जाति आधारित जनगणना से जुड़े 8 सवालों को आसान भाषा में समझें

अगले कुछ दिनों में जब देश में जनगणना प्रक्रिया शुरू होने जा रही है तो जातीय आधार पर जनगणना की मांग ने भी जोर पकड़ लिया है। यूपी विधानसभा में पिछले दिनों यह मुद्दा शिद्दत के साथ उठा। बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव पास कराकर केंद्र को भेज दिया है।
किसी भी विकासशील देश की उन्नति तभी रफ्तार पकड़ती है जब उस देश में रह रहे लोग आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत हों। इसके लिए सरकार नई नीतियां और योजनाएं बनाती रही है। लेकिन कई बार ये योजनाएं और नीतियां विफल साबित हुई हैं। इस बारे में कई लोगों का मानना है कि सरकार के पास जनगणना के सही आंकड़े नहीं हैं या फिर जनगणना सही तरीके के नहीं की गई। अगले कुछ दिनों में जब देश में जनगणना प्रक्रिया शुरू होने जा रही है तो जातीय आधार पर जनगणना की मांग ने भी जोर पकड़ लिया है। यूपी विधानसभा में पिछले दिनों यह मुद्दा शिद्दत के साथ उठा। बिहार विधानसभा में जहां जेडीयू-बीजेपी की साझा सरकार है, वहां तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव पास कराकर केंद्र को भेज दिया है। महाराष्ट्र में भी शिवसेना के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर जातिगत जनगणना के समर्थन में प्रस्ताव पास कर चुकी है और इसी तरह कई दूसरे राज्यों से भी आवाज मुखर होने लगी है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब जातिगत जनगणना की मांग उठी है। यह मांग पिछले तमाम सालों से उठती रही है। आज जातिय आधारित जनगणना से जुड़े पांच सवालों के जवाब तलाशेंगे और आसान भाषा में इसका निचोड़ बताएंगे। जाति आधारित जनगणना की मांग क्यों उठी है, कब हुई थी आखरी बार जाति आधारित जनगणना, जाति आधारित जनगणना न कराने से क्या नुकसान, क्या जाति आधारित जनगणना सिर्फ ओबीसी जनगणना है? इन सारे सवालों की सिलसिलेवार ढंग से व्याख्या करते हैं। सबसे पहले आपको जनगणना के बारे में दो लाइनों में बता देते हैं।
- भारत में जनगणना एक पुरानी सरकारी कवायद है।
- हर दस साल पर फरवरी महीने में 1 से 20 तारीख के बीच सरकारी शिक्षक घर-घर जाते हैं और देश के हर आदमी को गिन लेते हैं और उनके बारे में जानकारियां इकट्ठा कर लेते हैं।
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