टूट रहे परिवार हैं (कविता)

15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है। आज के समय में परिवार की स्थिति पहले जैसी नहीं रही है। रिश्तों नाते में भी वह पहली वाली बातें नहीं रह गई है। पहले परिवार बड़े हुआ करते थे लेकिन आज के समय में लोगों ने परिवार को संकुचित कर लिया है।
विश्व परिवार दिवस पर कवियत्री प्रियंका सौरभ ने इस कविता में परिवार के महत्व के बारे में बताया है। कवियत्री ने इस कविता के माध्यम से बता है आज के परिवार पहले जैसे परिवार नहीं है। आज के समय परिवार बहुत ही संकुचित हो गये हैं। कवियत्री ने बताया कि पहले परिवार में जो आपस में प्रेम भाव था वह आज के समय में समाज से गायब हो गया है।
बदल गए परिवार के, अब तो सौरभ भाव !
रिश्ते-नातों में नहीं, पहले जैसे चाव !!
टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव !
प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव !!
गलती है ये खून की, या संस्कारी भूल !
अपने काँटों से लगे, और पराये फूल !!
रहना मिल परिवार से, छोड़ न देना मूल !
शोभा देते हैं सदा, गुलदस्तें में फूल !!
होकर अलग कुटुम्ब से, बैठें गैरों पास !
झुँड से निकली भेड़ की, सुने कौन अरदास !!
राजनीति नित बांटती, घर-कुनबे-परिवार !
गाँव-गली सब कर रहें, आपस में तकरार !!
मत खेलों तुम आग से, मत तानों तलवार !
कहता है कुरुक्षेत्र ये, चाहो यदि परिवार !!
बगिया सूखी प्रेम की, मुरझाया है स्नेह !
रिश्तों में अब तप नहीं, कैसे बरसे मेह !!
बैठक अब खामोश है, आँगन लगे उजाड़ !
बँटी समूची खिड़कियाँ, दरवाजे दो फाड़ !!
विश्वासों से महकते, हैं रिश्तों के फूल !
कितनी करों मनौतियां, हटें न मन की धूल !!
सौरभ आये रोज ही, टूट रहे परिवार !
फूट कलह ने खींच दी, आँगन बीच दिवार !!
प्रियंका सौरभ
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
अन्य न्यूज़












