सोवियत की खुफिया एजेंसी KGB जिसने हंसते-मुस्कुराते पार कर दी परमाणु कार्यक्रम की जानकारी, कांग्रेस को फंडिंग के भी लगे थे आरोप

KGB
अभिनय आकाश । Jul 31 2021 6:00PM

1991 में ही बंद हो चुकी इस एजेंसी ने अपने छोटे से कार्यकाल में पूरी दुनिया में अपनी वो पहचान बनाई जो वर्तमान दौर में भी चर्चा का विषय रहती है। आज सीक्रेट सर्विसेज के बड़ी-बड़ी एजेंसियां रॉ, मोसाद, सीआईए द्वारा अपनाए जाने वाले तकनीकों का जनक केजीबी को ही माना जाता है।

कई बार कोई एक खुफिया सूचना किसी देश को युद्ध में जीत दिलवा सकती है और हार की वजह भी बन सकती है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में खुफिया एजेंसी का महत्व क्या होता है अगर आप यह समझना चाहते हैं तो आपको उस देश की खुफया एजेंसी के इतिहास के बारे में जरूर पता होना चाहिए जो देश खुद को दुनिया का सबसे ताकवर देश मानता है। ये रूस के पूर्व अवतार यानी की सोवियत संघ के विघटन से पहले की एक खुफिया एजेंसी की कहानी है।  एक मजदूर का बेटा एक रोज दफ्तर जाकर पूछता है कि मुझे आपके जैसा बनने के लिए क्या करना होगा? वहां मौजूद अधिकारियों ने बच्चे को देखकर कहा कि कॉलेज में जाकर पढ़ाई करो या फौज में भर्ती हो जाओ। उस लड़के ने लॉ में डिग्री लेने के बाद सिक्योरिटी एजेंसी में काम करना शुरू किया। वहां वो खुफिया अधिकारियों की नजर में आया और फिर यही केजीबी का अफसर भी बना। आगे चलकर वही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बने। आज उसी सुरक्षा एजेंसी की कहानी सुनाऊंगा जिसके किस्से कई जासूसी उपन्यासों, फिल्मों और किंवंदतियों के कथानक भी बने। जिसे तकनीकी जानकारियों को चुराने में उस्ताद माना जाता था। 

केजीबी क्या है?

सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी यानी गोसुदर्स्त्वेन्नोय बेज़ोप्स्नोस्ति जितना बड़ा इसका नाम है उसे भी बड़े इसके काम हैं। 1991 में ही बंद हो चुकी इस एजेंसी ने अपने छोटे से कार्यकाल में  पूरी दुनिया में अपनी वो पहचान बनाई जो वर्तमान दौर में भी चर्चा का विषय रहती है। आज सीक्रेट सर्विसेज के बड़ी-बड़ी एजेंसियां रॉ, मोसाद, सीआईए द्वारा अपनाए जाने वाले तकनीकों का जनक केजीबी को ही माना जाता है। केजीबी के फुल फॉर्म को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करे तो ये Committee for State Security बनता है। ये सोवियत यूनियन की एक मुख्य खुफिया एजेंसी थी। जिसका गठन 1954 में हुआ था और सोवियत संघ के विघटन से पहले तक यानी 1991 तक ये सक्रिय था। साल 1953 से 1964 तक निकिता खुश्चेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे। दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात देश की सत्ता संभालने के बाद खुश्चेव को तो पता था कि अगर दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना है तो ऐसी एजेंसी का गठन करना होगा जो किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहे। जिसके एजेंट दुनिया में कहीं भी कभी भी किसी भी काम को बिना अंजाम की परवाह किए निपटा सके। ख्रुश्चेव ने वर्ष 1954 में पीपुल्स कमीशैरियत फॉर इंटरनल अफेयर्स एजेंसी को समाप्त कर केजीबी का गठन किया। ख्रुश्चेव ने केजीबी को देश से भी अधिक ताकत दी थी, ताकि कोई उसके काम में दखल न दे सके। 

