मुश्किल में अरब देशों ने किया किनारा, भारत मदद देकर बना बड़ा सहारा, 74वें गणतंत्र के मेहमान के लिए दिल खोलने वाला मेजबान, क्या है भारत-मिस्र संबंधों की ऐतिहासिक दास्तान

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अभिनय आकाश । Jan 25 2023 4:48PM

मिस्र की आर्थिक स्थिति भी पाकिस्तान की तरह ही बदहाल है और भारत एक दोस्त की भूमिका अच्छे से निभा रहा है। भले ही मिस्र एक मुस्लिम देश है, लेकिन वो हमेशा से ही पाकिस्तानी नीतियों और आतंकवाद की खिलाफत करता रहा है।

इस वक्त पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है। कोरोना के बाद तो जैसे सबकुछ बदल गया है। चीन जैसा देश कोरोना से खुद को बचाने में लगा हुआ है। बाकी दुनिया भले ही आजाद घूम रही है। लेकिन कहीं भी शांति नहीं है। उदाहरण के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत का चीन के साथ तनाव और चीन की अपनी ही सीमा से लगते तकरीबन सभी देशों के साथ विवाद। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जंग जारी है। ईरान और पाकिस्तान महंगाई से दो-दो हाथ कर रहा है। तुर्की और स्वीडन आपस में उलझे हुए हैं। उत्तर कोरिया के तानाशाह का अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया को मिसाइलों से थर्राना भी जारी है। यानी पूरी दुनिया में कुछ न कुछ घटित हो रहा है। लेकिन तमाम परिस्थितियों के बीच जियो पॉलिटिक्स भी तेजी से करवट लेता नजर आ रहा है। भारत अपने गौरवशाली गणतंत्र के 74वां समारोह मना रहा है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी भारत पहुंचे। यह पहली बार है कि मिस्र के किसी राष्ट्रपति को इस आयोजन के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, पहली बार अरब गणराज्य मिस्र के राष्ट्रपति को भारत गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। गणतंत्र दिवस परेड में मिस्र की सेना का एक सैन्य दल भी भाग लेगा। भारत और मिस्र के बीच सिर्फ राजनायिक ही नहीं, बल्कि बड़ा व्यापारिक सहयोग भी है। मिस्र की आर्थिक स्थिति भी पाकिस्तान की तरह ही बदहाल है और भारत एक दोस्त की भूमिका अच्छे से निभा रहा है। भले ही मिस्र एक मुस्लिम देश है, लेकिन वो हमेशा से ही पाकिस्तानी नीतियों और आतंकवाद की खिलाफत करता रहा है। 

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गणतंत्र दिवस के निमंत्रण का क्या महत्व है?

गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण भारत सरकार के दृष्टिकोण से अत्यधिक प्रतीकात्मक है। नई दिल्ली गणतंत्र दिवस के लिए अपना मुख्य अतिथि तय करने के लिए आतिथ्य सत्कार के साथ रणनीति बुन रही है। हर साल मुख्य अतिथि का चुनाव है - रणनीतिक, कूटनीतिक, व्यावसायिक हित और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति जैसे कई कारणों से तय होता है।

भारत-मिस्र संबंधों का इतिहास क्या है?

द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग के लंबे इतिहास के आधार पर भारत और मिस्र के बीच घनिष्ठ राजनीतिक संबंध है। राजदूत स्तर पर राजनयिक संबंधों की स्थापना की संयुक्त घोषणा 18 अगस्त, 1947 को की गई थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर ने दोनों देशों के बीच मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों ही यूगोस्लाव के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टीटो के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1980 के दशक के बाद से भारत से मिस्र में प्रधानमंत्री के चार दौरे हुए। 1985 में जब राजीव प्रधानमंत्री थे। फिर पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान, आईके गुजराल (1997) और डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए। तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी ने मार्च 2013 में भारत का दौरा किया। जून 2014 में राष्ट्रपति सिसी के नेतृत्व वाली नई सरकार के सत्ता संभालने के बाद, तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अगस्त 2015 में काहिरा का दौरा किया। पीएम मोदी ने सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), न्यूयॉर्क के मौके पर राष्ट्रपति सिसी से मुलाकात की। प्रणब मुखर्जी और पीएम मोदी ने अक्टूबर 2015 में नई दिल्ली में तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के दौरान सिसी से मुलाकात की। राष्ट्रपति सिसी ने सितंबर 2016 में भारत की राजकीय यात्रा भी की थी। एक संयुक्त बयान जारी किया गया था, जिसमें राजनीतिक-सुरक्षा सहयोग, आर्थिक जुड़ाव और वैज्ञानिक सहयोग और सांस्कृतिक और लोगों-लोगों के संबंधों के तीन स्तंभों को एक नई साझेदारी के आधार के रूप में रेखांकित किया गया था।

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द्विपक्षीय व्यापार संबंधों की स्थिति क्या है?

