गुजरात विधानसभा चुनाव: अल्पसंख्यक और दलित बहुल दानीलिम्डा सीट को कांग्रेस से छीनना चाहती है भाजपा

प्रदेश कांग्रेस के नेता मनीष दोशी ने बताया, ''शैलेश परमार निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध हैं, चाहे उनकी जाति, पंथ, धर्म या राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो। निर्वाचन क्षेत्र के लोग उनसे स्नेह करते हैं और उन्हें पसंद करते हैं। उन्होंने विधानसभा क्षेत्र के लिए बहुत कुछ किया है।''
अहमदाबाद (गुजरात)। गुजरात के अहमदाबाद शहर में अल्पसंख्यक और दलित बहुल दानीलिम्डा विधानसभा सीट पर नियंत्रण को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई चल रही है। करीब एक दशक पहले अस्तित्व में आई इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी कभी चुनाव नहीं जीती है। भाजपा को इस बार यह मिथक टूटने की उम्मीद है क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और आम आदमी पार्टी (आप) के भी यहां से प्रत्याशी उतारने के बाद चतुष्कोणीय मुकाबले में उसे कांग्रेस के विभाजित मतों पर काफी भरोसा है। अहमदाबाद जिले की 21 विधानसभा सीटों में से एक दानीलिम्डा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है और यहां दूसरे चरण में पांच दिसंबर को चुनाव होना है। यह सीट परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी और 2012 तथा 2017 में यहां हुए विधानसभा चुनावों में मुख्य विपक्षी दल यहां से जीतता रहा है। अहमदाबाद जिले की 21 सीटों में से 2017 में भाजपा ने 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि शेष छह सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था। दानीलिम्डा सीट पर लगभग 2,65,000 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें से लगभग 34 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदायों के हैं, जबकि 33 प्रतिशत दलित-अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के हैं। बाकी पटेल और क्षत्रिय समुदाय से हैं।गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के उपनेता शैलेश परमार 2012 से 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करके इस सीट पर जीत हासिल करते आ रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस के नेता मनीष दोशी ने बताया, “शैलेश परमार निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध हैं, चाहे उनकी जाति, पंथ, धर्म या राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो। निर्वाचन क्षेत्र के लोग उनसे स्नेह करते हैं और उन्हें पसंद करते हैं। उन्होंने विधानसभा क्षेत्र के लिए बहुत कुछ किया है।” स्थानीय कांग्रेस नेताओं के अनुसार, यहां से पार्टी की जीत की वजह एकमुश्त मिलने वाले अल्पसंख्यक वोट और दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा रहा है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप और असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम के आने से क्षेत्र का चुनावी गणित गड़बड़ा गया है। कांग्रेस को आशंका है कि आप उसके दलित मतों में सेंध लगा सकती है तो एआईएमआईएम अल्पसंख्यक मतों को विभाजित कर सकती है। निलंबित कांग्रेस नेता और पार्षद जमनाबेन वेगड़ा के निर्दलीय चुनाव लड़ने से चुनौती कठिन हो गई है।इस सीट को जीतने की कोशिश के तहत भाजपा यहां और आसपास के इलाकों में व्यापक चुनाव प्रचार कर रही है। इस सीट से भाजपा उम्मीदवार नरेशभाई व्यास ने बताया, “मौजूदा विधायक के खिलाफ काफी नाराजगी है। उन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया। उनकी हार पहले से तय है। भाजपा ने 2012 में इस सीट की स्थापना के बाद से कभी भी यहां जीत हासिल नहीं की है, लेकिन हम इस बार मिथक को तोड़ देंगे। यह शर्म की बात है कि आसपास के इलाकों में भाजपा की मजबूत उपस्थिति होने के बावजूद हम यह सीट नहीं जीत सके। यह हमारे लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है और हम जीतेंगे।”
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भाजपा नेताओं को एआईएमआईएम के आने से कांग्रेस के मत विभाजन की उम्मीद है। स्थानीय लोगों ने, हालांकि, अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं को प्रकट करने से इनकार कर दिया, लेकिन मौजूदा कांग्रेस विधायक के प्रदर्शन पर उनकी राय बंटी हुई थी। स्थानीय निवासी हबीब कहते हैं, “जब भी हमें जरूरत होगी शैलेश परमार हमारे लिए हैं। इस क्षेत्र में अगर पुलिस उत्पीड़न का कोई मुद्दा है तो वह हमारे लिए हैं।”वहीं एक अन्य स्थानीय निवासी दिनेश पटेल को लगता है कि आस पास के अन्य क्षेत्रों जैसे मणिनगर आदि के मुकाबले इस क्षेत्र का विकास कम हुआ है। एससी (आरक्षित) सीट होने के चलते एआईएमआईएम ने यहां से एससी उम्मीदवार कौशिकीबेन परमार को प्रत्याशी बनाया है जबकि आप सुशासन और इलाके की समस्याओं के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। दानीलिम्डा के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र पहले सरखेज निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा हुआ करते थे जो 2007 तक केंद्रीय मंत्री अमित शाह की विधानसभा सीट रही। 2012 में इस सीट को खत्म कर दिया गया। 2012 के परिसीमन के बाद दानीलिम्डा विधानसभा सीट बनी।
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