बड़े पैमाने पर आयोजित होते महापंचायतों का क्या है संदेश, राजनीति पर कितना पड़ेगा प्रभाव?

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अभिनय आकाश । Feb 13 2021 12:54PM

दीर्घकालिक रूप से यह आवश्यक नहीं है कि किसान महापंचायतों की विशाल सभा राजनीतिक पार्टी के लिए वोट बैंक में बदल जाएगी। लेकिन फिलहाल तो इस तरह के घटनाक्रम ने हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के नेताओं की मुश्किलें बढ़ाने का काम जरूर किया है।

लुधियाना के जगराओं में पंजाब के पहले किसान महापंचायत में भारी संख्या में किसान एकत्रित हुए। पिछले कुछ दिनों में हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आयोजित महापंचायतों में भी कुछ इसी कदर की भीड़ नजर आई थी। इन पंचायतों में उपस्थित लोगों की भीड़ तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बढ़ते समर्थन कि ओर इंगित करती है। 

क्या है किसान महापंचायतों का संदेश?

इन आयोजनों में उपस्थिति से इस बात को बल मिलता है कि कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन ने उन राज्यों के सामाजिक और साथ ही राजनीतिक परिदृश्य में भी सेंधमारी की है जहां ये आयोजित हो रहे हैं। हरियाणा के एक राजनीतिक पर्यवेक्षक के अनुसार सभी समुदायों द्वारा के इस तरह की हलचल में शामिल होने से ऐसा प्रतीत होने लगा है कि किसान पंचायतें लंबे आंदोलन के लिए नींव को मजबूत करने का काम कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह से इन पंचायतों की ओर रूख कर रहे हैं, आने वाले दिनों में किसान आंदोलन में भागीदारी बढ़ने की संभावना है। ये विपक्ष द्वारा दिए जा रहे नैरेटिव की कृषि कानूनों के अमल  में आने के  बाद काॅपोरेट किसान की जमीन हड़प लेंगे को इसके विरोध को और तीव्र करने का काम कर रहे हैं। 

चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर एम राजीवलोचन ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि यह महसूस करना कि किसान के साथ कुछ अन्याय हो रहा है, आंदोलन में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी के पीछे का मुख्य कारण है। कभी-कभी कुछ मुद्दे लोगों के दिल को बहुत तेज़ी से छूते हैं, भले ही उनके पास कोई तर्क न हो। आंदोलन के नेताओं ने एक छवि पेश की है जिसके तहत जो खेती से जुड़े नहीं हैं, उन्हें लगता है कि किसानों के साथ अन्याय हो रहा है और हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए। इस परिदृश्य में, बड़ी संख्या में लोग जो खेती से जुड़े हुए भी नहीं हैं, इस आंदोलन का हिस्सा बन गए हैं। राजीवलोचन का कहना है कि हर कोई महसूस करता है कि वे न्याय के लिए लड़ रहे हैं।

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किसान महापंचायतों की प्रासंगिकता क्या है?

किसान महापंचायतें किसान समुदाय के बीच चल रहे आंदोलन और समाज के अन्य वर्गों से मिल रहे समर्थन को लेकर चल रहे आंदोलन के लिए अचानक जरिया बन गई हैं। पड़ोसी क्षेत्रों के किसानों के लिए इन आयोजनों में बड़ी संख्या में इकट्ठा होना आसान है क्योंकि इसके लिए दिल्ली सीमाओं की तुलना में कम समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है। ऐसे वक्त में बड़ी सभाओं का महत्व और अधिक हो जाता है जब हरियाणा में भाजपा-जेजेपी के सत्ताधारी नेता राज्य में सार्वजनिक बैठकें नहीं कर पाते हैं। पड़ोसी राज्य पंजाब में भी भाजपा नेताओं को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह सामान्य मानव प्रवृत्ति है जहां लोग एक बड़े और नैतिक समूह का हिस्सा बनना चाहते हैं। गौर हो कि 4-5 साल पहले बहुत से लोग खाप पंचायतों की आलोचना करते हुए आरोप लगाते थे कि वे जातिवाद फैला रहे हैं। एक कारण के लिए लोग समय और धन का त्याग करने या पुलिस के लाठीचार्ज का सामना करने के लिए भी तैयार हैं। 

महापंचायतें राजनीति को प्रभावित कर सकती हैं?

दीर्घकालिक रूप से यह आवश्यक नहीं है कि किसान महापंचायतों की विशाल सभा राजनीतिक पार्टी के लिए वोट बैंक में बदल जाएगी। लेकिन फिलहाल तो इस तरह के घटनाक्रम ने हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के नेताओं की मुश्किलें बढ़ाने का काम जरूर किया है। भविष्य में भी अगर इस तरह महापंचायत बड़े पैमाने पर आयोजित होते हैं तो ये बीजेपी और उसके सहयोगी नेताओं के लिए अधिक समस्याएं पैदा कर सकती हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार लोगों ने भाजपा-जेजेपी नेताओं को सामाजिक कार्यों के लिए आमंत्रित किये जाने के भी खिलाफ हैं। कुछ लोगों ने किसानों के समर्थन में शादी के कार्ड पर लोगो और नारे भी छपवाने शुरू कर दिए हैं। 

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किसान पंचायतें किसानों का मनोबल कैसे बढ़ाती हैं?

इस तरह के आयोजनों से किसानों को अपनेपन का एहसास होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि बड़ी संख्या में अन्य लोग भी इस संघर्ष में शामिल हैं। इस तरह के आयोजनों में भाग लेने के बाद किसान साथी ग्रामीणों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं। संभवतः, इसलिए एक के बाद एक किसान पंचायत को विभिन्न क्षेत्रों में भारी प्रतिक्रिया मिल रही है। हरियाणा अकादमी ऑफ हिस्ट्री एंड कल्चर के संस्थापक निदेशक केसी यादव कहते हैं कि किसान पंचायतें समाज के विभिन्न वर्गों को करीब लाती हैं। मुजफ्फरनगर दंगों को भुला दिया गया है क्योंकि अब उनके सामने एक बड़ा मुद्दा आ गया है। विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ वहां बैठ रहे हैं। 

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