पर्यावरण सुरक्षा में हम आगे (व्यंग्य)

environment
Creative Commons licenses
संतोष उत्सुक । Apr 5 2025 12:01PM

अध्ययन में हमें पर्यावरण सुरक्षा में आगे बताया गया है। ताज़ा सुगंधित बयार जैसे वाक्य हैं, जैसे हमारे अन्दर पर्यावर्णीय नैतिकता है। हम प्रकृति को साधन नहीं जीवन का पवित्र तत्व मानते हैं। हम अपनी आदतें बदलते हैं ताकि पर्यावरण को नुकसान कम हो।

विदेशियों के अध्ययन अक्सर ऐसे होते हैं जिनमें हमारी उपलब्धियों को कम कर दिखाया जाता है। स्वाभाविक है हम विश्वगुरुओं को बुरा लगता है। हमें तो ऐसी बातें चाहिएं जो हमें स्वाद लगें। पिछले दिनों एक अध्ययन पढ़ने का सौभाग्य मिला जिसने मुझे आत्मसम्मान से भर दिया। हम सभी बधाई के पात्र लगने लगे। मुझे वह गाना लुभाने लगा, ‘आज मैं ऊपर आस्मां नीचे, आज मैं आगे ज़माना है पीछे’।

अध्ययन में हमें पर्यावरण सुरक्षा में आगे बताया गया है। ताज़ा सुगंधित बयार जैसे वाक्य हैं, जैसे हमारे अन्दर पर्यावर्णीय नैतिकता है। हम प्रकृति को साधन नहीं जीवन का पवित्र तत्व मानते हैं। हम अपनी आदतें बदलते हैं ताकि पर्यावरण को नुकसान कम हो। हम यह मानते हैं कि जो हम करते हैं उसका असर अगले जन्म पर पड़ता है, अच्छे कर्म से बुरे कर्म मिटते हैं। प्लास्टिक का उपयोग कम करते हैं। पर्यावरण हितैषी चीज़ें खरीदते हैं। प्रकृति मानवीय शरीर का प्रतिबिम्ब है। सूर्यास्त के बाद फूल पत्तियां नहीं तोड़ते क्यूंकि तब वे विश्राम कर रहे होते हैं। सांप को भी पूजनीय माना जाता है।

इसे भी पढ़ें: राजनीतिक पुतले और गर्मी का मौसम (व्यंग्य)

इस अध्ययन को पढ़ने के बाद लगा, यह ख़ास लोगों पर ही किया गया है। हमारे समाज में भी कई तरह के खास लोग हैं उन पर कोई अध्ययन नहीं करता। अगर अधिकांश जनता पर अध्ययन किया जाए तो पता चलेगा कि हमारे अपने लोग ही मानते हैं कि भारतीय समाज में सभी तरह की नैतिकता कम हो रही है। रोज़ प्रमाण मिलते हैं कि हम प्रकृति को साधन ही मानते हैं। जीवन का शुद्ध व्यावसायिक हिस्सा मानते हैं जिससे जितना फायदा उठा लिया जाए कम है। हम अपनी आदतें बदलने के लिए बिलकुल तैयार नहीं। पर्यावरण को निरंतर हो रहे नुकसान से हमें क्या लेना। हम किसी हद तक यह मानते हैं कि जो हम करते हैं उसका असर अगले जन्म पर पड़ता है। अच्छे कर्म से बुरे कर्म मिटाने के लिए हमारे यहां पूजा पाठ करके, कुछ विशेष जगहों पर उपलब्ध जल में ख़ास मौकों पर स्नान कर पापों से मुक्ति पाने का प्रावधान उपलब्ध है। जिसमें विशेष लोगों के लिए आरक्षण की सुविधा भी है।  

अध्ययन में बताया गया कि प्लास्टिक का उपयोग कम करते हैं लेकिन हम तो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं करते। पर्यावरण अनुकूल वस्तुएं सब कहां खरीद सकते हैं। हम प्रकृति को मानव जीवन के लिए मानते हैं।  सूर्यास्त के बाद फूल पत्तियां नहीं तोड़ते लेकिन जब सुरक्षा विश्राम आसन में हो तो वृक्षों की हत्या करते हैं। हम सभी रंग और किस्म के सांप, बिछुओं को पूजनीय मानते हैं। 

इस अध्ययन में लोचा यह रहा कि यह हमारे पूर्वशासक अंग्रेजों के देश में रहने वालों के बारे में है। लेकिन खुश होने का हक हमें भी है। अपने जैसों के बारे में अच्छी बातें किसे अच्छी नहीं लगती।   

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़