महाराष्ट्र में अपने पोस्टर बॉय के पर कतर रहा केंद्रीय नेतृत्व? पार्टी में कमजोर पड़ रहे फडणवीस, गडकरी हो रहे और मजबूत

Maharashtra
अभिनय आकाश । Nov 25 2021 7:33PM

पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के प्रभाव में कमी के नजरिये से आंक रहे हैं। तावड़े और बावनकुले को 2019 के विधानसभा चुनावों में टिकट तक नहीं दिया गया था। लेकिन उनकी नई नियुक्तियों के जरिये बीजेपी को जाति समीकरण साधने में मदद जरूर मिल सकती है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले तीन दिनों में महाराष्ट्र में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। जिसके तहत विनोद तावड़े को राष्ट्रीय महासचिव के पद पर पदोन्नत किया गया है। चंद्रशेखर बावनकुले को नागपुर से विधान परिषद चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार नामित किया गया है। बावनकुले ने सोमवार को अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया। राजनीतिक विश्लेषक इसे एक सुधार के रूप में देख रहे हैं जबकि एक वर्ग इसे पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के प्रभाव में कमी के नजरिये से आंक रहे हैं। तावड़े और बावनकुले को 2019 के विधानसभा चुनावों में टिकट तक नहीं दिया गया था। लेकिन उनकी नई नियुक्तियों के जरिये बीजेपी को जाति समीकरण साधने में मदद जरूर मिल सकती है।

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तावड़े मराठा समुदाय से हैं और बावनकुले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में तेली समुदाय से आते हैं। कई राजनीतिक विश्लेषक इसे एक तरह का कोर्स करेक्शन बता रहे हैं। इसके साथ ही ये फडणवीस के लिए एक तरह का संकेत भी है कि पार्टी उनके प्रभाव को नियंत्रण में रखना चाहती है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के हाल के फैसलों से संकेत मिलता है कि देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में अपनी ही पार्टी में अकेले और कमजोर पड़ रहे हैं, जिन्हें एक समय महाराष्ट्र बीजेपी का नया चेहरा कहा जाता था, जो टेक-सेवी थे और अगली पीढ़ी के हिंदुत्ववादी नेता थे और जिनमें राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की क्षमता थी। शिवसेना और भाजपा फिर से गठबंधन होगा इस बात की संभावना नहीं दिख रही है। जिसको लेकर पार्टी  स्पष्ट है और इसके लिए उसे 105 से 145 विधायकों की दूरी यानी बहुमत के आंकड़े के सफर को खुद ही तय करना होगा। जिसके लिए पार्टी में पुराने और नए चेहरों की संगठनात्मक ताकत की जरूरत है।

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तावड़े का 'धैर्य' रंग लाया

मुंबई के मराठी गढ़ गिरगांव में जन्मे तावड़े अपने कॉलेज के दिनों से ही आरएसएस और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं। अपने चार दशक लंबे राजनीतिक करियर के दौरान तावड़े ने एबीवीपी और बीजेपी में विभिन्न पदों पर काम किया है। जिसके जरिये उन्होंने कैडर निर्माण और संगठन को अपनी ताकत बना लिया है। एबीवीपी के भीतर तावड़े कार्यकर्ता से मुंबई सेंट्रल जोन के आयोजन सचिव और अंततः संगठन के अखिल भारतीय महासचिव के पद तक पहुंचे। 1995 में तावड़े ने महाराष्ट्र भाजपा के महासचिव के रूप में कार्यभार संभाला और 1999 में मुंबई भाजपा के अध्यक्ष बने। वह 2011 से 2014 तक महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता थे, और फिर मुंबई के बोरीवली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने। तावड़े फडणवीस के नेतृत्व वाली कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री भी रहे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान फडणवीस ने तावड़े को साइडलाइन किया हुआ था। तावड़े पहले शिक्षा मंत्री थे, फिर उनका कैबिनेट पोर्टफोलियो बदल कर छोटा कर दिया गया और फिर 2019 के विधानसभा चुनावों के लिए उन्हें टिकट भी नहीं मिला।

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नागपुर में बीजेपी को मजबूत कर सकते हैं बावनकुले

इसी तरह बावनकुले भी पूर्व में महाराष्ट्र के बिजली मंत्री रह चुके हैं और नागपुर क्षेत्र में एक मजबूत ओबीसी नेता के तौर पर दखल रखते हैं, जिन्हें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का करीबी माना जाता है। बावनकुले नागपुर के कैम्पटी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार के पूर्व विधायक हैं, जो 1990 के दशक में भाजपा में शामिल हुए और भाजपा की नागपुर जिला इकाई के महासचिव और अध्यक्ष और राज्य इकाई के सचिव जैसे विभिन्न पदों पर काम किया। बावनकुले को भी विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला था, परिणाम ये हुआ कि विदर्भ क्षेत्र में बीजेपी को कम से कम 6 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। इस साल की शुरुआत में जिला परिषद चुनावों में, भाजपा को नागपुर में हार का सामना करना पड़ा, 13 तालुकों की 16 में से केवल तीन सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने नौ पर जीत हासिल की।  विधानसभा चुनावों के दौरान तावड़े और बावनकुले को टिकट नहीं देने के फैसले को उस समय साहस भरा निर्णय करार दिया गया था, लेकिन विधानसभा क्षेत्रों में भ्रम की स्थिति बन गई थी और पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था। परिषदीय चुनाव के लिए बावनकुले के नामांकन को विदर्भ में तेली समुदाय के बीच बीजेपी द्वारा अपनी पकड़ को मजबूत करने के तौर पर देखा जा रहा है, जब महाराष्ट्र और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की छवि जातीय जनगणना के विरोधी की दिख रही है, साथ ही इसे फडणवीस के मुकाबले नितिन गडकरी को मजबूत करने के तौर पर भी देखा जा रहा है। जैसे ही बावनकुले ने सोमवार को अपना नामांकन दाखिल किया, भाजपा ने यह दिखाने की कोशिश की कि उसकी राज्य इकाई में सब कुछ ठीक है - उनके दाहिने ओर गडकरी खड़े थे और उनके बाईं ओर फडणवीस। 

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