रामलीला: गांधी से वाजपेयी, जिन्ना से अन्ना, जहां कभी हुआ था केजरीवाल की राजनीति का उदय, वहीं से बीजेपी की नई सरकार का आगाज

उठते हैं तूफान, बवंडर भी उठते जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है। दो राह समय के रथ की घर्घर नाद सुनो, सिंहासन खाली करो की जनता आती है। दिल्ली के रामलीला मैदान से बिहार के बेटे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता लोकनायक जय प्रकाश नारायण के मुख से फूटी तो 1 सफदरजंग रोड पर बैठी इंदिरा गांधी की गद्दी हिल गयी थी।
राजनीतिक संस्कार या हो संघर्ष का बवंडर वो उद्गम जहां से निकला भारतीय राजनीति का समुंदर। हर पल का साक्षी। दिल्ली के नए मुख्यमंत्री की कहानी एक बार फिर से यहीं से शुरू हो गई है। वैसे तो इसे सांप्रदायिक सौहार्द का केंद्र रहा है। इसके एक हिस्से पर मस्जिद है तो कुछ ही दूरी पर एक मंदिर भी है। आंदोलन से क्रांति होती है, क्रांति इतिहास बदलते है और रामलीला मैदान कई बार इसका साक्षी बना है। नई दिल्ली का रामलीला मैदान आजादी की लड़ाई, पाकिस्तान पर जीत इमरजेंसी, राम मंदिर आंदोलन और जनलोकपाल जैसे अनगिनत एतिहासिक हलचलों का गवाह रहा है। उठते हैं तूफान, बवंडर भी उठते जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है। दो राह समय के रथ की घर्घर नाद सुनो, सिंहासन खाली करो की जनता आती है। दिल्ली के रामलीला मैदान से बिहार के बेटे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता लोकनायक जय प्रकाश नारायण के मुख से फूटी तो 1 सफदरजंग रोड पर बैठी इंदिरा गांधी की गद्दी हिल गयी थी।
इसे भी पढ़ें: Delhi CM Rekha Gupta: रेखा गुप्ता ने दिल्ली की चौथी महिला CM के तौर पर ली शपथ, पीएम मोदी-अमित शाह मौजूद
क्या है इतिहास
कहा जाता है कि इस मैदान को अंग्रेजों ने वर्ष 1883 में ब्रिटिश सैनिकों को शिविर के लिए तैयार करवाया था। समय के साथ-साथ पुरानी दिल्ली के कई संगठनों ने इस मैदान में रामलीलाओं का आयोजन शुरू कर दिया, फलस्वरूप इसकी पहचान रामलीला मैदान के रूप में हो गई। दिल्ली के दिल में इससे बड़ी खुली जगह और कोई नही थी इसलिए रैली जैसे बड़े आयोजनों और आम जनता से सीधे संवाद के लिए ये मैदान राजनेताओं का पसंदीदा मैदान बन गया। गुलाम भारत और आजाद भारत के इतिहास में ऐसे मौकों की कमी नही है जब रामलीला मैदान ने अपना नाम दर्ज न कराया हो। इंदिरा गांधी ने पाक से युद्ध की जात का जश्न यही मनाया था। आज़ादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और दूसरे नेताओं के लिए विरोध जताने का ये सबसे पसंदीदा मैदान बन गया था।
मुस्लीम लीग को जिन्ना का संबोधन
मोहम्मद अली जिन्ना से जवाहर लाल नेहरू तक और बाबा राम देव से लेकर अन्ना हज़ार तक सारे लोग इसी मैदान से क्रांति की शुरुआत करते रहे हैं। सन 1945 में हुई एक सभा में जब मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लीम लीग को संबोधित कर रहे थे तब उनके भाषण के दौरान उनके मंच के करीब बैठे कुछ लोगों ने नारे लगाने शुरू कर दिए ‘’मौलाना जिन्ना जिदाबाद”। वे इस नारे को सुनकर भड़क गए और नारे लगाने वाले को लताड़ते हुए “कहा कि मै आपका सियासी नेता हूं न कि मजहबी”। इसलिए नारे लगाते हुए बेवकूफी न करें।
इसे भी पढ़ें: कभी मार्शल ने उठाकर किया था विधानसभा से बाहर, अब स्पीकर के रूप में वापसी करेंगे विजेंद्र गुप्ता
इसी रामलीला मैदान में चीन से मिली पराजय के बाद गणतंत्र दिवस के एक कार्यक्रम में लता मंगेशकर ने “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत गाया था। जिसे सुनकर नेहरू जी की आंखे भर आई थी।रामलीला मैदान में स्थायी मंच 1961 में ही बना था। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भारत के दौरे पर आई। उनके सम्मान में रामलीला में एक कार्यक्रम होना था। तब यहां स्थायी मंच का निर्माण हुआ था।
शास्त्री ने दिया जय जवान जय किसान का नारा
1965 में पंडित भारत-पाक युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसी मैदान से जय जवान जय किसान का नारा दिया था। जयप्रकाश नारायण ने इसी मैदान से कांग्रेस सरकार के खिलाफ हुंकार भरी थी। 25 जून 1975 को इसी मैदान पर लोकनायक जय प्रकाश नरायण ने विपक्षी नेताओं के साथ ये एलान कर दिया था कि इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार को उखाड़ फेंका जाए। उस ऐलान के अगले ही दिन देश को आपातकाल का सामना करना पड़ा था।
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना ने फूंका बिगुल
वर्ष 2०11 में इसी मैदान पर ही अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका था। इसी मैदान से अरविद केजरीवाल ने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। जिसके बाद पिछले 14 फरवरी को यहां दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। अन्ना आंदोलन के बाद साल 2०11 में ही योगगुरू बाबा रामदेव ने इसी मैदान में नया आंदोलन शुरू किया था। यह आंदोलन काले धन को लेकर था, लेकिन 5 जून को आधी रात में आंदोलन कर रहे लोगों को खदेड़ने के लिए यहां पुलिस घुस आई। आंदोलनकारियों पर आंसू गैस छोड़े गए। लाठी चार्ज किया गया। जिसकी चौतरफा आलोचना हुई।
आप का जन्म
2012 में केजरीवाल ने इसी मैदान से अपनी नई पार्टी 'आम आदमी पार्टी' का ऐलान किया और फिर 2013 में जब उनकी पार्टी को दिल्ली चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली, तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी इसी रामलीला मैदान में ली। वह एक ऐसा दौर था, जब केजरीवाल को जनता का अपार समर्थन था और रामलीला मैदान इसकी गवाही दे रहा था।
बीजेपी का शपथग्रहण
अब 2025 में 27 साल बाद बीजेपी ने दिल्ली की सत्ता में वापसी की है। ऐसे में पार्टी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए इसी ऐतिहासिक मैदान को चुनकर न केवल एक रणनीतिक फैसला लिया, बल्कि एक मजबूत राजनीतिक संदेश भी दिया है। भारतीय जनता पार्टी के राम मंदिर आंदोलन का शंखनाद भी यही से हुआ था। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है कोई नही जानता लेकिन हम इतना तो कह ही सकते हैं कि देश की सरकारें बदलती रही हैं लेकिन रामलीला मैदान वहीं का वहीं है।
अन्य न्यूज़












