2022 की तैयारी में बसपा, ब्राह्मणों को साधने के लिए मायावती बना रहीं यह प्लान

Mayawati
अंकित सिंह । Jul 24 2020 8:32PM

फिलहाल सतीश मिश्रा पार्टी में ही है और सतीश मिश्रा का दर्जा भी कम नहीं किया गया है। ऐसे में बसपा इस रणनीति पर चलती है तो शायद उसे थोड़ी बहुत फायदे की उम्मीद रह सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए बसपा ने भाईचारा कमेटी का गठन कर लिया है।

कानपुर के विकास दुबे प्रकरण के बाद योगी सरकार पर ब्राह्मण उत्पीड़न के आरोप लग रहे है। सरकार पर आरोप लग रहे है कि एक विकास दुबे के कारण कई ब्राह्मणों का उत्पीड़न किया जा रहा है। इसके बाद से यूपी सरकार के खिलाफ ब्राह्मणों को गोलबंद करने की कोशिश की जा रही है। इसको लेकर बीएसपी यानी कि बहुजन समाज पार्टी काफी सक्रिय हो गई है। मायावती सरकार को आगाह कर रही है कि ब्राह्मणों का उत्पीड़न उन्हें भारी पड़ सकता है। बसपा फिलहाल ब्राह्मणों को बैसाखी बनाकर 2022 में सत्ता वापसी की रणनीति तैयार कर रही है। बीएसपी के थिंक टैंक का भी मानना है कि विकास दुबे प्रकरण के बाद ब्राह्मणों में योगी सरकार को लेकर नाराजगी है। ऐसे में बीएसपी इस मौके को ब्राह्मणों को गोलबंद करने में भुना सकती है।

दरअसल बीएसपी यही चाहती है कि जिस तरीके से उसने 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों के समर्थन से सत्ता हासिल की थी ठीक उसी तरीके की स्थिति 2022 में भी पैदा की जाए। इसके लिए सबसे बड़ा हथियार विकास दुबे मामले को ब्राह्मणों के खिलाफ बताना है। बसपा खुलकर तो विकास दुबे के एनकाउंटर पर कुछ नहीं कह रही लेकिन उसके साथियों और उनके घर वालों के साथ जिस तरीके से व्यवहार हुए उसको लेकर बीएसपी योगी सरकार को आगाह कर रही है। 2007 विधानसभा चुनाव के दौरान बीएसपी ने सतीश मिश्रा को आगे कर ब्राह्मणों को साधने की एक सफल रणनीति बनाई थी। बीएसपी के 41 ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। हालांकि 2007 के मुकाबले 2022 का चुनाव बसपा के लिए अलग है।

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इसका कारण यह भी है कि ना ही बसपा पहले जैसी रही और ना ही अब उसके लिए पहले इतना मुकाबला आसान रहा। 2007 में बसपा के मुकाबले भाजपा और कांग्रेस बेहद कमजोर थी। बसपा का सीधा सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी से हुआ करता था। लेकिन 2022 में भाजपा तो बसपा के खिलाफ रहेगी। इसके अलावा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को अपनी जोर लगाएंगी। इतना ही नहीं 2007 में बसपा के साथ जो ब्राह्मण नेता थे वह फिलहाल या तो दूसरे दल में जा चुके हैं या फिर राजनीति से अलग हो गए हैं। खास बात यह है कि ऐसे नेता हैं जिन्होंने बसपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत बनाया था। फिलहाल सतीश मिश्रा पार्टी में ही है और सतीश मिश्रा का दर्जा भी कम नहीं किया गया है। ऐसे में बसपा इस रणनीति पर चलती है तो शायद उसे थोड़ी बहुत फायदे की उम्मीद रह सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए बसपा ने भाईचारा कमेटी का गठन कर लिया है।

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एक बात और है कि जो लोग गोरखपुर की राजनीति समझते हैं उनके लिए ब्राह्मणों को योगी सरकार के खिलाफ गोलबंद करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। इसका कारण यह है कि गोरखपुर में योगी का सीधा सीधा मुकाबला ब्राह्मण नेताओं से ही हुआ करता था। यह माना जाता है कि गोरखपुर के ज्यादातर ब्राम्हण योगी के खिलाफ ही रहते हैं। हरिशंकर तिवारी और शिव प्रताप शुक्ला जैसे नेताओं से योगी की अदावत तो बहुत पुरानी रही है। ऐसे में देखना होगा कि योगी की कमजोरी को बसपा किस तरीके से भुनाने में कामयाब हो पाती है।

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