भारतीय हॉकी का सफर: गोल्डन युग से सेमीफाइनल के संघर्ष तक की कहानी

Journey of Indian Hockey
अभिनय आकाश । Aug 5 2021 5:54PM

1928 के ओलंपिक से पहले भारतीय टीम ब्रिटेन के दौरे पर गई। जहां उसने ब्रिटेन टीम को बुरी तरह हराया। इस हार के बाद ब्रिटेन समझ गया कि उसने ओलंपिक में अपनी टीम भेजी तो वहां भी टीम भारत से हार जाएगी। इसी डर की वजह से ब्रिटेन की टीम 1928 के ओलंपिक में खेलने ही नहीं गई।

41 साल बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम को पदक मिलने के बाद ओलंपिक में भारतीय हॉकी में सूखे के दौर पर विराम लग गया। टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला टीम भी कांस्य पदक के लिए 6 अगस्त को ब्रिटेन से भिड़ने वाली है। बहुत दिन बाद हुआ है कि हॉकी चर्चा में लौटी बल्कि ओलंपिक जैसे प्रतिष्ठित खेल उत्सव में बढ़िया प्रदर्शन किया है। मेडल तो आया ही है लेकिन ये बात तथ्य है कि हॉकी अब निराशा के अंधेरे से बाहर आकर चमक रही है। ये बदलाव हुआ कैसे? हम सब ने कभी न कभी ये सोचा होगा जब हॉकी में हम इतने फिसड्डी हैं तो फिर इसे भारत का राष्ट्रीय खेल क्यों कहा जाता है। इसका जवाब भारत में हॉकी के इतिहास के पन्ने पलटने पर मिलता है। ओलंपिक में आज हम सोने के एक तमगे के लिए तरस रहे हैं लेकिन एक ऐसा भी दौर था जब हॉकी में भारत का गोल्ड पक्का होता था। ओलंपिक के फाइनल मैच में भी भारत एकतरफा जीत दर्ज करता था। वो दौर जब मेजर ध्यानचंद और उनकी टीम हॉकी स्टिक लेकर मैदान पर उतरती थी तो दुनिया में कोई हराने वाला नहीं होता था। भारत में हॉकी के स्वर्णिम दौर के हमने कितने किस्से सुने हैं। भारत ने हिटलर के सामने बर्लिन में जर्मनी को बुरी तरह धोया। 1928 से अगले चार दशक तक हॉकी की बादशाहत भारत के पास रही। ओलंपिक में हॉकी का रिकॉर्ड कोई दूसरा खेल या कोई दूसरा देश नहीं तोड़ पाया है। भारत ने आठ बार ओलंपिक में हॉकी का गोल्ड जीता है। 

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हॉकी खेलों का इतिहास और भारत

