हिंदू राज्‍य बनाने की मांग, मजबूत होती राजशाही और योगी फैक्टर, चीन के समर्थक प्रचंड भारत के साथ रिश्ते बढ़ाने की कोशिश में क्यों लगे हैं?

Prachanda Modi
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अभिनय आकाश । Jun 1 2023 2:00PM

नेपाल में हिंदू राज्य बनाने की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है। नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र लगातार देश में दौरा कर रहे हैं और जनता से राजनेताओं की क्षमता को लेकर सवाल कर रहे हैं।

नेपाल और भारत के बीच रोटी और बेटी का संबंध है। दोनों मुल्क के नेताओं को अगर भारत-नेपाल संबंध पर दो शब्द बोलना पड़े तो, भाषण ही इसी मुहावरे से शुरु होता है। ऐसी बात नहीं कि इस मुहावरा में सच्चाई नहीं। बात त्रेता युग की करें तो अयोध्या के राजकुमार भगवान श्रीरामचन्द्र का विवाह जनकनंदनी सीता से हुआ था। यह क्रम अभी भी जारी है। आम तौर पर माना जाता है कि भारत और नेपाल घनिष्ट मित्र हैं और दोनों देशों कि मित्रता हजारों वर्ष पुरानी है। जिसके केंद्र में संस्कृति और धर्म है। नेपाल वर्षों तक दुनिया का अकेला ऐसा देश था तो खुद को हिन्दू राष्ट्र कहता था। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने आज दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। इस दौरान उन्होंने बहराइच में बने चेकपोस्ट का उद्घाटन भी किया। ये चेकपोस्ट भारत सरकार और यूपी सरकार की मदद से बनाया गया है। इस चेकपोस्ट के बनने से दोनों देशों के व्यापार में आसानी होगी। ये चेक पोस्ट 230 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुआ है। प्रचंड के साथ नेपाल सरकार के कई मंत्री भी भारत दौरे पर आए हुए हैं। नेपाल के विदेश मंत्री का कहना है कि दोनों देशों के बीच आतंकवाद पर लगाम लगाने को लेकर भी बातचीत हुई है। नेपाल के प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद प्रचंड की ये पहली भारत यात्रा है। वो 3 जून तक भारत में रहेंगे। 

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नेपाल और भारत के बीच का सीमा विवाद

नेपाल और भारत के बीच 1800 किलोमीटर की खुली सीमा है। ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाली गोरखा के बीच हुई लड़ाईयों के बाद 1816 में दोनों के बीच सुगौली सीमा संधि हुई थी। लेकिन पिछले कुछ समय से नेपाल के पश्चिमी उत्तरी सीमा बिंदु को लेकर विवाद चल रहा है। पश्चिमी की सीमा महाकाली नदी को माना गया है। नेपाल का दावा है कि पश्चिमी सीमा कालापानी है, जो 1816 के बाद नेपाल में था। 1960 के दशक में भारत चीन युद्ध के आसपास से वहां भारत का कब्जा है। इसके साथ ही लिम्पियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को लेकर भी नेपाल ने विवाद खड़ा किया। चीन के साथ लगते हुए इस क्षेत्र की वजह से ये एक ट्राइजक्शन प्लाइंट है, जिसका अपना एक विशेष सामरिक महत्व है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय सत्ता से हटाए जाने से पहले नेपाल के पहले प्रधानमंत्री मोहन शमशेर राणा ने भारत के साथ मैत्री संधि की थी। 31 जुलाई 1950 को हुई इस संधि पर मोहन शमशेर और भारतीय राजदूत चंदेश्वर प्रसाद नारायण के हस्ताक्षर हैं। नेपाल में मानना है कि हस्ताक्षरकर्ता का 'प्रोटोकॉल' ही सही नहीं है। सत्ता बचाने के लिए राणाओं ने भारत से संधि की, जो नेपाल की सार्वभौम सत्ता को कमजोर करती है।

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प्रचंड और भारत के रिश्तों का इतिहास

नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड का भारत से रिश्ता कोई नया नहीं है। 1996 से 2006 तक नेपाल में चले गृह युद्ध के दौर में राजशाही और माओवादियों के बीच संघर्ष छिड़ा था। इस दौरान प्रचंड समेत कई माओवादी नेता अपना देश छोड़कर भारत में रह रहे थे। नेपाल में जब माओवादियों को लेकर रोष बढ़ा तो भारत ही मध्यस्थ की भूमिका में नजर आया। इतना ही नहीं प्रचंड समेत नेपाल के माओवादी नेताओं से शांति समझौते पर बात की थी। जिसके परिणामस्वरूप 2006 में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए और फिर नेपाल में चुनाव का रास्ता साफ हुआ। इस चुनाव में माओवादियों की  जीत हुई और प्रचंड प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। लेकिन साल 2008 में पीएम बनने के बाद प्रचंड ने चीन की यात्रा की, जबकि नेपाल में कोई भी प्रधानमंत्री के पद ग्रहण करने के बाद भारत की पहली यात्रा की रवायत रही है। 2016-17 में प्रचंड के एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की कुर्सी संभालने के बाद भारत को लेकर रुख बेहद ही तल्ख नजर आए। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि नेपाल अब वो नहीं करेगा, जो भारत कहेगा। लेकिन वो कुर्सी पर कुस ही समय के लिए रह पाए और जल्द ही उनकी सत्ता से विदाई हो गई। 

चीन संग नजदीकी ने बढ़ाई प्रचंड की मुश्किल

पिछले कुछ वर्षों में नेपाल ने भारत की आपत्तियों के बावजूद चीन के साथ कई तरह के समझौते किये हैं। नेपाल ने चीन की कंपनियों को अपने यहां एनर्जी खोज की अनुमति दी है। नेपाल इंटरनेट सेवाओं के लिए भी भारत पर निर्भर नहीं रहा, बल्कि चीन की मदद मिलने लगी है। चीन की वन बेल्ट-वन रोड (ओबोर) परियोजना में भी नेपाल शामिल है और इसके लिए दोनो के बीच समझौते भी हुए हैं। नेपाल इन दिनों आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। प्रचंड ने पहले कोशिश की थी कि चीन के साथ रिश्ते मजबूत किया जाए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। अंतत: उन्हें भारत समर्थक नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन करना पड़ा। ऐसे में अब नेपाल की राजनीति में वाम दलों के साथ आने की संभावना बेहद ही कम है। ऐसे में प्रचंड को पता है कि नेपाल में भारत की अच्छी छवि है। 

अब ड्रैगन को नाराज कर मोदी से दोस्ती

भारत में प्रचंड की छवि चीन के प्रति झुकाव रखने वाले नेता की बनी थी। प्रधानमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल के दौरान नेपाल के भारत से रिश्ते अच्छे नहीं थे। पीएम बनने के 5 महीने बाद इस बार उनकी ऐसी कोई छवि न बने, इसलिए भारत आने से पहले उन्होंने चीन के बेआओ फोरम फॉर एशिया का निमंत्रण ठुकरा दिया था। पीएम मोदी से मुलाकात के दौरान प्रचंड के एजेंडे में अपने दो नए इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए भारत से मदद की मांग भी शामिल है। 

हिंदू राज्य बनाने की मांग और योगी से नजदीकी

नेपाल में हिंदू राज्य बनाने की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है। नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र लगातार देश में दौरा कर रहे हैं और जनता से राजनेताओं की क्षमता को लेकर सवाल कर रहे हैं। नेपाल में हाल ही में चुनाव में एक राजनीतिक दल ने तो खुलकर राजशाही का समर्थन किया था। नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने कई बार भारत का दौरा करके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ समेत कई नेताओं से मुलाकात भी की है। दरअसल, गोरक्षा पीठ और नेपाल की राजशाही में बहुत पुराने संबंध रहे हैं। गोरखनाथ मंदिर में नेपाल के राजा की ही पहली खिचड़ी चढ़ती है। नेपाल का शाही परिवार बाबा गोरखनाथ के भक्त रहे हैं। यही वजह है कि पशुपतिनाथ मंदिर के देश नेपाल के पीएम प्रचंड अब भारत और शिव के साथ रिश्‍ते को मजबूत करने में जुट गए हैं।

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