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पुतिन 15 साल तक केजीबी एजेंट रहे 

व्लादिमीर पुतिन सत्ता में आने से पहले तक एफ़एसबी के चीफ़ हुआ करते थे। पुतिन ने रूसी की खुफिया एजेंसी केजीबी के विदेश में जासूस के रूप में 15 साल तक काम किया। 1989 की क्रांति के दौरान पुतिन ड्रेसडेन में रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी के एजेंट के तौर पर तैनात थे। ये जगह जर्मनीके उस हिस्से में थी जिसे तब कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी के नाम से जाना जाता था। साल 1990 में वो केजीबी से लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक से रिटायर हो गए और रूस वापस लौट आए। 

ब्रिटेन के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी सोवियत संघ को दे दी

 ये मार्च 1945 की बात है एक व्यक्ति सूटकेस लिए ब्रिटेन के एक पार्क में बैठा था। कुछ समय बाद उसके पास एक युवा जोड़ा मुस्कुराता हुआ आता है। सूटकेस वाला व्यक्ति उस जोड़े को देख अपने स्थान से उठ जाता है और वहां से निकल जाता है। लेकिन उसके साथ वाला सूटकेस वहीं रह जाता है। जिसके बाद पार्क में आए जोड़े ने सूटकेस को उठाया और वहां से रवाना हो गए। ये कहानी है ब्रिटिश और अमेरिकी परमाणु कार्यक्रम की जानकारियों को हासिल करने की कहानी थी। पार्क में सूटकेस छोड़ने वाला और सूटकेस उठाने वाले युवा जोड़े सोवियत की खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट थे। केजीबी जासूस मेलिटा नोरवुड ने ब्रिटेन के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी जानकारियां सोवियत संघ को दी थीं। एमआई 5 ने उसपर शक किया था, उसका पीछा किया था और उसके हर कदम, हर हरकत पर निगाह रखी थी, लेकिन वह कभी उसपर हाथ नहीं डाल सका। रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी ने उसका कोड नाम एरिक रखा था। उसे मित्र राष्ट्रों के परमाणु बम के रहस्यों को चुराने की मुहिम सौंपी गई और इस मुहिम को इनारमस का नाम दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार एरिक की सूचनाओं ने रूस को परमाणु बम बनाने की होड़ में शामिल होने का मौका दिया। 

केजीबी के सीक्रेट ऑपरेशन की जानकारी कैसे दुनिया को पता चली?

रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के दस्तावेजों को संभालने वाले वैसिली मित्रोखिन इन्होंने करीब 40 सालों तक केजीबी में काम किया। इस दौरान केजीबी द्वारा दुनियाभर में किए जाने वाले कोबर्ट और ब्लैक ऑपरेशन से जुड़े सभी टॉप डॉक्यूमेंट मित्रोखिन के पास ही आते थे जिन्हें वो आरकाइव करने का काम करते थे। इतने सालों तक केजीबी के टॉप सीक्रेट डॉक्यूमेंट्स को पढ़ते-पढ़ते धीरे-धीरे उनका मन कम्युनिस्ट विचारधारा और सोवियत यूनियन से उठने लगा। वैसिली मित्रोखिन ने 1992 में ब्रिटेन में शरण ली। वह अपने साथ छह ट्रक भरके केजीबी की फाइलों का जखीरा भी लाए। इसमें 1954 से लेकर 1990 के दशक तक केजीबी द्वारा अलग-अलग देशों में किए गए ऑपरेशन की डिटेल थी। इन्हीं दस्तावेजों के आधार कैंब्रिज के इतिहासकार क्रिस्टोफर एंड्रयू ने दो किताबें लिखीं- किताब 'द मित्रोखिन आर्काइव I' और 'द मित्रोखिन आर्काइव II' लिखी। इन किताबों में छपे रिपोर्ट्स ने इतनी सनसनी बचाई कि भारत, इटली और ब्रिटेन में तो संसदीय जांच भी बिठा दी गई। 

