जहाँ धोखा भी ‘सर्टिफाइड’ है! (व्यंग्य)

वैवाहिक प्रस्ताव के नाम पर लड़की पुरानी चालें चलती है जैसे कोई जांच अधिकारी टैक्स रिटर्न पर। सवाल यह नहीं है कि दिल चला या नहीं, बल्कि वह यह देखती है कि खर्चा कौन उठाएगा। लड़के की बड़ी-बड़ी उम्मीदें लड़की की ‘परफॉर्मेंस रिव्यू’ में चुपचाप गुम हो जाती हैं।
एक लड़की को पटाना, बेटा, कोई आम खेल नहीं। यह तो जिंदगी के अखाड़े में उतरने जैसा है, जहां समझदारों की बाजी लगती है और जोश में आए हर खिलाड़ी का पसीना छूट जाता है। लड़का सोचे, दिल की बात सीधी-सादी कह दूं, लड़की सुनते ही आधा सैद्धांतिक स्कूल खोल देती है और ‘क्या-क्या पूछना है’ का फार्म जमा करवाती है। फूल लेकर जा, तो मानो सरकारी दस्तावेजों की लंबी सूची के बीच छांटना पड़े कि ये ‘पेपर्स’ सही हैं या नकली। लड़का जितना भी मशक्कत करे, लड़की की ‘फिरकी’ ऐसी कि दो तीन बार ‘ना’ बोले, ताकि लड़के की मेहनत पर हक़ जता सके, फिर चुपके से ‘हाँ’ भी कह दे, ताकि भ्रम बना रहे कि लड़का कामयाब हुआ।
वैवाहिक प्रस्ताव के नाम पर लड़की पुरानी चालें चलती है जैसे कोई जांच अधिकारी टैक्स रिटर्न पर। सवाल यह नहीं है कि दिल चला या नहीं, बल्कि वह यह देखती है कि खर्चा कौन उठाएगा। लड़के की बड़ी-बड़ी उम्मीदें लड़की की ‘परफॉर्मेंस रिव्यू’ में चुपचाप गुम हो जाती हैं। लड़की के लिए इश्क कोई खेल नहीं, न ही कोई सिनेमा, एक बड़ा ‘प्रोजेक्ट’ है अपने आप में, जिसमें हर कदम पर रोक-टोक, डबल चेकिंग और को-ऑर्डिनेशन की ज़रूरत होती है। लड़का सोचता है कि कब खत्म होगा ये ‘इम्तिहान’, पर लड़की की ‘पॉलिसी’ कहती है, ‘चक्की पीसती रहेगी।’
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प्यार के सुर छेड़ो, तो लड़का कविताओं में खो जाए, मगर लड़की उसे गणित की क्लास में बैठा देती है। उसकी हर मुस्कान के पीछे छिपा होता है सवाल, “अब तक क्या दिया, आगे क्या मिलेगा?” लड़के का इश्क़ कब ‘फुल पैकेज’ में बदलेगा, यह लड़की का सबसे बड़ा मसला है। डेटिंग ऐसा सरकारी दफ्तर है जहां काम तो करना है, लेकिन नियम और शर्तें रोज बदलती हैं। लड़की के ‘ना’ में भी गहरी चालाकी रहती है, वह ‘पॉलिसी दस्तावेज’ की तरह है, जिसे समझना जितना मुश्किल उतना जरूरी।
हर दिन लड़का नए-नए आइडियाज़ लेकर आता है, लड़की की प्रतिक्रिया ‘फ्लिपकार्ट रिव्यू’ की तरह—जहां पाँच सितारे हों या न हों, एक भी नेगेटिव कमेंट उसे नीचे गिरा सकता है। लड़का ‘मैं सोचूंगी’ पर मुस्कुराता है, लेकिन वह ‘सोचना’ ऐसा होता है जैसे हार्ड कॉपी के लिए महीनों इंतजार करना। लड़की से दोस्ती का ‘नेटवर्क’ अलग ही लेवल का ऑफिशियल नेटवर्क है, जो लड़के की ‘रिपोर्ट कार्ड’ रोजाना अपडेट करता है। दोस्त तय करते हैं लड़का ‘सीधा-सादा’ है या ‘फर्जी’। लड़का चाहे कितना दम दिखाए, ‘फील्ड एजेंट्स’ हमेशा मध्यम रेटिंग दे देते हैं। लड़की की हँसी में छुपे ताने हर बार ‘सर्टिफाइड’ टेस्ट जैसा लगते हैं।
आख़िर में लड़का, थक-हारा, लड़खड़ाता हुए अपने सारे सपनों के दस्तावेज फाड़ देता है। लड़की आराम से कहती है, “कभी-कभी फेल होना भी ज़रूरी होता है।” यह रिश्ता किस्सा नहीं, व्यंग्य की किताब बन जाती है—जो जितनी हँसाती है, उतनी छूती भी है। लड़का सोचता है कि उसने सब किया, पर लड़की का ‘गाइडलाइन मैन्युअल’ बिलकुल अलग होता है। यह प्यार नहीं, एक खेल है, जिसमें नियम उसकी मर्ज़ी से चलते हैं। तो भाई, समझ जा कि लड़की पटाना कोई आसान नहीं, बल्कि रोज़ाने का ‘इमोशनल ड्रामा’ देना है। यहाँ दिल जीतना नहीं, ‘ट्रस्ट बैलेंस’ बनाना ज़रूरी है।
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)
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