लॉकडाउन और आम कर्फ्यू से अलग जनता कर्फ्यू का कॉन्सेप्ट, देशहित में बनाएं इसे यादगार

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अभिनय आकाश । Mar 21 2020 6:40PM

जनता कर्फ्यू को हम कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि ये कर्फ्यू जनता का खुद पर लगाया गया एक प्रतिबंध है। यानी इसके लिए पुलिस या सुरक्षाबलों की तरफ से कोई भी पाबंदी नहीं लगाई जाएगी। लोग खुद ही अपने काम टालेंगे और बाहर निकलने से बचेंगे।

बचपन में जब परीक्षा से ठीक पहले आप निराश होते होंगे और अंदर एक डर रहता था कि मेरी तैयारी कैसी होगी और मुझे अच्छे नंबर मिलेंगे या नहीं जैसी आशंकाएं आपको घेर लेती थी। तब पिता आगे आकर एक गाइड के माफिक आपकी हिम्मत बढ़ाते थे और किसी भी समस्य पर चितिंत होने की बजाए उससे लड़ने का हौसला देते थे। इस वक्त संकट की स्थिति है और कोरोना ने भारत ही नहीं पूरे विश्व में कोहराम मचाया हुआ है। लोग डरे हुए हैं और तमाम तरह की अफवाहें भी लोगों को और डराने का काम कर रही हैं। ऐसे में इस संकट के समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अभिवावक की तरह न ही सिर्फ लोगों का साहस बढ़ाया बल्कि उन्हें तमाम आशंकाओं को निर्मूल कर उचित नियमों के तहत चलते हुए इस वायरस को दूर करने का रास्ता भी सुझाया। यह देश के लिए बहुत बड़ा दिन है। क्योंकि ये पहला मौका है जब देश के प्रधानमंत्री ने किसी बीमारी के खिलाफ पूरे देश से एकजुट होने की अपील की है। आप सभी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश सुना होगा। आज हम उस संदेश का विश्लेषण करके आपको बताएंगे कि पीएम आपसे और दुनिया से क्या कहना चाह रहे हैं और उनकी इन बातों के अंदर क्या बातें छिपी हैं। साथ ही आपको पीएम द्वारा घोषित जनता कर्फ्यू के मायने भी समझाएंगे। साथ ही यह लाकडाउन और आम कर्फ्यू से कैसे अलग है ये भी बताएंगे।

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प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में यह साफ कर दिया कि मामला वाकई गंभीर है और इसे हल्के में मत लीजिए। लेकिन इस भाषण के बाद हर किसी ने अपनी-अपनी तरह से इस पर प्रतिक्रिया दी। कुछ चुनिन्दा लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की इस मांग का समर्थन किया। लेकिन कुछ लोग अपनी घृणा की विचारधारा में इतना गहरा उतर चुके हैं कि वो कोरोना जैसी महामारी के बीच भी अपनी घृणा और सरकार विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने से नहीं चुके और तमाम तरह की अफवाहों को जन्म देने की कोशिश भी की। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने बताया है कि भारत संकल्प और संयम की शक्ति से कोरोना वायरस को हरा सकता है। ये लड़ाई पूरे भारत की है और सभी को एक साथ मिलकर इसे लड़ना होगा। यानी उन्होंने एकता पर बहुत जोर दिया है।

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22 मार्च यानी रविवार के दिन भारतीयों के संयम और संकल्प की सबसे बड़ी परीक्षा का दिन है। इस दिन पहली बार सुबह सात बजे से रात 9 बजे तक लोग अपनी इच्छा से अपने ऊपर कर्फ्यू लगाएंगे। इसे जनता कर्फ्यू का नाम दिया गया है और इसी दिन यानी 22 मार्च को शाम पांच बजे देश के लोग उन लोगों को धन्यवाद दे सकते हैं जो अपनी जान की परवाह किए बगैर आपकी और हमारी जिंदगियों को बचाने में जुटे हैं। इनमें देश के डॉक्टर हैं, मेडिकल स्टाफ है, नर्स हैं जरूरी सेवाओं को आप तक पहुंचाने वाले लोग हैं और मीडियाकर्मी भी शामिल हैं। यानी इस रविवार आप इन सभी लोगों को धन्यवाद दे सकते हैं तालियां बजा सकते हैं, थालियां बजा सकते हैं और पूरे देश को ये बता सकते हैं कि हम इन लोगों के प्रति कितने एहसानमंद हैं। ये सब आपके संकल्प की शक्ति से होगा। लेकिन संयम की शक्ति से आपको सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाना होगा। यानी भीड़-भाड़ वाली जगह से दूर रहना होगा। अगर आपको लगता है कि आप तो स्वस्थ हैं और आप जब चाहे घर से बाहर निकल सकते हैं, तो आप अपने ही नहीं बल्कि अपने पूरे परिवार के साथ अन्याय करेंगे। 

