कारगिल के सेनापति George Fernandes जिनकी रगों में बसा था हिन्दुस्तान

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अभिनय आकाश । Mar 11 2020 4:49PM

जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 3 जून 1930 को मैंगलोर में हुआ था। वो अपने 6 भाइयों में सबसे बड़े थे। वहीं 16 साल की उम्र में उन्हें कैथलिक पादरी बनने के लिए बैंगलोर की सेमिनरी में भेजा गया। जहां वो दो साल तक रहे। लेकिन देश आजाद होने के साथ ही वहां से भाग निकले।

एक 16 साल का लड़का जिसे चर्च में पादरी बनने के लिए भेजा गया था। एक टैक्सी यूनियन का नेता जिसने पूरे देश में रेल का चक्का रोक दिया। 37 साल का नौजवान जिसने महाराष्ट्र के दक्षिण मुंबई सीट से बाल ठाकरे सरीखे रूतबे वाले दिग्गज सदाशिव कानौजी पाटिल को मात दी। एक बागी जिसने जेल में रहकर भी 3 लाख वोटों से जीता लोकसभा चुनाव। आज बात करेंगे जॉर्ज फर्नांडिस की। वो जॉर्ज फर्नांडिस जिन्हें किसी जमाने में द जाइंट किलर कह कर पुकारा जाता था। वैसै तो भारत की युवा पीढ़ी को देश के वर्तमान नेताओं के नाम मुंहजुबानी याद होंगे। लेकिन आज भारत के युवाओं को इस बात से अवगत कराएंगे कि भारत की राजनीति में जार्ज का कद और प्रभाव क्या था। इसे समझने के लिए हम तीन तस्वीरों की मदद लेंगे। ये पहली तस्वीर उस वक्त की है जब देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दी थी। उस वक्त जॉर्ज फर्नांडिस क्रूर सत्ता के विरोध में योद्धा बनकर उभरे थे और इंदिरा को चुनौती दी थी। हाथों में हथकड़ी वाली तस्वीर आपातकाल के दौर की है। दूसरी तस्वीर मई 1998 की है जब दिवंगत जॉर्ज फर्नांडिस देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री थे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के नेतृत्व में पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया गया था। जॉर्ज फर्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्बदुल कलाम की तस्वीर उस दौर में भारत के जोश की गवाही देती थी। ये अपने जमाने की सबसे शानदार टीम थी। तीसरी तस्वीर जुलाई 1999 की है जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल का युद्ध चल रहा था और जॉर्ज फर्नांडिस देश के सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए खुद कारगिल के दौरे पर थे। देश के रक्षा मंत्री को अपने बीच देखकर सैनिकों का जोश अपने चरम पर था। सैनिक उनसे हाथ मिलाने के लिए दौड़ते हुए चले आए थे। जॉर्ज फर्नांडिस की इन तस्वीरों को देख कर ये साफ प्रतीत होता है कि वह परंपराओं को मानने में यकीन नहीं रखते थे बल्कि परंपराओं से हटकर काम करते थे।

जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 3 जून 1930 को मैंगलोर में हुआ था। वो अपने 6 भाइयों में सबसे बड़े थे। वहीं 16 साल की उम्र में उन्हें कैथलिक पादरी बनने के लिए बैंगलोर की सेमिनरी में भेजा गया। जहां वो दो साल तक रहे। लेकिन देश आजाद होने के साथ ही वहां से भाग निकले। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि सेमिनरी से मेरा मन उचट गया था। मैं देखता था कि पादरी की कथनी और करनी में काफी फर्क है और ऐसा सिर्फ एक नहीं बल्कि तमाम धर्मों के साथ था।