ऐतिहासिक रूप से कहें तो हॉकी की उत्पत्ति का पता 4000 साल पहले मिस्र में लगाया जा सकता है। इतिहासकार बताते हैं कि खेल का एक कच्चा रूप जिसमें लाठी और गेंद शामिल है। इसी तरह के साक्ष्य इथियोपिया में लगभग 1,000 ईसा पूर्व और ईरान में लगभग 2,000 ईसा पूर्व में पाए गए हैं। हालांकि, फील्ड हॉकी के आधुनिक रूप को विकसित करने का श्रेय ब्रिटेन को दिया जाता है। कहा जाता है कि भारत में हॉकी का खेल तब आया, जब देश अंग्रेजों का गुलाम था। उस वक्त ब्रिटेन ने भारत में हॉकी को लोकप्रिय बनाने के लिए सेना में सबसे पहले इस खेल की शुरुआत की। ये वो दौर था जब भारत में क्रिकेट और हॉकी दोनों को महत्व मिल रहा था और अंग्रेजी सरकार इन खेलों को भारत में बढ़ावा दे रही थी। ब्रिटिश रेजीमेंट के माध्यम से ही हॉकी भारत पहुंची। क्रिकेट के बाद, हॉकी अंग्रेजों का पसंदीदा शगल था। पहला पेशेवर हॉकी क्लब 1885-86 के बीच कलकत्ता शहर में स्थापित किया गया था। जल्द ही बंबई और पंजाब में क्लबों का गठन हुआ। वर्ष 1908 के लंदन ओलंपिक में पहली बार हॉकी का डेब्यू हुआ। फिर पहले वर्ल्ड वॉर के बाद वर्ष 1920 के ओलंपिक खेलों में भी हॉकी को जगह मिली। हालांकि तब तक भारत इन खेलों में हिस्सा नहीं लेता था। जो खिलाड़ी भारत की तरफ से इन खेलों में जाते भी थे उनमें से कई ब्रिटिश मूल के हुआ करते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि जब भारतीय खिलाड़ी हॉकी के फील्ड में उतरे तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उनका मजाक उड़ाया क्योंकि अंग्रेज भारत को सपेरों का देश मानते थे। लेकिन ये अंग्रेजों की सबसे बड़ी भूल थी। 1920 का दशक वो दौर था जब भारत में बहुत सारे स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुए और इसी दौरान भारतीय हॉकी टीम बनी। इस टीम में जो खिलाड़ी थे वो अपनी हॉकी स्टिक से ब्रिटिश सरकार को जवाब देना चाहते थे। इनमें हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद भी थे। इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन की स्थापना के ठीक एक साल बाद साल 1925 में इंडियन हॉकी फेडरेशन का गठन हुआ। 1926 में पहली बार भारतीय हॉकी टीम अपने पहले विदेशी दौरे पर न्यूजीलैंड गई। न्यूजीलैंड दौरे पर टीम इंडिया ने 26 मैचों में से 18 मैच जीतकर सभी को हैरान कर दिया। तब इस टीम के युवा मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक का जादू दुनिया ने देखा। 

भारत के डर की वजह से ब्रिटेन की टीम ने 1928 के ओलंपिक से किया किनारा

1928 के ओलंपिक से पहले भारतीय टीम ब्रिटेन के दौरे पर गई। जहां उसने ब्रिटेन की हॉकी टीम को बुरी तरह हराया। इस हार के बाद ब्रिटेन समझ गया था कि अगर उसने ओलंपिक खेलों में अपनी टीम भेजी तो वहां भी ये टीम भारत की हॉकी टीम से हार जाएगी। ये उसके लिए शर्मनाक होगा और इसी डर की वजह से ग्रेट ब्रिटेन की टीम 1928 के ओलंपिक में खेलने ही नहीं गई। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बाद अंग्रेज पहली बार इस तरह से किसी भारतीयों से डरे थे। 1928 के ओलंपिक में न केवल भारतीय टीम ने भाग लिया बल्कि हॉकी में गोल्ड मेडल भी जीता। दिलचस्प बात ये है कि तब भारत की हॉकी टीम ने कुल पांच मुकाबलों में 29 गोल दागे जबकि किसी भी देश की प्रतिद्ववंदी टीम बॉल को भारत के गोल पोस्ट में डाल ही नहीं पाई। 1928 का ओलंपिक खेल भारत ने 29-0 से जीता। जिसमें ऑस्ट्रिया (6-0), बेल्जियम (9-0), डेनमार्क (6-0) और स्विटजरलैंड (5-0) के मुकाबले शामिल रहे। 23 वर्षीय खिलाड़ी ध्यान चंद ने 14 गोल दागे थे। 

