खेलों की दुनिया और रायचंद (व्यंग्य)

sports world (Satire)

हर मौसम में हमें ऐसे अनेक ज्ञानी लोग गली-चौराहों पर मिल जाते हैं। खास मौसमों में तो इनको अपने एक्सपर्ट कमेंट्स सुनाने के लिए अतृप्त आत्माओं सा भटकते और गटर के कीड़ों सा बिलबिलाते देखा गया है।

हमारे देश में रायचंदों और स्वयंभू एक्सपर्ट्स की कोई कमी नहीं है। हर मौसम में हमें ऐसे अनेक ज्ञानी लोग गली-चौराहों पर मिल जाते हैं। खास मौसमों में तो इनको अपने एक्सपर्ट कमेंट्स सुनाने के लिए अतृप्त आत्माओं सा भटकते और गटर के कीड़ों सा बिलबिलाते देखा गया है। क्रिकेट का सीजन चल रहा हो तो इनके अंदर गेंद दर गेंद कमेंट्स इस तरह उफनने लगते हैं कि यदि समय पर बाहर ना निकले तो बम-ब्लास्ट्स सरीखा कुछ भी घट सकता है। मैं अपने समय के ऐसे ही एक स्वनाम धन्य विशेषज्ञ को जानता हूँ जो गावस्कर और विश्वनाथ के एक-एक ड्राइव और स्कवायर कट पर ऐसा रिसर्च पेपर प्रेजेण्ट कर देते थे कि सामने वाला भौंचक हो देखता रह जाए। मैं भी एक बार रह गया था जब उनके श्रीमुख से ये सुना- टोनी ग्रेग की इस लेट आउट-स्विंगर पर गावस्कर ने बैकफुट पर जाकर क्या शानदार स्ट्रेट ड्राइव लगाया और फिर विश्वनाथ के स्कवायर कट को यदि रोकना है तो ब्रियरली को मिडविकेट और लांग आन पर फील्डर लगाने ही होंगे- वरना विश्वनाथ को रोक पाना असंभव है। मेरी इच्छा हुई कि उन्हें बताऊँ स्ट्रेट ड्राइव गावस्कर ने फ्रंट फुट पर लगाई है और विश्वनाथ को रोकने के लिए मिडविकेट नहीं लगी और पाइंट पर फील्डर की जरूरत है जो ब्रियरली ने लगा रखे हैं, पर मैं उनके दूसरे चेलों को देखकर चुप रह गया। कुछ दिनों बाद वह फिर टकरा गए... इस बार वह टेनिस मोड में थे। विम्बलडन का लाइव प्रसारण चल रहा था और चालू थे उनके एक्सपर्ट्स कमेंट्स- "उन्हें इस बाल पर क्रास-कोर्ट वॉली नहीं लगानी चाहिए थी बल्कि बाल को लॉब करना था।" 

इस बार मैंने उन्हें टोकने की गलती कर दी- "पर पाइंट तो मिला उनको" उन्होंने मुझे खा जाने वाली नजरों से देखा- "क्या ये प्रेम या युद्ध का मैदान है जहाँ सब जायज है- पाइंट मिल गया बस काम हो गया... लॉब वाले पाइंट को वॉली से लेना टेक्नीकली गलत है, वो तो मेक्नरो रॉन्ग फुट पर चला गया इसलिए बोर्ग को पाइंट मिल गया... सोचो यदि मेक्नरो रॉन्ग फुट पर ना जाता तो स्कोर 40-30 नहीं 30-40 होता -- शर्तिया पाइंट के लिए लॉब ही उचित रहता... पर तुमसे क्यूँ मैं यह बहस कर रहा हूँ जिसके लिए सफेद अक्षरों का मतलब भी भैंस है।" अब इतनी बेइज्जती के बाद भला मैं वहाँ क्या करता रुक कर, निकल लिया चुपचाप सिर झुका कर।

फुटबाल विश्वकप शुरु हुआ तो फुटबाल-फीवर चढ़ना लाजिमी था, सो खूब चढ़ा उन पर। मैच के दिनों में वह बेल्जियम के मैनेजर जैसे उत्तेजित दिखाई देते और माथे का तापमान 106 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता। बहुतों की तरह ब्राजील की हार पर वह भी दुखी थे। उनका मानना था- "15वें मिनट पर कूटिन्हो के लेफ्ट फुटर पर पोल से टकरा कर लौटती बाल पर नेमार ने यदि हेडर ना कर दाएँ पैर से किक लगाया होता तो गोल निश्चित था- इसके बाद ब्राजील हार नहीं सकता था।

"पर गुरुदेव- तीन-तीन डिफेंडर उस समय नेमार पर टूट पड़े थे- वह कैसे बाल पर दाएँ पैर से किक लगा पाते"- एक परेशान शिष्य से नहीं रहा गया अतएव पूछ लिया। "तू फुटबाल बन कर लेट यहाँ पर- मैं बताता हूँ किक लगाकर... तू गुड़ है तो गुड़ ही रह, शक्कर बनने की कोशिश मत करो, मैंने कह दिया तो बस मान लो, व्यर्थ ही अर्जेण्टीना के मेसी की तरह टाँग मत अड़ाओ"- वह झल्लाते हुए बोले।

"ठीक है गुरुदेव- पर क्या ब्राजील केवल इसी कारण हार गया"

"और भी कारण हैं हारने के-- मैंने उनके मैनेजर को पहले ही ट्विट करके चेता दिया था बेल्जियम से बच के रहने का, पर उनने नहीं मानी, मैंने उनसे फार्मेशन बदल कर खेलने को कहा था 1-4-2-3-1 के स्थान पर 1-3-2-5 फिर देखते कैसे नहीं जीतते वह।"

"पर गुरुदेव- ऐसी किसी फार्मेशन के बारे में तो सुना नहीं कभी"

"वही तो-- मेरी मान कर इस फार्मेशन से खेलते एक बार और परिणाम देखते"

"1-2 के स्थान पर 0-6 होता"- चेला बुदबुदाता हुआ निकल लिया। गुरुदेव उसे जाता हुआ देखते रहे।

-अरुण अर्णव खरे

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