पशुपति पारस को किनारे कर चिराग पर BJP ने क्यों जताया भरोसा, 'मोदी के हनुमान' के जरिए तैयार हुआ बड़ा गेम प्लान

modi chirag
ANI
अंकित सिंह । Mar 19 2024 7:57PM

जब भाजपा ने एनडीए की बैठक बुलाई थी, तब मोदी ने जिस तरीके से चिराग पासवान को गले लगाया था उसके बाद से ही सभी को इस बात का अंदाजा होने लगा था कि कहीं ना कहीं भाजपा का स्नेह चिराग पासवान के लिए अभी भी बरकरार है। इसके बाद वह लगातार हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोकते रहे।

बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद राजनीतिक उठापटक के बीच चिराग पासवान का कद बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। बिहार में भाजपा 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि जदयू को 16 सीटें दी गई हैं। वहीं चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) के खाते में 5 सीटें गई है। यह कहीं ना कहीं चिराग पासवान के लिए बड़ी जीत मानी जा सकते हैं। चिराग के चाचा पशुपति पारस को गठबंधन में खाली हाथ रहना पड़ा। उन्हें एक भी सीट नहीं दी गई जिसके बाद उन्होंने मोदी कैबिनेट से अपना इस्तीफा भी दे दिया है। इसके बाद वह आगे की रणनीति के लिए पार्टी के नेताओं से चर्चा कर रहे हैं। हालांकि इस सीट बंटवारे से यह स्पष्ट हो गया कि कहीं ना कहीं भाजपा के लिए बिहार में चिराग पासवान ही लीड एक्टर है।

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ऐसे में सवाल यह है कि आखिर चिराग पासवान पर भाजपा ने क्यों भरोसा दिखाया? जब चिराग पासवान की पार्टी का विभाजन हुआ तब भाजपा ने पशुपति पारस को मंत्री क्यों बनाया? अब भाजपा पशुपति पारस को किनारे क्यों कर रही है? इन सवालों का जवाब ढूंढने से पहले हम यह बता दें कि 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच दरारें पैदा हो गई थी। 2019 के चुनाव में रामविलास पार्टी के 6 सांसद जीते थे। इनमें से पांच सांसद पशुपति पारस के साथ खड़े रहे। चिराग पासवान पूरी तरीके से अलग-अलग पड़ गए थे। चुकी सांसदों की संख्या पशुपति पारस के साथ थी इसलिए भाजपा ने उन्हें ही मंत्री बनाया। लेकिन जमीनी स्तर पर चिराग पासवान ने अपनी लड़ाई जारी रखी।  

संकट के समय में भी चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा ना होते हुए भी भाजपा के पक्ष में हमेशा खड़े रहे। फिर चिराग पासवान ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली जिसको अच्छा खासा समर्थन हासिल हुआ। इस यात्रा के जरिए चिराग ने यह बताने की कोशिश की कि वह ही अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीति का असली उत्तराधिकारी हैं। चिराग पासवान लगातार खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे। वह मोदी की तुलना भगवान राम से भी करते रहे। बीजेपी की किसी भी स्टैंड के साथ वह पूरी तरीके से मजबूती से खड़े रहे। 

जब भाजपा ने एनडीए की बैठक बुलाई थी, तब मोदी ने जिस तरीके से चिराग पासवान को गले लगाया था उसके बाद से ही सभी को इस बात का अंदाजा होने लगा था कि कहीं ना कहीं भाजपा का स्नेह चिराग पासवान के लिए अभी भी बरकरार है। इसके बाद वह लगातार हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोकते रहे। हाजीपुर रामविलास पासवान की कर्मभूमि रही है। ऐसे में 2019 में पशुपति पारस वहां से चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। हालांकि, 2024 में चिराग हर हाल में हाजीपुर सीट अपने पास रखना चाहते थे। भाजपा ने उनकी इस मांग को स्वीकार भी कर लिया। भाजपा को भी पता है कि रामविलास पासवान का जो कोर वोट है वह पशुपति पारस नहीं बल्कि चिराग पासवान के साथ है। पशुपति पारस की तुलना में चिराग पासवान जमीन पर मेहनत करते हैं। लोगों से मिलते जुलते हैं जिसकी वजह से भाजपा का उन पर भरोसा बना है। चिराग युवा भी हैं। 

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यह भी कहा जाता है कि वह चिराग पासवान ही थे जिन्होंने रामविलास पासवान को एनडीए के साथ गठबंधन के लिए मनाया था। खुद रामविलास पासवान ने एक इंटरव्यू में इसका खुलासा किया था। रामविलास पासवान ने कहा था कि चिराग ने राहुल गांधी को 10 बार फोन किया था सीट बंटवारे को लेकर लेकिन कोई रिस्पांस नहीं आया था। इसी के बाद हमने यूपीए छोड़ने का फैसला किया था। एनडीए के साथ जाने में चिराग की अहम भूमिका रही है। बिहार की 6 सीटें एससी-एसटी के लिए रिजर्व हैं। इनमें हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई, गोपालगंज, सासाराम और गया की सीटें शामिल हैं। हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई चिराग को दी गई है। चिराग पासवान के पास खासा वोट बैंक है। चिराग के जरिए दलितों को साधने में मदद मिलेगी। इससे अन्य सीटों पर भी भाजपा को फायदा होगा। 

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