मिस्र परंपरागत रूप से अफ्रीकी महाद्वीप में भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है। भारत-मिस्र द्विपक्षीय व्यापार समझौता मार्च 1978 से चल रहा है और यह मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज पर आधारित है। पिछले 10 वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार पांच गुना से अधिक बढ़ गया है। 2018-19 में यह 4.55 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया। महामारी के बावजूद, व्यापार की मात्रा 2019-20 में मामूली रूप से घटकर 4.5 बिलियन अमरीकी डॉलर और 2020-21 में 4.15 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। वित्त वर्ष 2020-2021 से 75 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 7.26 बिलियन तक रहा। 21-22 में द्विपक्षीय व्यापार का तेजी से विस्तार हुआ है। मिस्र में भारत के राजदूत अजीत गुप्ते ने भी जानकारी देते हुए बताया है कि भारत और मिस्र के बीच जारी द्विपक्षीय व्यापार अपने हाई लेवल पर है।

भारी आर्थिक संकट का सामना कर रहा मिस्र

अरब देशों के बीच अच्छी पकड़ रखने वाला देश मिस्र इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। पिछले साल मार्च में मिस्र की आधिकारिक मुद्रा की कीमत पाउंड के मुकाबले करीब आधी तक गिर गई थी। मिस्र में महंगाई की दर भी काफी ज्यादा है। मिस्र में महंगाई दर इस समय 24.4 फीसदी पर है। इतना ही नहीं मिस्र पर विदेशों से लिया गया कर्ज भी बढ़कर करीब 170 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। ऐसे मुश्किल समय में जब मिस्र को अरब-मुस्लिम देशों से मदद मिलनी चाहिए। तो ऐसे हालात में सऊदी अरब, यूएई, कुवैत जैसे अरब देशों ने मिस्र का साथ छोड़ दिया। मिस्र इससे मुश्किलों में पड़ गया। अरब मुस्लिम देशों की बेरुखी से मिस्र अलग-थलग पड़ गया। ऐसे हाल में भारत मिस्र के लिए मसीहा बनकर सामने आया है। भारत ने मुश्किल समय में मिस्र की मदद जारी रखी है। भारत न केवल मिस्र की मदद करता नजर आया बल्कि मिस्र के राष्ट्रपति का भारत में सम्मान भी कर रहा है। दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में मिस्र के राष्ट्रपति मेहमान बनकर दिल्ली पधारे हैं। 

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भारत ने की मदद

मिस्र पर सबसे ज्यादा असर रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध का पड़ा है। रूस और यूक्रेन के गेहूं का सबसे बड़ा आयातक मिस्र है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने से मिस्र मुश्किल में पड़ गया। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने से वैश्विक बाजार में गेहूं की किल्लत हो गई। जिससे इसके दाम आसमान छूने लगे। ऐसे में उसके लिए अपने देश के लोगों के लिए गेहूं उपलब्ध कराना एक चुनौती बन गई। ऐसे मुश्किल समय में भारत मिस्र की मदद के लिए आगे आया। उसने मिस्र को रियायती दरों पर सैकड़ों टन गेहूं उपलब्ध कराया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अप्रैल 2022 में भारत-मिस्र के बीच 10 लाख टन गेहूं की सप्लाई को लेकर बात हुई थी। लेकिन मई में भारत में खुद गेहूं कि किल्लत शुरू हो गई। जिसे देखते हुए मोदी सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दिया। लेकिन भारत ने उस मुश्किल समय में मिस्र सहित कई देशों को गेहूं भेजना जारी रखा क्योंकि भारत जानता था कि मिस्र में हालात कैसे हैं। 

एक तीर से कई निशाने साध रहा भारत

अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोल्ड वार के दौर में भारत, मिस्र, इंडोनेशिया, यूगोस्लाविया 4 ऐसे देश थे जो किसी गुट का हिस्सा नहीं थे। दुनिया के नक्शे पर नजर डालें तो इसके मध्य में एक भूमध्य सागर है। यहां पहुंचने के लिए दुनिया के पास दो रास्ते हैं। पहला जिब्राल्टर खाड़ी और दूसरा स्वेज नहर। स्वेज नहर वास्तव में इजिप्ट से निकलती है। यहीं से साइप्रस का भी रास्ता है। इसी क्षेत्र में आपको तुर्कीये (पहले तुर्की) भी मिलेगा। तुकये ने कश्मीर समेत कई ऐसे मुद्दों पर पाकिस्तान का साथ दिया जो भारत के हितों के खिलाफ हैं। फॉटेन मिनिस्टर जयशंकर तुर्कीये को घेरने के लिए साइप्रस और इजिप्ट से रिश्ते मजबूत कर रहे हैं। ये दोनों ही देश तुर्कीये के सख्त विरोधी रहे हैं। एक और मुद्दे पर फोकस कीजिए। इस इलाके में गैस के लिए एक ईस्टर्न मेडिटेरियन गैस फोटन (EMGF) है। इसमें शामिल सभी देश तुर्कीीये के विरोधी और भारत के दोस्त हैं। ये हैं- इजिप्ट, साइप्रस, फ्रांस, ग्रीस, इजराइल, इटली, जॉर्डन, फिलिस्तीन। जाहिर है जयशंकर एंड टीम एग्रेसिव डिप्लोमेसी से दो निशाने साध रही है। पहला- तुकये को मजबूर करना कि वो पाकिस्तान का साथ देना बंद करे। दूसरा- भूमध्य सागर में टेड के लिहाज से सीधी पहुंच बनाना।-अभिनय आकाश

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