बिना अमेरिका रूस का मुकाबला कर पाएगा यूरोप? भारत ने जो 54 साल पहले किया वैसा क्यों नहीं कर पाएं जेलेंस्की

जेलेंस्की ने उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से पूछा आपने युद्ध देखा है? वेंस ने कहा कि मैंने न्यूज रिपोर्ट देखी है। जेलेंस्की बोले अमेरिका अभी तो सेफ है, कभी हमला होगा तो पता चलेगा कि युद्ध क्या होता है।
लैटिन भाषा में वर्बा वोलांट, स्क्रिप्टामानेंट नाम की कहावत है। मतलब कहे हुए शब्द खत्म हो जाते हैं, लेकिन लिखे हुए शब्द हमेशा के लिए रह जाते हैं। ये कहावत लगभग 2000 साल पुरानी है। तब आवाज को ऑडियो-वीडियो के माध्यम से कैप्चर करने की तकनीक नहीं थी, लेकिन अब है। दशक गुजर जाते हैं, लेकिन इस दौरान घटित बातें कहे अनकहे रूप में सामने आ ही जाती है। नवंबर 1971 की बात है भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका के दौरे पर गईं थी। उनका मकसद अमेरिका को ये बताना था कि पूर्वी पाकिस्तान में कितना बड़ा नरसंहार हो रहा है। इसके चलते भारत में एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया है। भारत के उत्तर पूर्वी इलाके में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर लाखों करोड़ों की संख्या में शरणार्थी आ रहे हैं। कहा जाता है कि इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने इंदिरा गाँधी का अपमान किया, 45 मिनट तक उन्हें इंतज़ार करवाया। फिर तीखी बातें भी की। लेकिन उस दौरान इंदिरा ने संयम दिखाते हुए खामोशी बरती। फिर सेना को पाकिस्तान पर हमले का आदेश दे दिया। कुछ ही दिनों में पाकिस्तान और निक्सन दोनों घुटने पर आ गए। राष्ट्र के हित में कई बार निजी अपमान सहने वाला ही असली नेता होता है।
28 फरवरी 2025 को वोलोदिमिर जेलेन्स्की, डोनाल्ड ट्रम्प और जेडी वेंस के बीच जो कुछ भी हुआ उसे देख कर ये बिल्कुल नहीं लगा कि व्हाइट हाउस में डिप्लोमेसी को होते देख रहे हैं। ऐसा लगा मानों समय रैना का इंडिया गॉज लेटेंट चल रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने एक्ट के बाद सेल्फ रेटिंग दी भी। उन्होंने कहा भी कि इट इज गोइंग टू बी ग्रेट टेलीविजन। हुआ भी कुछ ऐसा ही, टेलीविजन पर वो छाए हुए हैं और वोलोदिमिर जेलेस्की डैमेज कंट्रोल मोड़ में हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड टूप के बीच व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में हुई नोकझोंक पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। व्हाइट हाउस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब दो राष्ट्राध्यक्षों की इस भिड़त को दुनिया ने देखा। बातचीत का शुरुआती आधा घंटा तो औपचारिकता में बीता, लेकिन आखिर के 10 मिनट में ऐसा क्या हुआ कि बातचीत हैसियत दिखाने पर आ पहुंची। सबकुछ विस्तार से बताते हैं।
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व्हाइट हाउस में आखिर हुआ क्या?
जेलेंस्की ने उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से पूछा आपने युद्ध देखा है? वेंस ने कहा कि मैंने न्यूज रिपोर्ट देखी है। जेलेंस्की बोले अमेरिका अभी तो सेफ है, कभी हमला होगा तो पता चलेगा कि युद्ध क्या होता है। व्हाइट हाउस की चीफ ऑफ स्टाफ सूजी विल्स ने प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले 15 मिनट का पूल स्प्रे (मेहमान नेता के साथ फोटो सेशन) रखा था, लेकिन जेलेंस्की-ट्रम्प में 35 मिनट लंबी बहस छिड़ गई। ट्रम्प का ओवल ऑफिस स्टाफ सन्न रह गया। बहस के बाद ट्रम्प वाइट हाउस के अपने वर्किंग रूम में चले गए।
क्या चाहते हैं ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जेलेस्की से मुलाकात के कुछ घंटों बाद कहा कि वो शख्स शांति नहीं चाहता है। मैं तुरंत संघर्ष विराम चाहता हूं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शांति समझौते के लिए तैयार प्रतीत होते हैं। व्हाइट हाउस ने पत्रकारों से जेलेस्की के बारे में कहा कि उन्हें पुतिन के बारे में नकारात्मक बाते कहने की जरूरत नहीं है। यूक्रेनी राष्ट्रपति को यह घोषित करने की जरूरत है कि क्या वह शांति चाहते हैं। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने कहा कि अमेरिकी लोग यूक्रेन को पैसे देते हुए थक चुके हैं। वह (जेलेस्की) इस जंग की व्यावहारिक हकीकत को पहचानने से इनकार कर रहे हैं। यह युद्ध कई साल से चल रहा है, उनके देशवासी मर रहे हैं। और जो लोग इस युद्ध के लिए आर्थिक मदद कर रहे है यानी अमेरिकी लोग, वे इस बिल का भुगतान करते-करते थक चुके हैं। परिस्थितियां जेलेस्की के पक्ष में नहीं है, राष्ट्रपति ट्रंप के पक्ष में है। ट्रम्प पलटवार करने वाले नेता माने जाते हैं। वो यूक्रेन को अमेरिका की मदद पर रोक का फैसला कर सकते हैं।
