कारगिल: कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी जिन्होंने गोलियां लगने के बाद भी पाकिस्तान को चटाई धूल

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अंकित सिंह । Jul 26 2021 11:37AM

इसी वजह से 1999 में मरणोपरांत कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

26 जुलाई को कारगिल की जंग के 22 साल पूरे हो रहे हैं। भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान के खिलाफ एक गंभीर और निर्णायक युद्ध जीता। भारत ने यह जंग ना सिर्फ जीती थी बल्कि उसने पाकिस्तान को धूल चटाई। इस युद्ध में, कई बहादुर युवा सैनिकों ने कारगिल युद्ध के मैदान में अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। लेकिन यह बात भी सच है कि भारत को अपने कई रणबांकुरों की जान गंवानी पड़ी। इन्हीं रणबांकुरों में से एक थे कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी। कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी भारतीय राजपुताना राइफल्स के सेना अधिकारी थे जिन्होंने कारगिल की जंग के दौरान अपने देश के लिए कुर्बानी दी। इसी वजह से 1999 में मरणोपरांत कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 

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केंगुरस का जन्म भारत के नागालैंड के कोहिमा जिले के नेरहेमा गाँव में हुआ था। उनके पिता नीसीली केंगुरुसी थे। उनके दो भाई थे जिनका नाम नग्से केंगुरुसी और एटॉली केंगुरुसी था। केंगुरुसी ने अपनी स्कूली शिक्षा जलूकी के सेंट जेवियर स्कूल से की जबकि स्नातक कोहिमा साइंस कॉलेज से। वह 1994 से 1997 तक कोहिमा के गवर्नमेंट हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में थे। बाद में उन्होंने 12 दिसंबर 1998 को भारतीय सेना को ज्वाइंन कर लिया। कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी को उनके परिवार और दोस्त प्यार से नींबू कहते थे। इसलिए उन्हें उनकी कमान के कुछ सैनिक निम्बू साहिब यानी की (लेमन सर) के नाम से बिलाया करते थे। 

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भारतीय राजपुताना राइफल्स के जवान कैप्टन नेइकझुको केंगुरूस को अपने दृढ़ संकल्प और कौशल के लिए कारगिल युद्ध के दौरान घातक पलटन बटालियन का मुख्य बनाया गया था। कैप्टन को अपनी पलटन के साथ ब्लैक रॉक पर रखी गई दुश्मन की मशीनगन पोस्ट को हासिल करने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन टाइगर हिल से पाकिस्तानी घुसपैठिए लगातार मशीनगन से फायरिंग कर रहे थे। ऐसे में पटलन का चढ़ाई करना बेहद मुश्किल होता जा रहा था लेकिन कैप्टन ने हार नहीं मानी और पलटन के साथ आगे बढ़ चट्टान को पार करने के बाद दुश्मन की तरफ से मोर्टार और आटोमेटिक गन फायरिंग होने लगी जिसके बाद पलटन के ज्यादातर सदस्य शहीद हो गये और कुछ घायल हो गये। पलटन के कप्तान केंगुरुसी को भी पेट में गोली लगी। लेकिन इसके बाद भी केंगुरुसी  लगातार आगे बढ़ते रहे। दुश्मन तक पहुंचने के लिए बर्फीली चट्टान से बनी दीवार को पार करना था जिसके लिए केंगुरुसी ने एक रस्सी जुटायी और चढ़ाई करने लगे। जूते फिसल रहे थे चढ़ाई मुश्किल थी और पेट में गोली लगी हुई थी वह चाहते तो वापस जाकर अपना इलाज करवा सकते थे लेकिन समय की मांग को देखते हुए कप्तान टुकड़ी के साथ आगे बढ़े... हालत इतने खराब थे लेकिन उसके बावजूद 16,000 फीट की ऊंचाई पर और -10 डिग्री सेल्सियस के कड़े तापमान में, कप्तान केंगुरुसी ने अपने जूते उतार दिए। उन्होंने नंगे पैर रस्सी की पकड़ बना कर आरपीजी रॉकेट लॉन्चर के साथ ऊपर की चढ़ाई की।

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बंकर के पास पहुंच कर उन्होंने फायरिंग की और बंकर को तबाह कर दिया। पाकिस्तान के सैनिक उनके बहुत नजदीक आ गये थे जिसका सामना उन्होंने अपने रायफल्स और चाकुओं से किया लेकिन वह तब तक लड़ते रहे जब तक उन्होंने बंकर को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर दिया। अंत में वह गोली लगने के बाद चट्टान से नीचे फिसल गये और शहीद हो गया बाकी साथियों ने मैदान को पाकिस्तानियों से साफ कर दिया और विजय प्राप्त की।

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