तानाशाह हिटलर के सामने जर्मनी को पटखनी

1928 के बाद 1932 और 1936 के ओलंपिक में भी भारत ने गोल्ड मेडल जीतकर पहली हैट्रिक लगाई और बर्लिन ओलंपिक का फाइनल मैच देखने के लिए जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर खुद मैदान पर मौजूद थे। भारतीय हॉकी टीम के पास चार साल बाद लॉस एंजिल्स में अपने ओलंपिक स्वर्ण का बचाव करने का एक आसान काम था, जिसमें केवल तीन टीमें थीं - संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के अलावा। वास्तव में, 'आरामदायक' एक अतिशयोक्ति होगी! भारतीयों ने फाइनल में अमेरिकियों को 24-1 से हराया, जो उस समय हॉकी में सबसे बड़ी जीत थी। यूं तो 15 अगस्त के भारत के इतिहास में बहुत खास मायने हैं लेकिन इसी तारीख को सन् 1947 से 11 साल पहले भारतीय झंडा दुनिया के किसी दूसरे कोने में सबसे ऊंचा लहराया जा रहा था। 1936 के हॉकी ओलंपिक फाइनल में भारत का सामना मेजबान जर्मनी से था। 40 हजार दर्शकों के साथ ओलिंपिक का फाइनल देखने एडोल्फ हिटलर भी स्टेडियम में मौजूद था। फाइनल मुकाबले के दिन मेजर ध्यानचंद ने एक बार फिर जादुई खेल दिखाया और भारत ने हॉकी में लगातार तीसरा ओलिंपिक गोल्ड जीता। 1936 के ओलिंपिक फाइनल में ध्यानचंद 6 गोल किए और भारत ने मैच 8-1 से जीता। उनके खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें सेना में सबसे ऊंचे पद का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने विनम्रता के साथ यह कहकर इसे ठुकरा दिया, ''मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा। ध्यानचंद का ये आखिरी ओलंपिक साबित हुआ क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध की वजह से 1948 तक ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ ही नहीं। 

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इंग्लैंड की धरती पर स्पोर्टिंग इवेंट में भारत का तिरंगा लहराया

1947 में भारत को ब्रिटेन से आजादी मिलने के एक साल बाद 1948 में लंदन ओलंपिक हुए और इसमें ग्रेट ब्रिटेन की टीम ने हिस्सा लिया। ये संयोग था कि फाइनल में भारत का मुकाबला ब्रिटेन से हुआ। "उनके देश में, उनकी पब्लिक के सामने, उनके किंग के आगे, उन्हीं को हरायेंगे। भारतीय टीम अंग्रेज को लंदन में हराकर 200 साल की गुलामी का बदला लेगी।" ये 15 अगस्त 2018 को आयी एक फिल्म 'गोल्ड' का डायलाग है। साल 1948, तारीख 12 सितंबर, भारत अभी-अभी ब्रिटेन की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ था। लंदन ओलंपिक्स, 25 हजार दर्शकों से भरा वेंबली स्टेडियम। हॉकी के फाइनल मुकाबले में आमने- सामने थे भारत और ब्रिटेन। फ़ाइनल शुरू हुआ तो सारे दर्शकों ने एक सुर में चिल्लाना शुरू किया, "कम ऑन ब्रिटेन, कम ऑन ब्रिटेन!" धीरे-धीरे हो रही बारिश से मैदान गीला और रपटीला हो चला था। नतीजा ये हुआ कि किशन लाल और केडी सिंह बाबू दोनों अपने जूते उतार कर नंगे पांव खेलने लगे। मैच का सातवां मिनट और बलवीर सिंह सीनियर ने भारत की तरफ से पहला गोल दागा। लोग संभले ही थे कि 15वें मिनट पर उसने दूसरी बार गेंद गोलपोस्ट में डाल दी। इसके बाद दो गोल तरलोचन सिंह बावा और पैट जैंसन ने किए। नतीजा आया तो भारत ने 4-0 से ब्रिटेन को मात दे दी थी। आज़ादी की लड़ाई के बाद एक और लड़ाई में। पहली बार इंग्लैंड की धरती पर किसी स्पोर्टिंग इवेंट में भारत का तिरंगा लहरा रहा था। 