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1974 में थम गया पूरा देश

बात 1973 की है और इस समय से पहले और आजादी के बाद तक तब तीन वेतन आयोग आ चुके थे, लेकिन रेल कर्मचारियों की सैलरी को लेकर कोई ठोस बढ़ोतरी नहीं हुई थी। इस बीच जॉर्ज फर्नांडिस नवंबर 1973 को आल इंडिया रेलवेमैन्स फेडरेशन (AIRF) के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में यह फैसला लिया गया कि वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल की जाए। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाई गई और 8 मई 1974 को बॉम्बे में हड़ताल शुरू हो गई और इस हड़ताल से न सिर्फ पूरी मुंबई थम सी गई बल्कि पूरा देश थम सा गया था। इस हड़ताल में करीब 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था। बाद में कई और यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं तो हड़ताल ने विशाल रूप धारण कर लिया। जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में इस हड़ताल में टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी शामिल हो गईं। मद्रास की कोच फैक्ट्री के करीब 10 हजार मजदूर भी हड़ताल के समर्थन में सड़क पर उतर आए। गया में रेल कर्मचारियों ने अपने परिवारों के साथ पटरियों पर कब्जा कर लिया। हड़ताल का असर पूरे देश में दिखने लगा और पूरा देश थमता नजर आया। हड़ताल के बढ़ते असर को देखते हए सरकार ने इन हड़तालियों पर सख्त रुख अपनाया. सरकार ने कई जगहों पर रेलवे ट्रैक खुलवाने के लिए सेना को तैनात कर दिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि हड़ताल तोड़ने और निष्प्रभावी करने के लिए 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया। हालांकि तीन सप्ताह बाद 27 मई को बिना कोई कारण बताए कोऑर्डिनेशन कमिटी ने हड़ताल वापस लेने का ऐलान कर दिया।

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जॉर्ज पर था राजद्रोह का आरोप

दरअसल, इसके तहत विरोध में उठे नेताओं पर क्रिमिनल केस लगाए जा रहे थे। इसमें विपक्ष के कई नेता शामिल थे। इसमें जॉर्ज फर्नांडिस के साथ 24 दूसरे नेता भी शामिल थे। इसके तहत उनके ऊपर आरोप लगाया था कि आपातकाल के खिलाफ उन्‍होंने सरकारी संस्‍थानों और रेल ट्रैक को उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्‍करी की थी। उनके खिलाफ सरकार को उखाड़ फेंकने को लेकर विद्रोह करने का आरोप लगाया गया 1976 में उन्‍हें गिरफ्तार कर दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में बंद किया गया था। बड़ौदा डायनामाइट केस की जांच सीबीआई के हाथों में थी। सीबीआई ने ही घटना की जगह को बड़ौदा बताया था। जेल से बाहर यह संदेह जताया जा रहा था कि कहीं सरकार जेल के भीतर ही उनकी हत्या ना करवा दे। जर्मनी, नॉर्वे और ऑस्ट्रिया के राष्ट्राध्यक्षों ने इंदिरा गांधी के सामने जॉर्ज की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। जब जॉर्ज फर्नांडिस को बड़ौदा डायनामाइट केस के सिलसिले में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया तो जेएनयू के करीब दर्जन भर छात्रों ने नारे लगाए कि जेल का फाटक तोड़ दो, जॉर्ज फर्नांडिस को छोड़ दो। इस पूरे दौर में देश में राजनीतिक सरगरमी चरम पर थी। वहीं दूसरी तरफ देश चुनाव की तरफ भी बढ़ रहा था। चुनाव घोषित हो चुके थे और कांग्रेस अपने विरोधियों को चुप कराने और चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। लेकिन नतीजा उसके खिलाफ रहा। 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा था। पूरे चुनाव के दौरान वह एक बार भी अपने क्षेत्र में नहीं जा सके और उस दौर हाथों में हथकड़ी से जकड़े जार्ज की एक तस्वीर वायरल होती है। देखत ही देखते वो तस्वीर प्रतिरोध का प्रतीक चिन्ह बनकर लोगों के दिलों में उतर गई। तीस हजारी कोर्ट की वही प्रसिद्ध तस्वीर गलियों में घुमाई जाने लगी, जनता ने खुद पैसा इकठ्ठा करके प्रचार किया। इस चुनाव में जॉर्ज की तरफ से एक नया पैसा खर्च नहीं किया गया था। नतीजा करीब तीन लाख वोटों से जॉर्ज चुनाव जीत गए। सत्ता में आई जनता सरकार ने बड़ौदा डायनामाइट केस को खत्म कर दिया। इस सरकार में जॉर्ज उद्योग मंत्री बनाए गए।

