पहले जनगणना, फिर परिसीमन और तब जाकर लागू हो पाएगा महिला आरक्षण, जानें ये आपस में एक-दूसरे से कैसे कनेक्टेड हैं?

women reservation
ANI
अभिनय आकाश । Sep 21 2023 2:10PM

नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा में पेश महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग वाले विधेयक के कार्यान्वयन को अगली जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से जोड़ा है।

भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारों के बीच देश के माननीय सांसद पैदल मार्च करते नजर आए। ये छोटी सी पदयात्रा ऐतिहासिक थी। पुराने संसद भवन से नए भवन तक। लोकसभा और राज्यसभा के पूरे सांसदों के जत्थे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लीड कर रहे थे। देश भी कौताहल से इन सांसदों को देख रहा था और नजर उस पर भी थी जो उसके बाद होने वाला था। सरकार महिला आरक्षण बिल लेकर आई। दशकों से लटके महिला आरक्षण वाले बिल को पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने लोकसभा से पास करा लिया। नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा में पेश महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग वाले विधेयक के कार्यान्वयन को अगली जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से जोड़ा है। चूंकि 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक आयोजित नहीं की गई है, इसलिए इसके लोकसभा चुनाव के बाद ही आयोजित होने की उम्मीद है। 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित महिला आरक्षण विधेयक में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं था, बल्कि दुर्भाग्य से यह लोकसभा द्वारा पारित होने से पहले ही समाप्त हो गया और एक अधिनियम नहीं बन सका। अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। उम्मीद है कि इस बार ये बिल पास हो जाएगा। लेकिन बिल पास होने के बाद ये लागू कब से होगा? इसे लेकर संशय बना हुआ है।

इसे भी पढ़ें: आरक्षण देने भर से महिलाओं की स्थिति नहीं सुधर जायेगी, लोगों को अपनी सोच भी बदलनी होगी

मोदी सरकार का नारी शक्ति वंदन अधिनियम 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक पेश किया, जिसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। विधेयक अधिनियम के प्रारंभ से 15 वर्षों के लिए महिला आरक्षण को अनिवार्य बनाता है, संसद को इसे आगे बढ़ाने का अधिकार है। विधेयक में लोकसभा में एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें इन श्रेणियों की महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। विधेयक का एक खंड लोकसभा में सीधे चुनाव से भरी जाने वाली कुल सीटों में से यथासंभव एक-तिहाई महिलाओं के लिए अलग रखने की भी बात करता है। हालाँकि, कोटा राज्यसभा या राज्य विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। इसके अलावा, सरकार ने कहा कि यह विधेयक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद लागू होगा, यह प्रक्रिया अगली जनगणना के पूरा होने के बाद ही लागू की जाएगी।

इसे भी पढ़ें: Women Reservation पर बोले CM Nitish, 2024 का इंतजार क्यों, इसे तुरंत लागू किया जा सकता था

किस आधार पर परिसीमन निर्धारित किया जाता है?

परिसीमन के निर्धारण में 5 फैक्टर्स को ध्यान में रखा जाता है-

1. क्षेत्रफल

2. जनसंख्या

3. क्षेत्र की प्रकृति

4. संचार सुविधा

5. अन्य कारण

परिसीमन की आवश्यकता क्यों है और इसे कैसे किया जाता है?

समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना होगा, ताकि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का समान महत्व हो। प्रत्येक राज्य को लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र इस प्रकार आवंटित किया जा सके कि निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और राज्य की जनसंख्या का अनुपात मोटे तौर पर समान हो। राज्य विधानसभाओं के लिए भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जाता है। जैसे-जैसे आबादी बदलती है, निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं को फिर से समायोजित करने की आवश्यकता होती है। जनसंख्या के आंकड़ों के अलावा, परिसीमन का उद्देश्य भौगोलिक क्षेत्रों को सीटों में निष्पक्ष रूप से विभाजित करना भी है। जिसका अर्थ है सीट की सीमाओं को इस तरह से फिर से तैयार करना कि किसी भी राजनीतिक दल को दूसरे पर अनुचित लाभ न हो। प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करना एक संवैधानिक आवश्यकता है। संविधान का अनुच्छेद 82 (प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन) लोकसभा में प्रत्येक राज्य के लिए सीटों के आवंटन में पुनः समायोजन और प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर प्रत्येक राज्य को निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने का आदेश देता है। अनुच्छेद 81, 170, 330 और 332, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संरचना और आरक्षण से संबंधित हैं, इस पुनः समायोजन का भी उल्लेख करते हैं। परिसीमन प्रक्रिया एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग द्वारा संचालित की जाती है। चुनावों में अनिश्चितकालीन देरी को रोकने के लिए इसके निर्णयों को अंतिम और किसी भी अदालत में चुनौती न देने योग्य माना जाता है।

इसे भी पढ़ें: Women Reservation Bill के लिए JP Nadda ने PM Modi का किया धन्यवाद, बोले- अध्यात्म से लेकर अध्यापन तक में नारी का विशेष योगदान

पिछली बार परिसीमन कब हुआ था?

आजादी के बाद से जनगणना सात बार की गई है। आजाद भारत में सबसे पहले साल 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इसके बाद साल 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित किए जा चुके हैं। भारत में साल 2002 के बाद परिसीमन आयोग का गठन नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई 2002 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने सिफारिशों को 2007 में केंद्र को सौंपा था लेकिन सिफारिशों को केंद्र सरकार द्वारा दरकिनार कर दिया जाता रहा। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में इसे लागू किया गया। आयोग ने साल 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया था। संविधान में मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, अगला परिसीमन अभ्यास 2026 के बाद यानी 84वें संशोधन के 25 साल बाद की गई पहली जनगणना के आधार पर होना चाहिए। सामान्य तौर पर, इसका मतलब यह होगा कि परिसीमन 2031 की जनगणना के बाद होगा। हालाँकि, कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना नहीं की जा सकी। यदि मकान-सूचीकरण अभ्यास, जनगणना का पहला चरण, अगले वर्ष किया जाता है, तो वास्तविक जनसंख्या गणना 2025 में हो सकती है। पहले परिणामों के प्रकाशन में आमतौर पर कम से कम एक या दो साल लगते हैं। इसका मतलब यह है कि परिसीमन के लिए 2031 की जनगणना का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, यह विलंबित 2021 की जनगणना के आधार पर भी हो सकता है। यदि सब कुछ सुचारू रूप से और तेजी से आगे बढ़ता है, तो 2029 के आम चुनाव लोकसभा सीटों की बढ़ी हुई संख्या के साथ हो सकते हैं।

परिसीमन को राजनीतिक मुद्दा क्यों बनाया जाता रहा?

परिसीमन के परिणामस्वरूप संसदीय और विधानसभा सीटों की कुल संख्या में परिवर्तन होता है। 1951 की जनगणना के बाद परिसीमन ने लोकसभा सीटों को 489 से बढ़ाकर 494 कर दिया, जो 1961 की जनगणना के बाद बढ़कर 522 हो गई और अंततः 1971 की जनगणना के बाद 543 हो गई। 1970 के दशक में, 1971 की जनगणना के आधार पर आसन्न परिसीमन अभ्यास ने चिंताएँ पैदा कर दीं। संविधान का आदेश है कि राज्यों को जनसंख्या अनुपात के आधार पर सीटें प्राप्त हों, जिसका अनजाने में तात्पर्य यह है कि कम जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों वाले राज्य (ज्यादातर उत्तर भारत में) लोकसभा सीटों के बड़े हिस्से का दावा कर सकते हैं। और जिन दक्षिणी राज्यों ने परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया, उन्हें अपनी सीटें कम होने की संभावना का सामना करना पड़ा।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़