इंदिरा ने मेनका के घर इंस्टॉल करवाया फोन टैपिंग डिवाइस, राजीव ने IB को राष्ट्रपति के पीछे लगा दिया, इतिहास में दर्ज हैं जासूसी के कई दिलचस्प किस्से

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एमके धर ने ये माना कि उन्होंने मेनका गांधी की मां अमतेश्वर आनंद के जोरबाग वाले घर में व्यक्तिगत तौर पर फोन टैपिंग डिवाइस स्टॉल किया था।
जब कभी भी जिक्र जासूसी का होता है तो मन-मस्तिष्क में शेरलॉक होम्स, जेम्स बॉण्ड और भारतीय तड़के में महसूस करें तो करमचंद और ब्योमकेश बक्शी सरीखे किरदार अपने आप ही घूमने लग जाते हैं। आज देश में जासूसी कांड को लेकर सड़क से लेकर संसद तक में बवाल है। देखते ही देखते ये देश की सबसे बड़ी अदालत के दरवाजे पर भी पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद कहा कि अगर रिपोर्ट सही है तो इसमें कोई शक नहीं कि आरोप गंभीर हैं। ये पूरा मामला पेगासस जासूसी कांड से जुड़ा है जिसमें राजनेता, एक्टिविस्ट की तरफ से विभिन्न याचिकाएं दायर की गई हैं और इन याचिकाओं में पेगासस जासूसी कांड की कोर्ट कि निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की गई है। जासूसी कांड को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भी मोर्चा खोला हुआ है। हालांकि देश में जासूसी कांड की कहानी कोई नई नहीं है बल्कि इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो राजीव गांधी की जासूसी से लेकर प्रणव मुखर्जी तक और एनसीपी लीडर शरद पवार से लेकर नीतीश कुमार तक के फोन टैप किए जाने की खबर ने देश कि सियासात में काफी चर्चित रहे हैं। मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। कभी सीबीआई जांच का आदेश हो गया तो कभी मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। इतिहास ऐसे मामलों से भरा पड़ा है। आज ऐसे ही कुछ मामलों पर नजर डालते है।
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इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि राजनीतिक जासूसी की शुरुआत देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जमाने में ही हो गई थी। वहीं कई रिपोर्ट्स में पंडित नेहरू के नेताजी के रिश्तेदारों की जासूसी कराने की बात भी कही गई है। जवाहरल लाल नेहरू ने करीब दो दशकों तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदारों की जासूसी करवाई थी। दस्तावेजों के अनुसार जासूसी का काम 1948 से लेकर 1968 तक चला था। इस दौरान नेहरू 16 सालों तक देश के प्रधानमंत्री थे और आईबी सीधा उन्हें ही रिपोर्ट करती थी। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार फाइलों में बोस के कोलकाता स्थित दो घरों की निगरानी का जिक्र है। इनमें एक वुडबर्न पार्क और दूसरा 38/2 एल्गिन रोड पर था। रिपोर्ट के दावे के अनुसार नेताजी के घरों की जासूसी ब्रिटिश शासनकाल में शुरू हुई थी। लेकिन गौर करने वाली बात है कि आजाद भारत की नेहरू सरकार ने भी इसे दो दशक तक जारी रखा। लेखक और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर का मानना है कि इसका एकमात्र उचित स्पष्टीकरण ये है कि कांग्रेस सुभाष चंद्र बोस की वापसी से डरी हुई थी। उनका मानना है कि बोस के जीवित होने न होने की सटीक जानकारी सरकार के पास नहीं थी। ऐसे में कांग्रेस सरकार की ये सोच होगी कि बोस अगर जिंदा होंगे तो कोलकाता में अपने परिवार से जरूर संपर्क करेंगे। जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट के एक मंत्री टीटी कृष्णमचारी ने फोन टैप होने का आरोप लगाया था। इंटेलिजेंस ब्य़ूरो के डॉयरेक्टर बीएन मलिक का नाम भी लिया था। जासूसी हुई या नहीं हुई...न तो जांच हुई और न ही सच्चाई सामने आई। नेहरू सरकार में ही तत्कालीन मंत्री रफी अहमद किदवई ने भी अपने फोन की टैपिंग की बात कही थी। लेकिन उन्होंने इसकी औपचारिक शिकायत किसी से नहीं की।
1959 में लोकप्रिय थल सेना अध्यक्ष जनरल जेएस थ्मैया ने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। थिमय्या का उस वक्त के रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन के साथ आर्मी में कुछ नियुक्तियों को लेकर भी विवाद हुआ था और उसके बाद उन्होंने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। उन्होने इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया था कि उनके ऑफिस और घर दोनों जगह कुछ ऐसे बग हैं, जिससे जासूसी का शक होता है।
इंदिरा गांधी ने अपने ही मंत्री की करवाई जासूसी
इंदिरा गांधी ने अपने ही गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह के खिलाफ फोन टैपिंग करवाई थी। आईबी के डॉयरेक्टर रहे एमके धर ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र करते हुए बताया कि इंदिरा गांधी ने अपने ही गृह मंत्री की जासूसी के लिए आईबी को कहा था। कहा गया कि गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और जरनैल सिंह भिंडरांवाले के बीच में जो भी बातचीत हुई थी उसे आईबी ने रिकॉर्ड किया था। धर ने इस काम को अंजाम दिया और रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री को सौंपी।