सबसे पहले दो लाइन में जनता कर्फ्यू का मतलब समझें

जनता कर्फ्यू को हम कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि ये कर्फ्यू जनता का खुद पर लगाया गया एक प्रतिबंध है। यानी इसके लिए पुलिस या सुरक्षाबलों की तरफ से कोई भी पाबंदी नहीं लगाई जाएगी। लोग खुद ही अपने काम टालेंगे और बाहर निकलने से बचेंगे। सोसाइटी में भी निकलने से बचेंगे। हालांकि जो लोग आवश्यक सेवाओं में हैं वो घर से काम के लिए निकल सकते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से बहाल रहेगा।

कौन लोग निकल सकते हैं बाहर?

जनता कर्फ्यू के दौरान वैसे तो काफी जरूरी काम पड़ने पर कोई भी बाहर निकल सकता है, लेकिन इस दौरान कुछ लोगों को खुद पीएम मोदी ने अपनी सेवाओं में बने रहने की अपील की है। पीएम मोदी ने खासतौर पर डॉक्टरों, सफाईकर्मियों और मीडियाकर्मियों का जिक्र किया। मतलब जनता कर्फ्यू के दौरान ऐसी सेवाएं देने वाले लोगों को घर से निकलना होगा।

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क्यों लगाया गया है?

देश कोरोना वायरस के खतरे का सामना कर रहा है। अभी तक कोरोना वायरस का इलाज खोजा नहीं जा सका है। इस बीमारी से निपटने के लिए बचाव ही एक तरीका है। लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने से परहेज करना चाहिए ताकि वे किसी संक्रमति व्यक्ति के संपर्क में आकर खुद भी संक्रमित न हो जाएं। अभी तक यह बीमारी भारत में नियंत्रण में है। इस चरण में अगर सावधानी बरती जाएगी तो बीमारी को हराया जा सकता है नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है।

जनता कर्फ्यू के दिन और क्या खास अनुरोध किया गया है?

बड़ी संख्या में डॉक्टर और कुछ लोग कोरोना के खतरे से लड़ रहे हैं। वे मरीजों को जरूरी सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। कोरोना उनके लिए भी कम खतरनाक नहीं है। लेकिन वे मानवता की सेवा के लिए डटे हुए हैं। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने की पीएम मोदी ने अपील की है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि अपने घरों के दरवाजों, खिड़कियों और बालकनी में खड़े होकर मानवता की सेवा कर रहे लोगों का आभार व्यक्त करें।

जनता कर्फ्यू और कर्फ्यू में क्या फर्क है?

आम जिंदगी में अक्सर कर्फ्यू शब्द आपको सुनने को मिल ही जाता होगा। कहीं पर कुछ दंगे हुए और उस क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया। वहीं कभी ये भी सुनने को आता है कि उस इलाके में धारा 144 लागू है। अमूमन जब लोगों का एक समूह सार्वजनिक शांति भंग करने के इरादे से इकट्ठा होता है, तो ऐसे समूह को गैर-कानूनी समूह के रूप में जाना जाता है और ऐसी प्रक्रियाओं को रोकने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 और कर्फ्यू जैसे प्रावधानों का उपयोग किया जाता है। लेकिन कल के बाद से जो शब्द सबसे ज्यादा सुर्खियों में है वो है 'जनता कर्फ्यू'। जनता कर्फ्यू और आम कर्फ्यू में बहुत बड़ा अंतर है। जनता कर्फ्यू लोगों पर खुद से लगाई गई रोक है, मतलब यह एक तरह का अनुरोध है। लोगों को खुद अपने घरों तक सीमित रखना है। वैसे अगर वे घर से बाहर निकलेंगे तो कोई ऐक्शन या कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन कर्फ्यू प्रशासन की ओर से लगाया जाता है। आम कर्फ्यू जनता से अनुरोध नहीं होता है बल्कि उनके ऊपर प्रशासन द्वारा लगाया जाता है। आम कर्फ्यू की स्थिति में नियम तोड़ने वाले इंसान पर कार्रवाई की जा सकती है। आम कर्फ्यू अकसर हिंसा वगैरह की स्थिति में लगाया जाता है लेकिन जनता कर्फ्यू कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने के लिए है।

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लॉकडाउन क्या है?

