हिन्दू संगठनों का तर्क, अयोध्या प्रकरण संपत्ति विवाद है ना कि धार्मिक विवाद

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ के समक्ष मूल वादी गोपाल सिंह विशारद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने यह दलील दी।
नयी दिल्ली। हिन्दू धार्मिक संगठनों ने आज उच्चतम न्यायालय में कहा कि अयोध्या में राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद शुद्ध रूप से एक ‘ संपत्ति विवाद ’ है और इसे वृहद पीठ को भेजने के लिये राजनीतिक या धार्मिक संवेदनशीलता को आधार नहीं बनाया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ के समक्ष मूल वादी गोपाल सिंह विशारद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने यह दलील दी। विशारद 1950 में इस संबंध में दीवानी वाद दायर करने वाले पहले वादकारों में शामिल थे।
साल्वे ने कहा कि इस मामले को वृहद पीठ को सौंपने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि तीन सदस्यीय खंडपीठ पहले से ही इस पर विचार कर रही है। ।साल्वे ने कहा कि शीर्ष अदालत में प्रचलित और मौजूदा परंपरा के अनुसार किसी भी उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के आदेश के खिलाफ दायर अपील शीर्ष अदालत में दो न्यायाधीशों की पीठ की बजाय तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष ही निर्णय के लिये सूचीबद्ध होती हैं। राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के . पराशरण ने भी साल्वे की दलील का समर्थन किया और कहा कि इस मामले को सिर्फ तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा ही सुना जाना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर आज सुनवाई अधूरी रही। अब इस मामले में 15 मई को आगे सुनवाई होगी। ।प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस तीन सदस्यीय खंडपीठ के पास चार दीवानी वादों में उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले के खिलाफ 14 अपीलें विचारार्थ लंबित हैं। न्यायालय ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बांटने का आदेश दिया था।
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