झूठ की चाश्नी में डूबी BBC की कुछ खबरों पर एक नजर

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अभिनय आकाश । Aug 12 2019 3:49PM

पत्रकारिता में खबरों और स्रोत्र को कई बार क्रांस चेक करना एक पत्रकार का सबसे बड़ा कर्तव्य है। झूठी और भ्रामक खबरें एक ऐसी बीमारी है जिसका ईलाज माफी मांगने भर से दूर नहीं होने वाला। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने भी कहा था कि पत्रकार को ऐसी खबर करने से परहेज करना चाहिए जिससे कि बाद में उसे अपनी बात से माफी मांगनी पड़े। बहरहाल, एक प्रेरित और भ्रामिक रिपोर्ट सिर्फ पेशे को ही कलंकित नहीं करती बल्कि वास्तविकता से भी लोगों को दूर रखती है।

अमेरिकी लेखक और व्यंगकार मार्क ट्वेन का बहुत मशहूर कोट है- ‘A lie can travel half way around the world while the truth is putting on its shoes’ यानि झूठ की रफ्तार बहुत तेज होती है और जब तक सच अपने जूते पहन रहा होता है तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है। सोशल मीडिया और वेब की दुनिया पर भी यही लागू होता है। इन प्लेटफार्म पर सच पैदल चलता है और झूठ पंख लगा कर उड़ जाता है। केंद्र सरकार के जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35A हटाए जाने को लेकर देश भर में खुशी की लहर छाई है और वहीं सोशल मीडिया पर इसे लेकर कुछ जगहों पर विरोध भी चल रहा है। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35ए को हटाने के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट भी साफ नजर आ रही है। 

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पाकिस्तान ने पीएम मोदी के इस फैसले पर नाराजगी जताई है। जिसके बाद दोनों देशों के बीच आपसी तनाव बढ़ गया है। लेकिन इन सब से इतर बीबीसी ने एक वीडियो रिपोर्ट दिखाई जिसमें दिखाया गया कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद श्रीनगर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों को बल प्रयोग करना पड़ा और बाद में हिंसा भी हुई। हालांकि सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर काफी सवाल उठे। काफी लोगों ने इस वीडियो में दी गई जानकारी पर संदेह भी जताया दूसरी तरफ सरकार ने भी कहा कि कश्मीर में इक्का-दुक्का प्रदर्शन के अलावा कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ है। 

ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन यानी बीबीसी ट्वीटर पर भी #BBCfakenews के नाम से ट्रेंड कर रहा है और 10 हजार से ज्यादा लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं। लेकिन आज हम आपको तथ्यों को आधार बनाकर वर्तमान से थोड़ा फ्लैश बैक में लिए चलेंगे। जहां आपको ज्ञात होगा कि बीबीसी का विवादों से पुराना संबंध रहा है और कई बारी अपनी झूठी और प्रचारित खबरों के लिए उसे सार्वजनिक माफी भी मांगनी पड़ी है। 

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इथियोपिया सहायता धन के बारे में रिपोर्टों के लिए बीबीसी ने माफी मांगी

साल 2010 में बीबीसी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की कि इथियोपिया में अकाल से लड़ने के लिए लाइव एड द्वारा जुटाई गई चैरिटी में लाखों पाउंड का पैसा हथियारों पर खर्च किया गया था। इस रिपोर्ट में बताया गया कि सहायता राशि को तुग्रेयानन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के विद्रोही गुट के हथियारों की खरीद पर खर्च किया गया। इस रिपोर्ट के बाद लाइव एड और बैंड एड ट्रस्ट के संस्थापक बॉब गोडोल्फ ने यूनाइटेड किंगडम के संचार कार्यालय से शिकायत की। बीबीसी ने शुरू में घोषणा की कि वह अपनी रिपोर्ट के साथ खड़ा था और उसने अपने रुख का समर्थन करने के लिए सबूत होने का दावा किया। लेकिन नवंबर 2010 में बीबीसी द्वारा स्वीकार किया कि उसके पास अपने दावों के कोई सबूत नहीं है। नतीजतन उन्होंने न केवल अपनी रिपोर्ट के लिए माफी मांगी बल्कि गोडोल्फ से भी व्यक्तिगत तौर पर क्षमा मांगी क्योंकि रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि गेडोल्फ ने सहायता राशि के बारे में प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया था।

 

 