1948 के बाद भारत ने हॉकी में 1952 और फिर 1956 के ओलंपिक खेलों का गोल्ड मेडल जीता। ओलंपिक में ये भारत की दूसरी गोल्ड हैट्रिक थी। ये वो दौर था जब हमारे देश के लोगों को क्रिकेट के नहीं बल्कि हॉकी के खिलाड़ियों के नाम याद रहते थे। 1960 रोम ओलंपिक में डेनमार्क (10-0), नीदरलैंड (4-1), और न्यूजीलैंड (3-0) को आराम से हराकर क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया। जहां भारत और पाकिस्तान की टीम एक-दूसरे के सामने थी। लेकिन भारत को इस मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा। भारत ने 1964 के टोक्यो ओलंपिक में फिर से गोल्ड मेडल जीता। हॉकी में भारत को आखिरी गोल्ड मेडल मास्को के ओलंपिक में मिला था। उसके बाद फिर दोबारा हमारी टीम पोडियम तक नहीं पहुंची। इस नाकामी की वजह हॉकी के खेल में हुआ एक बदलाव भी था। तब तक हॉकी का खेल घास के मैदान से आर्टिफिशियल ग्रास पर शिफ्ट हो गया था। 1976 में पहली बार जब इन बदलावों के साथ खेल हुए तो भारत सातवें स्थान पर रहा। वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक में तो हॉकी में हमारा देश क्वालिफाई ही नहीं कर पाया। 

ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का सफर

  • स्वर्ण 1928 एम्स्टर्डैम
  • नीदरलैंड्स स्वर्ण 1932 लॉस एंजिलिस
  • संयुक्त राज्य अमेरिका स्वर्ण 1936 बर्लिन
  • जर्मनी स्वर्ण 1948 लंदन
  • यूनाइटेड किंगडम स्वर्ण 1952 हेलसिंकी
  • फिनलैंड स्वर्ण 1956 मेलबर्न
  • ऑस्ट्रेलिया रजत 1960 रोम
  • इटली स्वर्ण 1964 टोक्यो
  • जापान कांस्य 1968 मेक्सिको सिटी
  • मेक्सिको कांस्य 1972 म्यूनिख
  • जर्मनी स्वर्ण 1980 मॉस्को

हॉकी ने खोई चमक

एक दौर था जब हॉकी में भारत आला दर्जे की टीम थी और सबसे ज्यादा मेडल हॉकी में ही जीते। 1980 के बाद भारत को एक भी मेडल हॉकी में नहीं मिला। धीरे-धीरे हॉकी को नजरअंदाज कर दिया गया। सहारा 1995 से भारतीय हॉकी से जुड़ी हुई थी। 2017 में कंपनी का करार 2021 के लिए बढ़ा दिया गया। लेकिन खराब वित्तीय हालत की वजह से यह डील समय से पहले टूट गई। सहारा के हटने के बाद ओडिशा सरकार ने भारतीय हॉकी को स्पॉन्सर करने का फैसला किया। राज्य सरकार पिछले 3 साल से भारतीय हॉकी टीम को स्पॉन्सर कर रही है। हालिया वर्षों में पुरूष हॉकी वर्ल्ड कप, वर्ल्ड लीग, प्रो लीग और ओलंपिक क्लॉलिफार्स जैसे कई बड़े टूर्नामेंट के मैच भुवनेश्वर में हुए हैं। ओडिशा सरकार की तरफ से लगातार विभिन्न माध्यमों से हॉकी टीमों को सहायता किया जाता रहा है। ओडिशा देश का इकलौते राज्य हैं जो किसी भी नैशनल हॉकी टीम का आधिकारिक पार्टनर हैं।  

लौटेंगे अच्छे दिन 

जब देश के संपूर्ण सामर्थ ने हॉकी पर दांव नहीं लगाया तो एक राज्य के  मुख्यमंत्री ने सहयोग के लिए हाथ बढ़ाया। हॉकी को सुधारने में ओडिशा सरकार ने अच्छी नीयत दिखाया और खर्चा बढ़ाया तो बढ़िया कोच भी मिलने लगे। टैरी वॉल्स, रॉएलेंट ऑल्टमस और ग्राहम रेड भारतीय हॉकी टीम के रहे हैं। इससे खेल में सुधार आया है। महिला हॉकी टीम के कोच अभी शार्ड मारिन हैं। -अभिनय आकाश

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