जेलेस्की को यूरोप के इन देशों का साथ
स्लोवेनिया, वेल्जियम, आयरलैंड, ऑस्ट्रिया, कनाडा, रोमानिया, क्रोएशिया, फिनलैंड, एस्तोनिया, लातविया, नीदरलैंड्स, फ्रांस, लग्जमवर्ग, पुर्तगाल, स्वीडन, जर्मनी, नॉर्वे, चेक रिपब्लिक, लिथुआनिया, मोलदोवा, स्पेन, पोलैंड, यूके और ईयू ब्लॉक ने समर्थन में पोस्ट किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने लिखा कि उन लोगों के प्रति सम्मान, जो शुरू से ही लड़ रहे हैं, क्योंकि वे अपनी गरिमा, अपनी आजादी, अपने वच्चों और यूरोप की सुरक्षा के लिए लड़ रहे हैं। पोलैंड के प्रधानमंत्री डॉनल्ड टस्क ने कहा कि आप अकेले नहीं हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने ट्रंप और जेलेंस्की, दोनों से बतचीत की है।
इस घटना ने बढ़ा दी यूरोप की बेचैनी
ओवल ऑफिस के इस एपिसोड के बाद से यूरोप में बेचैनी बनी हुई है। यूरोप के देश जेलेंस्की के साथ खड़े हैं और अपनी रणनीति के लिए चर्चा कर रहे हैं। यूरोपीय देश सुरक्षा के ढांचे पर जो चर्चा अमेरिका को भी केंद्र में रखकर करते थे, वह चर्चा अब अमेरिका को अलग करके हो रही है। जानकारों का कहना है कि रूस फायदे में दिख रहा है, लेकिन अमेरिका की इमेज पर इसका असर पड़ेगा। सहयोगी देश विचार करने को मजबूर होंगे कि क्या अमेरिका भरोसेमंद है। ईयू (यूरोपीय यूनियन) के उपाध्यक्ष काजा कलास का कहना है कि 'फ्री वर्ल्ड' को अब नए नेता (ट्रम्प नहीं) की जरूरत है। यानी ईयू अब यूक्रेन युद्ध के नाम पर अमेरिका से अपने संबंधों को कम करने की कोशिशों में आगे बढ़ेगा। वैसे भी ट्रम्प ईयू पर 25% टैरिफ का ऐलान कर चुके हैं।
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बिना अमेरिकी मदद के रूस का सामना कर सकता है यूरोप
सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिना अमेरिकी सैन्य मदद के यूरोप रूस का सामना कर सकता है? पहली नजर में जवाब सरल लगता है। अमेरिका के बिना भी नाटक के सदस्य देशों की साझा सैन्य शक्ति भी कम नहीं है। 2022 में यूक्रेन ने न सिर्फ रूसी हमले को रोक दिया था बल्कि उसे पीछे भी ढकेल दिया था। तब के मुकाबले उसकी सैन्य शक्ति अब कहीं ज्यादा है। हालांकि उसने रूसी हमले को रोकने और पीछे ढकेलने में सफलता पाई थी तब यूक्रेन ने रूस का सामना सोवियत काल के पुराने उपकरणों से किया था। इसके मुकाबले रूस जिसके पास करीब 13 हजार टैंकों, 1 हजार लड़ाकू विमानों का जखीरा है वो यूक्रेन के सामने कमजोर नजर आया था। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना अमेरिका के भी नाटो रूस का सामना कर सकता है। रूस अब तक यूक्रेन को हरा नहीं पाया है तो अमेरिका के बिना भी कहीं अधिक विशाल और आधुनिक नाटो बलों के खिलाफ उसकी संभावना बहुत कम दिखती है।
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रूस के दोनों हाथों में लड्डू
रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रम्प और उपराष्ट्रपति वेंस ने बहुत धीरज दिखाया। ये किसी चमत्कार से कम नहीं, वरना... वे जेलेंस्की पर हाथ भी छोड़ सकते थे। रूस ने जेलेंस्की को बेईमान नेता करार दिया। बहरहाल, इस विवाद के बीच रूस के दोनों हाथों में लड्डू है। एक तरफ रूस का यूक्रेन पर अटैक भी जारी है और दूसरी तरफ अमेरिका और रूस के बीच बातचीत के बाद ऐसा कुछ भी नहीं दिखा कि ट्रंप रूस पर दबाव बना रहे हों। इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स का मानना है कि उनकी बातचीत से यह लगा कि ट्रंप चाहते हैं कि लड़ाई की जो मौजूदा बाउंड्री है, उसमें ही सीजफायर हो जाए, इससे रूस को फायदा होगा। रूस हमेशा से चाहता था कि यूएस से सीधी बातचीत शुरू हो। रूस और अमेरिका साथ बैठकर बात करते हैं तो यह माहौल खत्म होगा कि देखो, रूस को आइसोलेट कर दिया है।
अब आगे क्या
इस मुलाकात के दौरान शुरू से ही ट्रंप और जेलेंस्की की पोजिशन में फर्क दिख रहा था। जेलेंस्की चाहते हैं कि अमेरिकी रूस के खिलाफ जंग में उन्हें सपोर्ट करें। अगर जेलेंस्की जंग में आगे बढ़ते हैं और यूरोप साथ देता है तो स्थिति बिगड़ सकती है। न तो ट्रंप और न ही जेलेंस्की इस तकरार को आगे बढ़ाना चाहेंगे और कुछ दिनों में इसका कोई हल जरूर निकल आएगा।
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