77 दिन बाद आलोक वर्मा ने एक बार फिर संभाला CBI निदेशक का कार्यभार
वर्मा और उप विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ एजेंसी ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था और दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने वाला अक्टूबर का यह आदेश एजेंसी के इतिहास में सरकार के हस्तक्षेप का यह अपनी तरह का पहला मामला था।
नयी दिल्ली। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने 77 दिन बाद अपना कार्यभार बुधवार को संभाल लिया। केन्द्र सरकार ने 23 अक्टूबर 2018 को देर रात आदेश जारी कर वर्मा के अधिकार वापस लेकर उन्हें जबरन छुट्टी पर भेज दिया था।इस कदम की व्यापक स्तर पर आलोचना हुई थी। हालांकि इस आदेश को मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया, जिसके बाद आज वर्मा ने कार्यभार संभाल लिया। वर्मा और उप विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ एजेंसी ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था और दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने वाला अक्टूबर का यह आदेश एजेंसी के इतिहास में सरकार के हस्तक्षेप का यह अपनी तरह का पहला मामला था।
Delhi: CBI Chief #AlokVerma arrives at CBI headquarters to take charge. pic.twitter.com/dmXRE3ZMag
— ANI (@ANI) January 9, 2019
सरकार ने न्यायालय में यह कहकर अपने निर्णय को सही ठहराने की कोशिश की कि एजेंसी के दो वरिष्ठतम अधिकारी एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे ऐसे लड़ाई झगड़े में यह कदम उठाना आवश्यक था लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी यह दलील खारिज कर दी। सरकार ने तत्कालीन संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को वर्मा का कार्यभार सौंप दिया था, जिन्हें बाद उन्हें एजेंसी का अतिरिक्त निदेशक बना दिया गया था।वर्मा ने इस कदम को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजने के केन्द्र के निर्णय को रद्द कर दिया, हालांकि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर सीवीसी की जांच पूरी होने तक उन पर (वर्मा) कोई भी महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने पर रोक लगाई है।महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों की कोई स्पष्ट व्याख्या ना होने से इस बात पर असमंजस है कि वर्मा की शक्तियां कहां तक सीमित होंगी।
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उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि वर्मा के खिलाफ आगे कोई भी निर्णय सीबीआई निदेशक का चयन एवं नियुक्ति करने वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा लिया जाएगा।आलोक कुमार वर्मा का केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक के रूप में दो वर्ष का कार्यकाल 31 जनवरी को पूरा हो रहा है। शीर्ष अदालत ने फैसले में विनीत नारायण प्रकरण में दी गई अपनी व्यवस्था और इसके बाद कानून में किए गए संशोधन का जिक्र करते हुए कहा कि विधायिका की मंशा सीबीआई निदेशक के कार्यालय को हर तरह के बाहरी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त रखने और सीबीआई की संस्था के रूप में निष्ठा और निष्पक्षता बरकरार रखने की रही है। बाद में लोकपाल अधिनियम के जरिए सीबीआई निदेशक के चयन का काम ‘चयन समिति’ को सौंप दिया गया था।
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