कोर्ट ने दिया था कुत्ते की मौत का फरमान

18 जून 2011 को बीबीसी ने जेरूसलम कोर्ट के बारे में एक कहानी प्रकाशित की जिसमें एक कुत्ते को मौत के घाट उतारने का आदेश दिया गया था। उन्होंने कहा कि कुत्ते ने जेरूसलम अदालत में प्रवेश किया और 20 साल पहले एक मृतक धर्मनिरपेक्ष वकील पर पारित एक शाप के बारे में न्यायाधीश को याद दिलाया। बाद में, अदालत के आदेशों के अनुसार कुत्ते को मार दिया गया। जेरूसलम अदालत ने उस कहानी का खंडन किया जो रिपोर्ट की गई थी। 22 जून 2011 बीबीसी ने कहानी को अप्रकाशित किया और एक ब्लॉग के रूप में माफी जारी की।

 

 

बैंगलोर से नकली बाल श्रम फुटेज किया था जारी 

साल 2011 में बीबीसी के 'ऑन द रैक' ने फैशन की दिग्गज कंपनी प्रिमार्क पर खोजी रिपोर्ट प्रसारित की। रिपोर्ट का विषय यह था कि क्या प्रिमार्क अनैतिक प्रथाओं का सहारा लिए बिना सस्ते कपड़ों का निर्माण कर सकता है? इसे 6 महीने की खोजी पत्रकारिता और एक अंडरकवर ऑपरेशन बताया गया। इस रिपोर्ट में कार्यशाला में सिलाई करने वाले 3 बच्चों के फुटेज को शामिल किया था। हालांकि, व्यापक शिकायतों के बाद, बीबीसी ने स्वीकार किया कि बाल श्रम फुटेज वास्तविक नहीं था।

 

नाइजीरिया का नरभक्षी रेस्तरां

साल 2015 में बीबीसी ने मानव मांस परोसने वाले नाइजीरिया के एक होटल के बारे में एक नकली कहानी साझा की थी। वास्तव में मानव मांस परोसे जाने के कोई तथ्य नहीं मिले। बाद में बीबीसी ने एक माफी जारी की, “नाइजीरियाई रेस्तरां के बारे में कहानी जो हमने यहां प्रकाशित की है, एक गलती है और हम माफी मांगते हैं।”

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पाकिस्तानी राजनीतिक दल भारत द्वारा वित्त पोषित

जून 2015 की एक रिपोर्ट में बीबीसी ने एक पाकिस्तानी स्रोत के हवाले से दावा किया कि भारत पाकिस्तान में एमक्यूएम का वित्तपोषण कर रहा है। एक गुमनाम पाकिस्तानी स्रोत के आधार पर पर पूरी तरह भरोसा करके निष्कर्ष पर पहुंचने को लेकर इस रिपोर्ट की सभी वर्गों द्वारा आलोचना की गई थी। भारत सरकार ने इन दावों का स्पष्ट रूप से खंडन किया। 

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भ्रामक पैक्समैन संपादन

2004 में बीबीसी ने स्वीकार किया कि जेरेमी पैक्समैन द्वारा आयोजित एक साक्षात्कार का उनका संपादन भ्रामक था और अतिथि को खराब रोशनी में दिखाया। बता दें कि साक्षात्कार पुलिस प्रमुख डेविड वेस्टवुड का था और भ्रामक संपादन से ऐसा लग रहा था कि कठिन सवालों पर पुलिस प्रमुख घबरा गए थे।

वर्तमान में निर्देशक  शेखर कपूर ने बीबीसी द्वारा कश्मीर पर जारी किए वीडियो पर गुस्सा जाहिर किया है। शेखर कपूर ने ट्विटर पर लिखा- 'जितनी बार भी आप कश्मीर को भारत अधिकृत कश्मीर कहते हैं, मैं काफी हैरान होता हूं कि आप उत्तरी आयरलैंड को ब्रिटिश अधिकृत आयरलैंड कहने से क्यों कतराते हैं ?'

पत्रकारिता में खबरों और स्रोत्र को कई बार क्रांस चेक करना एक पत्रकार का सबसे बड़ा कर्तव्य है। झूठी और भ्रामक खबरें एक ऐसी बीमारी है जिसका ईलाज माफी मांगने भर से दूर नहीं होने वाला। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने भी कहा था कि पत्रकार को ऐसी खबर करने से परहेज करना चाहिए जिससे कि बाद में उसे अपनी बात से माफी मांगनी पड़े। बहरहाल, एक प्रेरित और भ्रामिक रिपोर्ट सिर्फ पेशे को ही कलंकित नहीं करती बल्कि वास्तविकता से भी लोगों को दूर रखती है। 

 

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