मेनका गांधी और उनके परिवार के खिलाफ भी फोन टैपिंग के कई मामले सामने आए
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एमके धर ने ये माना कि उन्होंने मेनका गांधी की मां अमतेश्वर आनंद के जोरबाग वाले घर में व्यक्तिगत तौर पर फोन टैपिंग डिवाइस स्टॉल किया था। इसके अलावा मेनका गांधी की मैगजीन सूर्या के ऑफिस पर छापे भी पड़े थे और मेनका गांधी के दोस्तों की कॉल रिकॉर्डिंग हुई।
राजीव ने राष्ट्रपति के पीछे आईबी लगा दिया
इंदिरा सरकार में देश के गृहमंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह को बाद में राष्ट्रपति बनाया गया। लेकिन राजीव गांधी और ज्ञानी जेल सिंह के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। ज्ञानी जैल सिंह ने राष्ट्रपति रहते हुए तत्कालीन पीएम राजीव गांधी पर फोन टैप का आरोप लगाया था। जैल सिंह का कहना था कि राजीव यह जानना चाहते थे कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ मेरी क्या बातचीत हो रही है। आईबी चीफ एमके धर ने अपनी किताब ओपन सीक्रेट में कहा है कि जैल सिंह भी इस बात को जानते थे कि उनकी जासूसी हो रही है। यही कारण है कि जैल सिंह अपने मेहमानों से राष्ट्रपति गार्डन में मिलते थे।
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रामकृष्ण हेगड़े ने गंवाई अपनी कुर्सी
कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। रामकृष्ण हेगड़े ने पांच साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पास रखी. हेगड़े के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वक्त पर उन्हें जनता तक की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रमुख दावे तक माना जाने लगा था। लेकिन साल 1988 में उनके लिए फोन टैपिंग का ऐसा भूत समाने आया जिसने उनकी कुर्सी छीन ली।
चंद्रशेखर ने दिया इस्तीफा
राजनितक इतिहास में देखा जाए तो 1990 का साल बड़े घटनाक्रम वाला रहा। जिस दौरान वीपी सिंह और चंद्रशेखर जैसे समाजवादी नेता पीएम की कुर्सी तक पहुंचे। लेकिन 2 मार्ची 1991 की वो तारीख जब दिल्ली पुलिस ने राजीव गांधी के 10 जनपथ आवास के बाहर से हरियाणा खुफिया विभाग के दो जासूसों को सादे कपड़ों में पकड़ा। दिल्ली पुलिस की पूछताछ में दोनों जासूसों ने स्वीकार किया कि वे राज्य की सीआईडी के आदेश पर दिल्ली में अपनी 'ड्यूटी' कर रहे थे। उस समय सीआईडी हरियाणा के गृह मंत्री संपत सिंह के अधीन थी। इस मामले ने कांग्रेस (आई) को हैरान कर दिया। कांग्रेस (आई) ने आरोप लगाया कि केंद्र ने सादे कपड़ों में राजीव के घर के बाहर सीआईडी को तैनात किया है। सरकार राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है।
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पवार, नीतीश, येचुरी के फोन किए गए टैप
एक अंग्रेजी मैगजीन ने साल 2010 में दावा किया था कि सरकारी एजेंसी ने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह समेत कई जाने-माने नेताओं के फोन टैप किए। इन नेताओं में बिहार के सीएम नीतीश कुमार, सीपीएम महासचिव प्रकाश कारत के नाम शामिल थे। मैगजीन के मुताबिक, करगिल वॉर के बाद बनाई गई खुफिया एजेंसी 'नैशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन' ने ये फोन टैप किए।
प्रणव के मंत्रालय की जासूसी से मचा हंगामा
साल 2011 में इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक खबर आई जिसने पूरे देश में हंगामा मचा दिया। इस खबर के मुताबिक उस वक्त के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने शक जाहिर किया कि उनके दफ्तर की सुरक्षा में सेंध लगी है। अखबार का दावा है कि वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री से इसकी खुफिया तरीके से जांच कराने की गुजारिश की और मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी। वित्त मंत्री ने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि उनके दफ्तर में 16 अहम जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ दिखे थे। उन्होंने शक जाहिर किया था कि हो सकता है मंत्रालय के कामकाज पर नजर रखने की कोशिश की जा रही है। जिन 16 जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ पाए गए थे उनमें वित्त मंत्री का दफ्तर, उनके सलाहकार ओमिता पॉल का दफ्तर, निजि सचिव मनोज पंत का दफ्तर और वित्त मंत्री द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दो कॉन्फ्रेंस रूम शामिल थे। चिपकने वाले पदार्थों की मौजूदगी का पता तब चला था जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सेस ने प्राइवेट डिटेक्टिव की टीम से वित्त मंत्रालयल की जांच कराई थी। बाद में आईबी ने उन चिपकने वाले पदार्थ को महज च्वींगम करार दिया था। हालांकि बाद में वित्त मंत्री के दफ्तर में प्राइवेट जासूसों को क्या खोजने के लिए लगाया गया था? मामला सुरक्षा में सेंध का था लेकिन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसकी जानकारी गृहमंत्री पी चिदम्बरम को क्यों नहीं दी? जैसे कई सवाल भी उठे। -अभिनय आकाश
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