बदरुद्दीन अजमल: इत्र का कारोबार, फूंक से चमत्कार, हर हाल में मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में रखना है जिनका एकमात्र फलसफां

Badruddin Ajmal
अभिनय आकाश । Feb 12 2022 6:34PM

बदरुद्दीन अजमल का जन्म 1950 को असम में हुआ था। उनके कामकाज की बात की जआए तो वे राजनेता के अलावा समाजसेवी, व्यापारी और धर्मशास्त्री भी हैं। धुबरी से लोकसभा सांसद अजमल का मुम्बई ले लेकर दुबई और सिंगापुर तक आर्थिक सामराज्य है।

एक मौलाना जिसने दारुल उलूम से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री ली, फिर बिजनेस की दुनिया में कदम रखा और देश में सबसे बड़े इत्र कारोबारियों में शुमार हो गए। विदेशों में अपना व्यवसाय फैलाया और जब सियासत की ओर कदम बढ़ाया तो असम से लेकर दिल्ली तक अपनी पहचान बनाई और देखते ही देखते बन गए असम की राजनीति का सबसे चर्चित चेहरा। कंधे पर असमिया गमछा, सिर पर टोपी और जुबान पर तल्खी। यही पहचान है एआईयूडीएफ चीफ बदरुद्दीन अजमल की। 

कौन हैं बदरुद्दीन अजमल

बदरुद्दीन अजमल का जन्म 1950 को असम में हुआ था। उनके कामकाज की बात की जआए तो वे राजनेता के अलावा समाजसेवी, व्यापारी और धर्मशास्त्री भी हैं। धुबरी से लोकसभा सांसद अजमल का मुम्बई ले लेकर दुबई और सिंगापुर तक आर्थिक सामराज्य है। मुसलमानो को रिझाने के लिए उनके तरकस में हर तीर है। अस्पताल ,अनाथालय, मदरसा चलाने के साथ ही वे वंशवादी सियासत भी चलाते हैं। बदरुद्दीन अजमल के सात बच्चे हैं। उनके दो बेटे विधायक हैं और भाई बरपेटा से सांसद रहे है। उन्हें बंग्लाभाषी मुस्लमानों के हिमायती के तौर पर देखा जाता है।  

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पानी में फूंक कर लोगों को ठीक करने का दावा

अजमल हकीमी पानी देते हैं (जिसमें वो फूंकते है) और उनके अनुयायी कहते हैं कि उससे बीमारी ठीक हो जाता है। अजमल से जब इस अंधविश्वास के बारे में पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि अल्लाह की फजल से हम उनकी मदद करते हैं। साफ है कि गरीबी से परेशान मुसलमानो पर उनकी जादुई पकड़ है। बदरुद्दीन अजमल के समर्थकों का मानना है कि अगर वो पानी में फूंक दें तो उस पानी को पीने से बीमारियां दूर हो जाती हैं। अजमल की रैलियों में उनके समर्थक पानी की बोतले लेकर आते हैं और अजमल उन्हें खुश करने के लिए बोतल में फूंक देते हैं। दिलचस्प बात ये है कि अजमल को इसमें कोई गलती भी नजर नहीं आती है। उल्टे वो इसे सही भी ठहराते हैं।

राजनीतिक सफर

2005 में बदरुद्दीन अजमल ने अपनी पार्टी बनाई थी और महज डेढ़ दशक में असम की राजनीति में अहम पहचान बना ली। साल 2006 में पहली बार चुनाव लड़ा और दस सीटों पर जीत हासिल की। साल 2011 में जब दूसरी बार चुनाव लड़ा तो सीटों की संख्या 18 पर पहुंच गई। पार्टी के गठन के वक्त इसका नाम एयूडीएफ यानी असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट था। लेकिन बाद में साल 2009 के लोकसभा चुनाव के वक्त मौलाना बदरुद्दीन ने पार्टी का विस्तार करते हुए इसे एआईयूडीएफ यानी ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट कर दिया। केंद्र की राजनीति में साल 2014 में बड़ा फेरबदल हुआ और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई। केंद्र में सरकार बनने के ठीक दो साल बाद 2016 में असम में चुनाव हुए। इससे पहले हिमंत बिस्व सरमा के कांग्रेस से बीजेपी में एंट्री जैसी बड़ी घटना भी असम की राजनीति में घटी। नतीजा 2016 के चुनाव में बीजेपी ने 60 सीटें जीत कर सरकार बनाई। जबकि कांग्रेस गिरकर 26 सीट पर आई तो वहीं एआईयूडीएफ को भी इस चुनाव में नुकसान हुआ। पार्टी 13 सीट पर ही जीत दर्ज कर पाई। हालांकि उसका वोट प्रतिशत पिछले बार के मुकाबले 13 फीसदी ही रहा। साल 2021 के विधानसभा चुनाव में एआईयूडीएफ ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की।

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