Aung San Suu Kyi Birthday: आंग सान सू से नाराज हैं लोकतंत्र के पैरोकार, आज मना रहीं 80वां जन्मदिन

बरसों से म्यांमार के लोगों के लिए संघर्ष कर रही आंग सान सू आज यानी की 19 जून को अपना 80वां जन्मदिन मना रही हैं। वह कई सालों से जेल में हैं और म्यांमार के सैन्य शासन ने उनको आजावीन जेल में रखने की व्यवस्था की है।
बरसों से म्यांमार के लोगों के लिए संघर्ष कर रही आंग सान सू आज यानी की 19 जून को अपना 80वां जन्मदिन मना रही हैं। वह कई सालों से जेल में हैं और म्यांमार के सैन्य शासन ने उनको आजावीन जेल में रखने की व्यवस्था की है। आंग सान सू पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। हालांकि उनके संघर्ष के लिए आंग सान सू को 32 साल पहले नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। लेकिन इसके बाद भी लोकतंत्र के पैरोकार पश्चिमी देश उनसे नाराज हैं। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर आंग सान सू के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
रंगून में 19 जून 1945 को आंग सान सू का जन्म हुआ था। इनके पिता आंग सान ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी। वहीं अंग्रेजों के खिलाफ सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जापानियों से हाथ मिलाया था। साल 1947 में वह अंग्रेजों से बर्मा की आजादी के लिए बात कर रहे थे, इसी साल विरोधियों ने उनकी हत्या कर दी थी। आंग सान सू को उनकी मां ने पाला, जोकि बाद में बर्मा की एक फेमस राजनैतिक शख्सियत बन गई थीं।
जब आंग सान सू की मां साल 1960 में भारत और नेपाला में बर्मा की राजदूत थी, तब सू ने नई दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेजसे साल 1964 में राजनीति विज्ञान की स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह ऑक्सफोर्ड से राजनीति शास्त्र, दर्शन शास्त्र और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। उन्होंने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में तीन साल काम किया।
नोबेल शांति पुरस्कार
बता दें कि साल 1991 में आंग सान सू की को लोकतंत्र संघर्ष के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। हालांकि इस समय वह नजरबंद थीं और सदी के पहले दशक के उत्तरार्द्ध में आंग सान सू की रिहाई के लिए उनको दुनिया भर से समर्थन मिला। साल 2008 में वह अमेरिका का कांग्रेशनल गोल्ड मेडल पाने वाली पहली व्यक्ति बनीं, जो जेल में थीं। वहीं पड़ोदी देशों का भी म्यांमार पर भारी दबाव रहा।
2010 में रिहाई
साल 2010 में म्यांमार में आम चुनाव के 6 दिन बाद उनको नजरबंदी से छोड़ दिया गया। इसके बाद साल 2012 में उन्होंने यूरोपीय दौरे के दौरान अपना नोबेल पुरस्कार हासिल किया। इसी साल वह म्यांमार में चुनाव जीता और विरोधी दल की नेता बनी। वहीं साल 2015 के आम चुनाव में उनकी पार्टी ने जीत हासिल की। हालांकि संवैधानिक रूप पर उनको राष्ट्रपति बनने से रोक दिया गया। लेकिन उनकी पार्टी फिर जीती और सरकार बनाई। इस दौरान वह विदेश मंत्री बने।
सरकार में आने के बाद आंन सान सू की ने एक आयोग बनाया। जहां पर रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यों पर अत्याचार के लिए एक बदनाम इलाका था। वहीं शान और काचिन राज्य में विवाद सुलझाने में उनकी सरकार नाकाम रही। साल 2017 में सरकारी बलों के रोहिंग्या अत्याचारों को नरसंहार का दर्जा दिया जाने लगा। लेकिन आंग सान सू ने इस बात को खारिज कर दिया।
जिसके बाद दुनिया भर में उनके खिलाफ विरोध होना शुरू हो गया। आंग सान सू को दिए गए कुछ पुरस्कार भी वापस ले लिए गए। साल 2020 में उनकी पार्टी ने फिर वापसी की, लेकिन 2021 में सेना ने चुनाव फर्जी घोषित कर दिए। जिसके बाद आंग सान सू को हिरासत में ले लिया गया और उन पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाया गया। दिसंबर 22 तक आंग सान सू के खिलाफ अलग-अलग मामलों में 32 साल की सजा सुनाई गई है।
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