अंक ही बंदगी है (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Feb 18 2020 5:23PM

ज़िंदगी अंक नहीं लेकिन परीक्षा में पास होने के लिए अंक हासिल करने पड़ते हैं। अब उच्चस्तर पर फिर समझाया जा रहा है कि परीक्षा में मिलने वाले अंक सफलता का मापदंड नहीं होते, परीक्षा में फेल होने से न डरें।

संसार में जन्म लेने से पहले ही अंकों की गणना शुरू हो जाती है। अब तो, मोहल्ला, समाज, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, गरीब और अमीर की उत्कृष्ट एकजुटता में रहने वाली राष्ट्रीयता को भी अंको की धूप सेंकनी पड़ती है। प्रतिस्पर्धा की दुनिया में अंकों के व्यवसायी बताते हैं कि देश के ‘एक’ फीसदी अमीरों के पास ‘सत्तर’ फीसदी आबादी के ‘चार’ गुना से अधिक संपत्ति है। इसमें ‘एक’, ‘सत्तर’ और ‘चार’ अंक हैं। हमारी जीडीपी ‘पांच’ प्रतिशत है, इसमें ‘पांच’ अंक ही है। वैश्विक भूख सूचकांक में हम ‘117’ देशों में ‘112’ वें स्थान पर है इसमें ‘117’ व ‘112’ अंक माने जा सकते हैं।

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ज़िंदगी अंक नहीं लेकिन परीक्षा में पास होने के लिए अंक हासिल करने पड़ते हैं। अब उच्चस्तर पर फिर समझाया जा रहा है कि परीक्षा में मिलने वाले अंक सफलता का मापदंड नहीं होते, परीक्षा में फेल होने से न डरें। यहां तो फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ पढ़ाने वालों द्वारा, अपने बच्चों को सौ प्रतिशत अंक दिलाने के लिए दो सौ किस्म के प्रयास किए जाते हैं। आशंका है, विद्यार्थी और अध्यापक एक दूसरे को अंकों के दबाव से दूर रखें लेकिन जहां अभिभावकों के ख़्वाब, महँगी कोचिंग, अच्छा जीवन और प्रतियोगी समाज है वहां अंक स्वयं भोजन में शामिल हो जाते हैं। अच्छे दिनों के लिए सभी को अच्छे अंक चाहिए। चुनावी इम्तहान में पास होने के लिए पढ़ना नहीं पड़ता लेकिन वहां का रोल नंबर भी अंकों के आधार पर ही मिलता है। परीक्षा में पास होने के लिए एक एक अंक का हिसाब होता है। विजेता वही बनता है जिसके अंक ज़्यादा आते हैं।  

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बचपन से सुनते आए हैं कुछ करने के लिए कुछ बनना पड़ता है, अब कोचिंग मिल रही है कि कुछ बनने की ज़रूरत नहीं, करने की ज़रूरत है। वक़्त बदल गया है, अब हल्के फुल्के अंदाज़ में एक दूसरे को गंभीर सबक सिखाकर, जी भर कर बनाया जा रहा है। मां बाप की अच्छे अंक वाली कमाई भी बच्चों के ज्यादा अंकों के लिए होती है। अंकों की महत्ता कौन कम कर सकता है, कोई नहीं। जहां बचपन की सड़क पर संयम और ज़िम्मेदारी के मूलभूत सिद्धांतों की अनदेखी की जा रही हो वहां हर मोड़ पर समझना पड़ेगा कि अंक ही बंदगी है।

बंदगी, दिमाग लगाकर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा अंक मिलें, जीवन उद्देश्यों में सफलता हासिल हो और मानव जीवन सार्थक हो सके।  

- संतोष उत्सुक

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