कैसे भारत में बदल दी खेती की सूरत, कहा जाने लगा हरित क्रांति का जनक, एमएस स्वामीनाथन से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप?

नॉर्मन बोरलॉग भले ही हरित क्रांति के जनक रहे हों, लेकिन भारत में इसके वास्तुकार निस्संदेह मोनकोम्ब संबाशिवन स्वामीनाथन थे। महान कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का निधन हो गया है। स्वामीनाथन को फादर ऑफ ग्रीन रिवॉल्यूशन भी कहा जाता है।
प्रधानमंत्री का भाषण इस देश में कहीं भी हो तो उसमें किसानों का जिक्र जरूर होता है। जब बात किसानों की हो तो उनकों लेकर प्रधानमंत्री का दर्द भी जाग सा जाता है। किसानों की बात के साथ ही देश में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले महान कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का जिक्र भी अक्सर हो ही जाता है।नॉर्मन बोरलॉग भले ही हरित क्रांति के जनक रहे हों, लेकिन भारत में इसके वास्तुकार निस्संदेह मोनकोम्ब संबाशिवन स्वामीनाथन थे। महान कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का निधन हो गया है। स्वामीनाथन को फादर ऑफ ग्रीन रिवॉल्यूशन भी कहा जाता है।
इसे भी पढ़ें: हरित क्रांति के जनक MS Swaminathan का निधन, 98 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
भारत की हरित क्रांति के वास्तुकार
महान कृषि वैज्ञानिक का 7 अगस्त को 98 वर्ष के होने के बाद निधन हो गया। 1955 में मुश्किल से 30 वर्ष के थे। जब उन्होंने जापान के प्रसिद्ध गेहूं आनुवंशिकीविद् हितोशी किहारा से नोरिन-10, एक अर्ध-बौनी किस्म के बारे में सुना था। स्वामीनाथन, 1954 के अंत में नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में एक सहायक साइटोजेनेटिकिस्ट के रूप में शामिल हुए थे। यूके से पीएचडी और अमेरिका के विस्कॉन्सिन में दो साल के पोस्टडॉक्टरल कार्यकाल के बाद था, जहां उन्होंने आलू आनुवंशिकी और ठंढ और रोग प्रतिरोधी किस्मों के प्रजनन पर काम किया था। आईएआरआई के वनस्पति विज्ञान प्रभाग में रहे जिसे बाद में उन्होंने जेनेटिक्स प्रभाग का नाम दिया गया। स्वामीनाथन का ध्यान गेहूं पर केंद्रित हो गया। वह उर्वरक अनुप्रयोग के प्रति संवेदनशील अर्ध-बौनी किस्मों के प्रजनन की आवश्यकता के प्रति आश्वस्त थे। पारंपरिक गेहूं की किस्में लंबी और पतली थीं। इनके पौधे लम्बे एवं कमजोर तने वाले 4.5-5 फुट ऊँचे हो जाते थे। जब उनके कान अच्छी तरह से भरे दानों से भारी हो जाते थे, तो वे जमीन पर गिर जाते थे या झुक जाते थे। स्वामीनाथन के मन में ऐसी नई किस्में थीं जिनके पौधे टिक नहीं पाते और उच्च उर्वरक खुराक को सहन कर सकते थे। एक टन गेहूं पैदा करने के लिए 25 किलोग्राम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। यदि अनाज की पैदावार 4 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ानी थी, तो 100 किलोग्राम नाइट्रोजन डालना आवश्यक था। स्वामीनाथन को पता था कि इसका समाधान गेहूं के पौधों की वास्तुकला को बदलने में है ताकि वे अधिक पोषक तत्वों को अवशोषित कर सकें और उन्हें अनाज में परिवर्तित कर सकें। स्वामीनाथन ने शुरू में उत्परिवर्तन के माध्यम से अर्ध-बौनी गेहूं की किस्मों को विकसित करने की कोशिश की। स्वामीनाथन को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार सहित कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इसके अलावा, एचतके फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्तार और इंदिरा गांधी पुरस्कार भी दिया गया।
इसे भी पढ़ें: Punjab में किसान संगठनों का रेल रोको आंदोलन आज से शुरू, तीन दिनों तक देंगे धरना, जानें क्या है इनकी मांग
क्यों किया गया स्वामीनाथन आयोग का गठन
स्वामीनाथन आयोग का गठन इसीलिए किया गया था क्योंकि किसानों की चिंता थी और ये तय करना था कि वो कौन से मुद्दे हैं जिस कारण किसान दुख में हैं। इस हद तक कि वो आत्महत्या भी कर रहे हैं। स्वामीनाथ आयोग की उन सिफारिशों को लेकर सरकार कहती है कि 200 सिफारिशों को लागू कर दिया गया है। लेकिन किसान कहते हैं कि अभी भी स्वामीनाथन आयोग कि साफरिशों को लागू नहीं किया गया है।
क्या हैं स्वामीनाथन आयोग की दी हुई सिफारिशें
एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता था। वो पेशे से एक जेनेटिक वैज्ञानिक थे। 2004 में सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किसान आयोग गठित किया। इस आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट पेश की। जिसमें भूमि सुधार, किसान आत्महत्या रोकने के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत और वृत्त बीमा पर सबसे ज्यादा जोर दिया। इसके अलावा एमएसपी को औसत लागत मूल्य से 50 प्रतिशत से अधिक रखने की सिफारिशें की। ताकी किसानों की आय बढ़े। किसानों के लिए जोखिम फंड बने और कम कीमत पर बीज के साथ महिला किसानों की क्रेडिट कार्ड बने। कृषि संबंधित जानकारियों के लिए ज्ञान चौपाल गांव में ही हो।
अन्य न्यूज़