छत्तीसगढ़ चुनाव: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की 18 सीटों पर रहेगी नजर

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[email protected] । Oct 28 2018 12:51PM

2000 राज्य के गठन के बाद चूंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए अगले तीन वर्ष के लिए यहां भी अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही। 2003 में पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा विजयी रही।

रायपुर। छत्तीसगढ़ के आने वाले विधानसभा चुनाव में नक्सल प्रभावित बस्तर और राजनांदगांव क्षेत्र की 18 सीटों पर राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी जीत के दावे तो किए हैं, लेकिन लगातार बदलाव की साक्षी रही इन सीटों की जनता इस बार किस करवट बैठेगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा। इन सीटों के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजनांदगांव से मुख्यमंत्री रमन सिंह का चुनावी भविष्य दॉव पर है।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दक्षिण क्षेत्र बस्तर के सात जिलों बस्तर, कोडागांव, कांकेर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा तथा राजनांदगांव जिले की कुल 18 विधानसभा सीटों पर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा प्रत्याशी विजयी होते रहे हैं, लेकिन एक दो सीटें दोनो पार्टियों का परंपरागत गढ़ कही जा सकती हैं। जैसे डोंगरगढ़, नारायणपुर और जगदलपुर में भाजपा कभी नहीं हारी। इसी तरह कोंटा सीट से कांग्रेस कभी नहीं हारी है।

2000 राज्य के गठन के बाद चूंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए अगले तीन वर्ष के लिए यहां भी अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही। 2003 में पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा विजयी रही। इन नक्सल प्रभावित 18 सीटों में से 13 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की और कांग्रेस को शेष पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा। एनसीपी नौ सीटों पर तीसरे स्थान पर रही और इसने स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के वोट काटे।

वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में 18 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 15 सीटें मिलीं और कांग्रेस तीन सीटों पर सिमट गई। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और छह फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए। बसपा चार सीटों पर और भाकपा तीन सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। भाकपा दंतेवाड़ा में दूसरे स्थान पर रही और भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।

वर्ष 2013 में इन 18 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया और 12 सीटों पर कब्जा कर लिया। भाजपा छह सीटें ही जीत पाई। लेकिन भाजपा ने बस्तर और राजनांदगांव के मुकाबले मैदानी क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया और एक बार फिर सत्ता के गलियारों तक जा पहुंची। इस चुनाव में नोटा (इनमें से कोई नहीं) को तीन फीसदी से ज्यादा वोट मिलना चर्चा का विषय रहा। उपरोक्त 18 सीटों की बात करें तो इनमें आठ सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। भाकपा तीन सीटों पर तीसरे स्थान पर रही।

इन 18 विधानसभा सीटों में से राजनांदगांव सीट से मुख्यमंत्री रमन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं तथा उनके खिलाफ कांग्रेस से करूणा शुक्ला हैं। शुक्ला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं। इसी तरह बीजापुर सीट से वन मंत्री महेश गागड़ा चुनाव मैदान में है तथा कांग्रेस की ओर से विक्रम शाह मंडावी चुनाव लड़ेंगे। जबकि गठनबंधन की ओर से चंद्रैया सकनी उम्मीदवार हैं। बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ प्रत्रकार और राजनीतिक जानकार राजेंद्र वाजपेयी कहते हैं कि बस्तर क्षेत्र लगातार बदलाव का गवाह रहा है। इस बार कांग्रेस में जहां गुटबाजी हावी है, वहीं भाजपा से लोगों को शिकायत है कि उसने विकास केवल शहरों तक ही किया है और ग्रामीण इलाकों की अनदेखी की गई है।

राज्य के दोनों राजनीतिक दलों ने बस्तर और राजनांदगांव की सभी 18 सीटों पर जीत का दावा किया है। प्रदेश भाजपा के महामंत्री संतोष पांडेय कहते हैं कि इस बार चुनाव में पहले चरण की सभी 18 सीटों पर भाजपा जीत रही है। भाजपा को पहले भी अनुसूचित जनजाति का साथ मिला है। इस बार भी मिलेगा। दूसरी ओर कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी कहते हैं कि कांग्रेस सभी 18 सीटें जीतेगी। राजानांदगांव सीट में करूणा शुक्ला न केवल मुख्यमंत्री रमन सिंह को टक्कर देंगी बल्कि जीत भी दर्ज करेंगी।

इन तमाम दावों में कौन सा दावा तीर बनेगा और कौन सा तुक्का, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बहरहाल छत्तीसगढ़ में विधानससभा चुनाव के लिए दो चरणों में मतदान होगा। पहले चरण में 18 सीटों पर 12 नवंबर को तथा शेष 72 सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होगा। वोटों की गिनती 11 दिसंबर को होगी। फिलहाल राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 49 तथा कांग्रेस के पास 39 सीटें हैं। एक एक सीट बसपा और निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में है।

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