आंध्र प्रदेश: राजधानी अमरावती मुद्दे पर जगनमोहन रेड्डी सरकार असमंजस में फंसी

Jaganmohan Reddy

उच्च न्यायालय एवं वरिष्ठ नौकरशाहों के वास्ते आधे-अधूरे बने बंगलों की बुरी स्थिति है, विशाल राज्य सचिवालय स्थल अब जलाशय नजर आ रहा है, पिछली सरकार ने अमरावती विकास पर 8,445 करोड़ रुपये खर्च किये थे, जिसमें 5674 करोड़ रुपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किये गये थे।

अमरावती (आंध्र प्रदेश),आंध्र प्रदेश की वाई एस जगनमोहन रेड्डी सरकार ‘तीन राजधानियों’ के विषय पर सबकुछ सामान्य दिखाने का प्रयास कर रही है, जबकि उसे पूरी तरह पता है कि वह कानूनी रूप से कमजोर आधार पर खड़ी है। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने तीन मार्च को अपने फैसले में कहा था कि राज्य विधानमंडल राजधानी को स्थानांतरण करने या उसे दो अथवा तीन हिस्सों में बांटने के वास्ते कानून बनाने में ‘सक्षम नहीं’ है। इस फैसले के बाद राज्य सरकार वाकई न तो आगे बढ़ने, न ही पीछे हटने की स्थिति में है। हालांकि सरकार अब भी जोर-शोर से कह रही है कि वह अपनी ‘विकेंद्रीकरण’ योजना पर ‘किसी न किसी तरह’ आगे बढ़ेगी तथा राज्य के लिए कई राजधानियां स्थापित करेगी। किसी भी कानूनी अड़चन से बचने के लिए सरकार अब दावा कर रही है कि वह राजधानी ‘अन्यत्र कहीं नहीं’ ले जा रही है, बल्कि वह ‘‘प्रशासन का बस विकेंद्रीकरण’ कर रही है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्तारूढ़ वाई एस आर कांग्रेस ‘तीन राजधानियों’ को एक राजनीतिक मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है और पहले कदम के तहत वह सोमवार से शुरू हो रहे विधानमंडल के बजट सत्र में उस पर बहस करवाने जा रही है। राज्य सरकार के सामने अब वाकई बस दो विकल्प हैं: पहला, उच्च न्यायालय के फैसले को लागू करे और अमरावती को राज्य की राजधानी के तौर पर विकसित करे या फिर उच्चततम न्यायलय में इस फैसले के विरुद्ध अपील दायर करे, लेकिन सरकार उच्चतम न्यायालय जाने के बारे में निर्णय नहीं ले पा रही है। दूसरी तरफ, अमरावती में छह माह की निर्धारित समय सीमा के अंदर विकास गतिविधियों को पूरा करना करीब-करीब असंभव प्रतीत होता है, क्योंकि सरकार के पास जरूरी धनराशि समेत आवश्यक संसाधनों का अभाव है। एक शीर्ष नौकरशाह ने कहा, ‘‘अन्य संभावित विकल्प है- उच्च न्यायालय में ही याचिका दायर करना और उसके आदेशों के अनुपालन के लिए और समय मांगना है। किसी न किसी तरह आपको कुछ राहत के लिए न्याय का दरवाजा एक बार फिर खटखटाना ही होगा, अन्यथा (परिणाम) झेलिए।’’

इस प्रकार जगनमोहन प्रशासन के लिए अमरावती मुद्दा ‘एक तरफ कुंआ और दूसरी तरफ खाई’ जैसा हो गया है। हालांकि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बड़े-बड़े नेता बस इतना कह रहे है कि ‘आप देखेंगे कि हम कैसे और क्या हम करेंगे?’’ राज्य के निगम प्रशासन मंत्री बोत्स सत्यनारायण ने कहा, ‘‘ हम विकेंद्रीकरण के लिए कटिबद्ध हैं और ‘तीन राजधानियों’ की हमारी योजना में कोई बदलाव नहीं आया है।’’ सरकार के सलाहकार एवं मुख्यमंत्री के प्रवक्ता एस आर रेड्डी ने भी ऐसी ही बात की। उन्होंने कहा कि सरकार अगले कदम के बारे में कानूनी राय ले रही है। अधिकारियों के एक वर्ग का कहना है कि सत्ता संभालने के बाद सरकार पिछले तीन सालों में कुछ खास नहीं कर पायी। एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने तीन सालों में कुछ नहीं किया और अब अचानक हमसे तीन महीने सबकुछ करने को कहा जा रहा है। क्या कहा जाए।’’

एक अधिकारी ने कहा कि पिछली चंद्रबाबू नायडू सरकार द्वारा शुरू किये गये विकास कार्य धूल फांक रहे हैं, 2016 और 2019 के बीच बनायी गयी सड़कें अब नजर नहीं आ रही हैं, ऑल इंडिया सर्विस ऑफिसर्स टावर्स, लेजिसलेटर्स टॉवर्स और गैर-राजपत्रित कर्मचारी आवास टावर्स 70-80 फीसदी काम पूरी होने के बाद भी अधर में लटके हैं। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय एवं वरिष्ठ नौकरशाहों के वास्ते आधे-अधूरे बने बंगलों की बुरी स्थिति है, विशाल राज्य सचिवालय स्थल अब जलाशय नजर आ रहा है, पिछली सरकार ने अमरावती विकास पर 8,445 करोड़ रुपये खर्च किये थे, जिसमें 5674 करोड़ रुपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किये गये थे।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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