिन आगे भी वह पूरे जोश से त्रिपुरारी के प्रश्नों का उत्तर देते रहे। और त्रिपुरारी भी संज्ञा और विशेषण के बीच झूलते हुए बड़े होता गया। संज्ञा और विशेषण तथा विशेषण और संज्ञा के घालमेल के बावजूद त्रिपुरारी अच्छी खासी नौकरी भी पा गया। मुरारी और मिसेज मुरारी दोनों खुश थे कि बेटा भोला जरूर है पर है बड़ा ही होनहार। अब दोनों को त्रिपुरारी की शादी की चिंता सताने लगी। उनकी चाहत भी पड़ोसी मिश्राइन की बहू की ही तरह सुशील बहू पाने की थी। रिश्ते तलाशे जाने लगे पर त्रिपुरारी हर रिश्ते को किसी न किसी बहाने से ठुकरा देता। एक दिन अचानक त्रिपुरारी के चेहरे पर खुशी के अनार जलने लगे। उसके हाव भाव में धनात्मक परिवर्तन दिखने लगा। मुरारी और मिसेज मुरारी को लगा कि त्रिपुरारी को या तो प्यार हो गया है या कोई लड़की पसंद आ गई।

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए कि त्रिपुरारी को ऑफिस के किसी काम से बाहर जाना पड़ा। वहाँ से उसने फोन पर खबर दी माँ मैंने विवाह कर लिया है कल आपकी बहू को लेकर आ रहा हूँ। बावरी माँ नाराज होने की बजाय आशीष देने लगी। उसके कमरे की सफाई करते हुए मिसेज मुरारी को कुछ दिन पहले आए सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय की बहुत सारी कटिंग्स मिलीं। पर उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और फेंक दिया। त्रिपुरारी वापस लौटा तो साथ में नई-नवेली दुल्हिन भी थी। मिसेज मुरारी यह देखकर खुशी से पागल-सी हो गईं और सुशील बहू के स्वागत के लिए आरती का थाल लेकर जैसे ही लौटीं तो बेहोश होते-होते बचीं- सुशील बहू के स्थान पर सुशील कुमार त्रिपुरारी संग खड़े मुस्कुरा रहे थे और मुरारी जी एक बार फिर परेशानी की मुद्रा को प्राप्त हो गए थे कि सुशील शब्द विशेषण है या संज्ञा।

-अरुण अर्णव खरे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़