भारत के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे किए

द मित्रोखिन आर्काइव II में भारत को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए गए। जिसमें कहा गया कि केजीबी के इंदिरा गांधी और कांग्रेस के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध थे। केजीबी इंदिरा गांधी को चुनाव जीताने के लिए हर संभव सहयोग किया करती थी। शीत युद्ध के जमाने में कम्युनिस्ट देश जहाँ भारत में साम्यवाद के फैलाव के लिए पैसे खर्च कर रहे थे। इस किताब की माने तो केजीबी भारत की आतंरिक राजनीति में इनवाल्व थी। द मित्रोखिन आर्काइव II के अनुसार, 'इंदिरा गांधी की पिछली सरकार में कांग्रेस के लगभग 40 पर्सेंट सांसदों को सोवियत संघ से राजनीतिक चंदा मिला था। केजीबी ने 1970 के दशक में पूर्व रक्षा मंत्री वी के मेनन के अलावा चार अन्य केंद्रीय मंत्रियों के चुनाव प्रचार के लिए फंड दिया था। केजीबी ने भारत के केंद्रीय मंत्रियों को मुंहमांगी कीमत देकर खुफिया जानकारियां खरीदीं। उस वक्त के केजीबी जनरल ओलेग कलुगिन ने मित्रोखिन से कहा था, 'ऐसा लगता है कि मानो पूरा भारत बिकने को तैयार है।' उन्होंने भारत की मिसाल देकर बताया था कि किस तरह दूसरे मुल्क में घुसपैठ की जा सकती है। रिपोर्ट सामने आने के बाद उस वक्त बीजेपी ने काफी हल्ला मचाया था। विदेश से पैसा लेने के मामले की जाँच भी कराई गई थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट दबा दी गई। जब कुछ विपक्षी सांसदों ने इसे सार्वजनिक करने की मांग की तो तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने संसद में कहा कि जिन दलों और नेताओं को विदेशों से धन मिले हैं, उनके नाम जाहिर नहीं किए जा सकते, क्योंकि इससे उनके हितों को नुकसान पहुंचेगा।

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ट्रंप को केजीबी ने तैयार किया?

केजीबी के पूर्व एजेंट रहे यूरी श्वेत्स के ब्रिटिश अखबार ‘द गार्जियन’ से बात करते हुए एक बड़ा सनसनीखेज दावा किया था। 1980 के दशक में श्वेत्स को केजीबी ने वॉशिंगटन में नियुक्त किया। श्वेत्स को रूसी समाचार एजेंसी तास के संवाददाता के रूप में वॉशिंगटन भेजा गया था। 1993 में वह स्थायी रूप से अमेरिका में बस गया। उसने अमेरिकी नागरिकता ले ली।  श्वेत्स का कहना है कि जब ट्रंप ने 1987 में पहली बार अपनी पत्नी इवाना के साथ मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग की यात्रा की, तब केजीबी के एजेंटों ने उनकी खूब आवभगत की। इसी दौरान उन्होंने ट्रंप के दिमाग में ये विचार डाला कि उन्हें राजनीति में आना चाहिए। श्वेत्स का कहना है कि इस दौरान केजीबी ने ट्रंप के व्यक्तित्व के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठी कर ली। इन एजेंटों ने ट्रंप की खूब तारीफ की और ये कहा कि आप जैसे व्यक्ति को अमेरिका का राष्ट्रपति होना चाहिए। आगे चल कर केजीबी ने ट्रंप की इन्हीं कमजोरियों का फायदा उठाया। साल 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में ट्रंप की जीत पर मास्को में खूब खुशी मनाई गई थी। अमेरिका में ट्रंप और रूस के बीच रिश्तों की जांच कराई गई थी। ये जांच विशेष वकील रॉबर्ड मूलर की अध्यक्षता में हुई। लेकिन इसमें आरोप की पुष्टि नहीं हो सकी।- अभिनय आकाश 

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