जूते के प्रयोग की संभावनाएं (व्यंग्य)

shoe politics (Humour)
विजय कुमार । May 16 2018 2:34PM

यों तो जूता ऐसी चीज है, जिसके बिना काम नहीं चलता। चप्पल, सैंडल, खड़ाऊं आदि इसके ही बिरादर भाई और बहिन हैं। जूते के कई उपयोग हैं। घर के अंदर एक, बाहर दूसरा तो नहाने-धोने के लिए तीसरा।

यों तो जूता ऐसी चीज है, जिसके बिना काम नहीं चलता। चप्पल, सैंडल, खड़ाऊं आदि इसके ही बिरादर भाई और बहिन हैं। जूते के कई उपयोग हैं। घर के अंदर एक, बाहर दूसरा तो नहाने-धोने के लिए तीसरा। आजकल तो सब गडमगड हो गया है; पर 25-30 साल पहले तक क्या मजाल कोई बिना जूते-चप्पल उतारे रसोई में घुस जाए। 

लेकिन समय बदला, तो जूते के उपयोग भी बदल गये। मान और अपमान दोनों में इसकी जरूरत पड़ने लगी। किसी को जूता मारना या जूते में उसे कुछ गंदी चीज खिलाना-पिलाना अपमान के चरम प्रतीक बन गये। दूसरी और भरत जी ने श्रीराम की खड़ाऊं सिंहासन पर रखकर ही 14 वर्ष तक राजकाज चलाया। श्रीकृष्ण ने भी एक बार द्रौपदी की चप्पलें अपने पल्लू में सहेज ली थीं, जिससे भीष्म पितामह से उसकी भेंट की बात गुप्त ही रहे। 

आजकल विवाह में सालियों द्वारा जीजाश्री के जूते चुराना बाकायदा एक परम्परा बन गयी है। इसके बाद छेड़छाड़, चुहलबाजी और कुछ लेनदेन के लिए होने वाली सौदेबाजी देखने लायक होती है। बड़े लोग इसे बच्चों की मौजमस्ती कहकर नजरें फेर लेते हैं। यह बीमारी कब और कहां शुरू हुई, यह शोध का विषय है; पर ‘हम आपके हैं कौन’ फिल्म ने इसे राष्ट्रव्यापी जरूर बना दिया है।

हमारे शर्मा जी नेकटाई नहीं लगाते। वे ‘गर्दन लंगोट’ कहकर इसकी हंसी उड़ाते हैं; पर जब उनका विवाह हुआ, तो दर्जी की सलाह पर सूट के साथ टाई लगाना उन्हें जरूरी लगा। ये बात 40 साल पुरानी है। वे बाजार गये, तो दुकानदार ने टाई की कीमत 25 रुपये बतायी। शर्मा जी बोले, ‘‘भाई, इतने में तो जूते आ जाते हैं ?’’ दुकानदार भी कम मुंहफट नहीं था। उसने कहा, ‘‘पर गले में जूते टांगकर आप शादी में कैसे लगेंगे, ये भी तो सोचिए ? शर्मा जी की बोलती बंद हो गयी और उन्होंने चुपचाप टाई ले ली। यद्यपि शादी के बाद से वह बक्से में रखी है और उस दुर्घटना की वार्षिकी पर ही निकलती है। 

राजनीति का भी जूते से बहुत निकट का संबंध है। इससे ही भारत में ‘खड़ाऊं मुख्यमंत्री’ का दौर आया। म.प्र. में मुख्यमंत्री उमा भारती को कुछ दिन के लिए जेल जाना पड़ा। उन्होंने बाबूलाल गौर को यह सोच कर कुर्सी सौंप दी कि जेल से आने पर उन्हें वह मिल जाएगी; पर बाबूलाल को कुर्सी का रंग-ढंग ऐसा भाया कि वे उसे छोड़ने को तैयार नहीं हुए। वो दिन है और आज का दिन, उमा भारती को वह कुर्सी नहीं मिल सकी। दिल्ली के मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के साथ भी यही हुआ। यद्यपि इस मामले में जयललिता अपवाद रहीं। उन्होंने जिस पनीरसेल्वम् को दो बार खड़ाऊं मुख्यमंत्री बनाया, उसने जयललिता के जेल से बाहर आते ही बिना एक मिनट की देर लगाये कुर्सी उन्हें सौंप दी।

राजनेताओं को जिन्दाबाद के साथ मुर्दाबाद और फूल माला के साथ कभी-कभी जूतों की माला भी मिल जाती है। जनसभा में जूता फेंकने की घटनाएं इधर काफी बढ़ी हैं। इससे नेता के साथ जूतेबाज का भी नाम हो जाता है। कुछ लोगों का तो राजनीतिक कैरियर ही जूते ने चमकाया है। यद्यपि अभी तक किसी ने जूता चुनाव चिह्न नहीं लिया; पर राजनीति संभावनाओं का खेल है। हो सकता है कभी यह भी हो जाए।

लेकिन जूते का जैसा मीठा उपयोग इसराइल में हुआ है, उसने सबके मुंह पर जूता मार दिया है। पिछले दिनों जापान के सम्राट सपत्नीक वहां गये। प्रधानमंत्री के साथ रात में भोजन करते हुए अंत में सबको जो मीठा परोसा गया, वह जूते में था। सुना है वह जूता चाकलेट से ही बना था। इसलिए पहले सबने उसमें रखी मिठाई खायी और फिर जूता। एक अंग्रेज को पंजाब में मक्के की मोटी रोटी पर रखकर साग दिया गया। उसने रोटी को प्लेट समझा और साग खाकर प्लेट वापस कर दी। काश, इसराइली प्रधानमंत्री निवास का कोई रसोइया वहां होता, तो उसे प्लेट का महत्व समझा देता।

पर इस घटना से जापान वाले बहुत नाराज हैं। भारत की तरह वहां भी जूते को रसोई और पूजागृह से दूर रखा जाता है; पर यहां तो मिठाई ही जूते में परोस दी गयी। दुनिया भर में लोग इस पर अपनी-अपनी दृष्टि से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं; पर मुझे लगता है कि इस घटना ने राजनीति के बाद कूटनीति में भी जूते के द्वार खोल दिये हैं। पहनने और मारने से लेकर खाने की मेज तक तो वह पहुंच ही गया है, अब इसके बाद वह कहां जाएगा, भगवान जाने।     

-विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़