Prabhasakshi NewsRoom: Operation Mahadev में मारे गये आतंकी का PoK में निकला जनाजा, शामिल होने आए Lashkar Commander को ग्रामीणों ने खदेड़ा

Tahir Habib
Source: X

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो और तस्वीरों के अनुसार, ताहिर हबीब के जनाज़े में गांव के बुजुर्ग एकत्र हुए थे। लेकिन यह धार्मिक अनुष्ठान उस समय विवाद का कारण बन गया जब स्थानीय लश्कर कमांडर रिज़वान हनीफ़ ने जबरन इसमें शामिल होने की कोशिश की।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में शामिल आतंकवादी ताहिर हबीब का जनाजा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में निकाला गया जिससे एक बार फिर साफ हो गया है कि 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या में पाकिस्तानी आतंकवादी ही शामिल थे। हम आपको याद दिला दें कि भारतीय सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन महादेव चलाते हुए लश्कर-ए-तैयबा के तीन कुख्यात आतंकवादियों को मार गिराया था। मारे गये आतंकवादियों में लश्कर का ए-श्रेणी का आतंकवादी ताहिर हबीब भी शामिल था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के रावलकोट स्थित खाई गाला गांव में उसका जनाज़ा-ग़ायब (गैर-हाज़िरी में जनाज़ा) आयोजित किया गया।

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो और तस्वीरों के अनुसार, ताहिर हबीब के जनाज़े में गांव के बुजुर्ग एकत्र हुए थे। लेकिन यह धार्मिक अनुष्ठान उस समय विवाद का कारण बन गया जब स्थानीय लश्कर कमांडर रिज़वान हनीफ़ ने जबरन इसमें शामिल होने की कोशिश की। बताया जा रहा है कि ताहिर हबीब का परिवार पहले ही लश्कर के सदस्यों को दूर रहने की चेतावनी दे चुका था, मगर हनीफ़ नहीं माना। इसके बाद माहौल बिगड़ गया।

इसे भी पढ़ें: 'ऑपरेशन सिंदूर' पर बवाल, Mani Shankar Aiyar बोले, थरूर की टीम पाकिस्तान को बेनकाब करने में नाकाम

सूत्रों के अनुसार, लश्कर के गुर्गों ने उपस्थित शोकाकुल लोगों को हथियार दिखाकर धमकाया, जिससे ग्रामीणों में गुस्सा फैल गया। खाई गाला के निवासियों ने आतंकवादियों की इस हरकत के खिलाफ सार्वजनिक बहिष्कार की योजना बनाई है। यह घटना बताती है कि PoK के लोग अब पाकिस्तान समर्थित आतंकी नेटवर्क से खुलकर नाराज़गी व्यक्त कर रहे हैं।

देखा जाये तो ताहिर हबीब की ग़ैर-हाज़िरी में जनाज़ा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह इस बात की दूसरी पुख्ता पुष्टि भी है कि पाकिस्तान सीधे तौर पर 22 अप्रैल के पहलगाम हमले में शामिल था। ताहिर की पृष्ठभूमि इस ओर इशारा करती है कि वह पहले इस्लामी जमीयत-ए-तुलबा (IJT) और स्टूडेंट लिबरेशन फ्रंट (SLF) से जुड़ा रहा, फिर पाकिस्तानी सेना में भर्ती हुआ और बाद में लश्कर-ए-तैयबा में सक्रिय हो गया।


ताहिर के जनजातीय समुदाय सादोज़ई पठान का इतिहास भी प्रतिरोध से जुड़ा रहा है। यह समुदाय 18वीं सदी में अफगानिस्तान से पलायन करके आया था और पूंछ विद्रोह में इसकी प्रमुख भूमिका रही थी। इसी वजह से खुफिया अभिलेखों में ताहिर को 'अफ़ग़ानी' उपनाम से भी जाना जाता था। ताहिर का नाम हमजा अफगानी भी था। हम आपको याद दिला दें कि ऑपरेशन महादेव के दौरान पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड मूसा और दो अन्य आतंकी जिबरान और ताहिर मारे गये थे।

हम आपको यह भी बता दें कि भारतीय सुरक्षा बलों की ओर से पहलगाम हमले के बाद चलाये गये ऑपरेशन सिंदूर का अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी असर दिखाने लगा है। लश्कर का एक कमांडर ग्रामीणों के आक्रोश के चलते भागने पर मजबूर हुआ, यह एक बड़ा संकेत है कि वहां के लोग अब आतंकी संगठनों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।

बहरहाल, ताहिर हबीब का जनाज़ा इस बात का प्रतीक है कि PoK के लोग पाकिस्तान की आतंकवाद-प्रायोजित नीतियों से उकता चुके हैं। ग्रामीणों द्वारा लश्कर-ए-तैयबा के खिलाफ खुलकर विरोध जताना इस क्षेत्र में बदलते जनमत को दर्शाता है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो यह न केवल पाकिस्तान के लिए एक गहरा झटका होगा, बल्कि भारतीय सुरक्षा बलों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर भी साबित हो सकता है।

हम आपको यह भी याद दिला दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चर्चा के दौरान देश को जानकारी दी थी कि तीनों आतंकवादियों के सिर में ही गोली मारी गयी थी। उन्होंने कहा था कि पहलगाम हमले के बाद हमें बहुत से पीड़ित परिवारों के तथा आम जनों के संदेश मिले थे कि जब भी इन आतंकवादियों को मारा जाये तो इनके सिर में ही गोली मारी जाये और ऐसा ही हुआ।

All the updates here:

अन्य न्यूज़