कोरोना वैक्सीन ट्रायल के नाम पर फर्जीवाड़े के आरोप, भोपाल के पीपुल्स अस्पताल में हुआ वैक्सीन ट्रायल

Allegations of forgery
दिनेश शुक्ल । Jan 6 2021 12:42AM

पीपुल्स मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अनिल दीक्षित ने बताया कि वैक्सीन ट्रायल में शामिल लोगों को आधे घंटे समझाया जाता है। उनकी सहमति मिलने के बाद उनसे साइन लिए जाते हैं। इसमें सभी तरह की जानकारी उन्हें दी जाती हैं। उनकी मेडिकल जांच की जाती है। टीका लगने के बाद होने वाली बीमारियों के बारे में भी बताते हैं।

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना वैक्सीन ट्रायल में फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। शिकायत करने वालों का कहना है कि भोपाल के पीपुल्स मेडीकल कालेज अस्पताल ने कोरोना टीके के नाम पर लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया गया। यही नहीं वैक्सीन लगाने के बाद लोगों को 750 रुपये देकर उनके घर भेज दिया गया। वही  कई लोगों के बीमार होने के बाद उनसे पुराने कागजात भी अस्पताल ने वापस ले लिये। आरोप है कि झूठ बोलकर 600 से अधिक लोगों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल किया गया। बाद में कुछ लोग बीमार हो गए तो उनकी खैर खबर तक नहीं ली गई। 

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सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा का आरोप है कि विदिशा रोड स्थित शंकर नगर के हरिसिंह घर में अकेले कमाने वाले हैं। हरिसिंह ने बताया है कि 7 दिसम्बर को उन्हें पीपुल्स अस्पताल ले जाया गया। उन्हें बताया कि उनकी कुछ जांच होगी और 750 रुपये भी मिलेंगे, उसके बाद एक टीका लगेगा। उन्होंने एक कागज पर नाम लिखवाया और फिर टीका लगा दिया। हरिसिंह का कहना है कि उन्होंने कहा था कि कोई परेशानी हो तो यहां आकर बताना। मैंने उन्हें बताया था कि पहले टाइफाइड था। उन्होंने कहा कि कुछ नहीं होगा। दूसरी बार गया तो मैंने कहा कि पीलिया हो गया है। उन्होंने एक्स-रे करवाने को कहा। इसके लिए पैसे भी लिए और दूसरी जांच कराने को कहा। दूसरी जांच के लिए भी 450 रुपए मांगे। किसी ने कुछ नहीं पूछा और न ही देखा। उसके बाद उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया। मैं मायूस होकर घर आ गया। अब पता नहीं क्या होगा।

 

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वहीं, इस बारे में पीपुल्स मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अनिल दीक्षित ने बताया कि वैक्सीन ट्रायल में शामिल लोगों को आधे घंटे समझाया जाता है। उनकी सहमति मिलने के बाद उनसे साइन लिए जाते हैं। इसमें सभी तरह की जानकारी उन्हें दी जाती हैं। उनकी मेडिकल जांच की जाती है। टीका लगने के बाद होने वाली बीमारियों के बारे में भी बताते हैं। फिट होने पर ही उन्हें ट्रायल में शामिल किया जाता है। जहां तक अस्पताल के पास की बस्तियों में से लोगों को लेने की बात है, तो तीन किमी के दायरे को प्राथमिकता दी गई है। इसलिए यहां के लोग ज्यादा संख्या में है। जो भी आरोप लगा रहे हैं, वो बहकावे में ऐसा कह रहे होंगे। फिर भी हम पूरे मामले को दिखवाते हैं।

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