लॉकडाउन और कर्फ्यू में काफी समानता है। दोनों प्रशासन द्वारा लगाया जाता है। लेकिन जनता कर्फ्यू इन दोनों से अलग है। इसमें लोगों को खुद से अपने घरों तक सीमित रखना है। उन पर प्रशासन का कोई दबाव नहीं होगा। हां सिर्फ एक नैतिक दबाव है। लॉकडाउन एक तरह की आपातकाल व्यवस्था होती है। अगर किसी क्षेत्र में लॉकडाउन हो जाता है तो उस क्षेत्र के लोगों को घरों से निकलने की अनुमति नहीं होती है। जीवन के लिए आवश्यक चीजों के लिए ही बाहर निकलने की अनुमति होती है। अगर किसी को दवा या अनाज की जरूरत है तो बाहर जा सकता है या फिर अस्पताल और बैंक के काम के लिए अनुमति मिल सकती है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के काम से भी बाहर निकलने की अनुमति मिल सकती है।

पहले के दिनों में युद्ध के समय लोग घरों की लाइट बंद कर लेते थे। इसी तरह से रोम में भी किया गया ताकि जरूरत के समय इसे अपनाया जा सके। इसी तरह प्रथम विश्व युद्ध के वक्त लोग सायरन बजा कर संकेत देते थे कि वो तहखाने में चले जाएं। 

70 साल पुराना इतिहास

जब देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तो उस समय इंदू लाल याग्निक भी गुजरात में अलख जगा रहे थे। वो अंग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ अलख जगा रहे थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से विरोध जताने के लिए जनता कर्फ्यू की शुरुआत की थी। 1956- 1960 जब अलग गुजरात राज्य बनाने का अंदोलन चल रहा था तब भी इस तरह के क़दम उठाए गए थे। आजादी के बाद उनकी पहल पर नेहरू की सभा में जनता कर्फ़्यू की वजह से लोग शामिल ही नहीं होते थे। बस कुछ हज़ार लोग उनकी सभा में जाते थे, जबकि वो इतने बड़े नेता थे। नेहरू के सामने इंदुलाल याग्निक बहुत छोटे नेता थे, लेकिन उनकी सभा में हज़ारों की संख्या में लोग आते थे।

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इससे पहले देश में कब लगा जनता कर्फ़्यू?

देश में SARS बीमारी हो या भी MARS बीमारी, दोनों ही स्थितियां भयावह थीं। लेकिन कभी इस तरह का जनता कर्फ़्यू जनता ने ना तो सुना ना ही देखा। कोरोना वायरस पूरी तरह से नई बीमारी है, इसलिए अब तक इससे निपटने का ऐसा प्रयास देखने को नहीं मिला है जो हर देश में लागू किया जा सके। जनता कर्फ़्यू उसी तरह का एक नायाब पहल है। 

क्या करें ऐसा जो ये यादगार बन जाए

भारत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हम लोग घने अंधकार में भी सवेरा ढूंढ़ लेते है। कोरोना वायरस का भी एक सबसे बड़ा पॉजिटिव यह है कि लोगों को अपनी फैमिली के साथ टाइम स्पेंड करने का मौका मिल रहा है। 

मनपसंद खाना खाएं और नींद पूरी करें। 

बच्चों के साथ कुछ गेम्स खेलेंगे। जॉब के कारण उन्हें टाइम नहीं दे पाते। एक दिन पूरा समय उन्हें देंगे।

मल्टीप्लेक्स बंद है। फिल्म देखने बाहर नहीं जा सकते लेकिन घर पर मनपसंद फिल्म देख सकते हैं।

यदि आप धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तो सुंदरकांड का पाठ कर सकते हैं, अखंड रामायण एक शानदार विकल्प है। 

कोरोना वायरस के खिलाफ इस युद्ध को जीतने के लिए आपको वसुदेव कुटुबंकम की भावना से काम करना होगा। अपनी ही नहीं अपने से कमजोर लोगों की मदद करनी होगी। आने वाले कुछ दिन भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति का इम्तिहान लेंगे और आपको ये इम्तिहान शानदार नंबरों से पास करना है।

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