जॉर्ज से जुड़ा एक वाकया 1980 का है, तब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद देश में लोकसभा उप चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। जॉर्ज फर्नांडिस अपने संसदीय क्षेत्र मुजफ्फरपुर पहुंचे थे। कंपनीबाग मैदान में सभा का आयोजन किया गया। सभा में जॉर्ज साहब उसी तरह बोल रहे थे, जिस तरह उन्होंने जनता पार्टी की सरकार से इस्तीफा देने के बाद लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में बोला था।

भीड़ में से अचानक युवकों का समूह विरोध में नारेबाजी करते हुए ईंट-पत्थर मंच पर फेंकने लगा। लेकिन, जॉर्ज रुके नहीं। वह बोलते रहे, उनका भाषण तो ओजस्वी होता ही था। सभा के एक वक्ता हिंद केशरी यादव (जो बाद में मंत्री भी रहे) के सिर पर ईंट का एक टुकड़ा जा लगा। निशाना तो जॉर्ज को ही बनाकर फेंका गया था, लेकिन वह बच गये। जॉर्ज अपना भाषण खत्म करके ही बैठे।

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जार्ज उस वक्त देश के रक्षा मंत्री बने जब देश में परमाणु परीक्षण हुआ। रक्षा मंत्री रहते हुए जॉर्ज फर्नांडिस ने 32 बार सियाचिन का दौरा किया। जार्ज से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जनके बारे में आप जानते होंगे या कहीं पढ़ा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो अपने समर्थकों में इतने लोकप्रिय थे कि एक बार उन्हें किडनैप करने की साजिश रची गई थी। जार्ज ही वो शख्स थे जिनकी वजह से आज नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं। साल 1994 में समता पार्टी बनी थी और दो साल बाद जार्ज ने बीजेपी से गठबंधन किया था। साल 1996 के लोकसभा चुनाव के नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। जार्ज तब मुजफ्फरपुर के सांसद हुआ करते थे। लेकिन अचानक 2 अप्रैल को खबर ये आई कि जार्ज मुजफ्फरपुर की बजाये नालंदा से चुनाव लड़ेंगे। दरअसल, नीतीश कुमार ये चाहते थे कि जार्ज नालंदा से चुनाव लड़े। मुजफ्फरपुर के कार्यकर्ताओं को ये खबर मिली तो वो नाराज हो गए। एक बस में भरकर 50 से ज्यादा कार्यकर्ता पटना पहुंचा। पता चला कि जार्ज ने नालंदा से पर्चा दाखिल कर दिया है और वो रात को शकुनि चौधरी के घर रूकने वाले हैं। कार्यकर्ताओं से भड़ी बस शकुनि चौधरी के घर पहुंच गई। कार्यकर्ता बाहर नारे लगाने लगे। जार्ज को जैसे ही पता चला कि वो मुजफ्फरपुर के कार्यकर्ता हैं और वो जार्ज को साथ ले जाने आए हैं। जार्ज शकुनि चौधरी के एक कमरे में जाकर सो गए। रात करीब बारह बजे जब कार्यकर्ता अड़े रहे तो जार्ज बाहर आए और उन्हें सभी ने गोद में उठा लिया। कार्यकर्ता जार्ज को उठाकर बस में ले जाने लगे तभी जार्ज ने एक दांव चला। उन्होंने कहा कि आप अपना नेता चुन लीजिए आप में से ही किसी को टिकट दे दूंगा। जार्ज की इस अपील के बाद बीच-बचाव का रास्ता निकला। लेकिन समता पार्टी ये सीट हार गई। 

बाद में साल 2004 में नीतीश ने दो सीट नालंदा और बाढ से चुनाव लड़ा और जार्ज मुजफ्फरपुर लौट आए। आठ साल बाद मुजफ्फरपुर लौटे जार्ज की एक बार फिर जीत हुई। लेकिन पांच साल बाद इन्हीं नीतीश ने जार्ज को टिकट नहीं दिया। नतीजा ये हुआ कि अपनी कर्मभूमि से निर्दलीय चुनाव लड़कर जार्ज हार गए और ये उनकी आखिरी हार थी। 88 साल के जॉर्ज फर्नांडिस लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे और व अलजाइमर से ग्रस्त थे। यही वजह है कि लंबे वक्त से वो सार्वजनिक जीवन से बाहर थे। साल 2019 में 29 जनवरी को जॉर्ज फर्नांडिस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

- अभिनय आकाश

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