स्थायी कमीशन देने के लिए महिला अधिकारियों के अद्यतन एसीआर पर नजर डाले सेना: न्यायालय

Samyukt Kisan Morcha

शीर्ष अदालत लगभग छह महिला अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने दावा किया है कि उन्हें एक स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया है क्योंकि उनका मूल्यांकन एक दोषपूर्ण यूएसी प्रणाली के आधार पर किया गया था।

नयी दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सेना से महिला शॉर्ट सर्विस कमीशनअधिकारियों के मामले पर फिर से विचार करने को कहा जिन्हें इसलिए स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया था क्योंकि वे इकाई आकलन कार्ड (यूएसी) आधारित मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर मूल्यांकन के बाद 60 प्रतिशत अंक प्राप्त करने में विफल रही थीं।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने केंद्र और सेना की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन और वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालसुब्रमण्यम से कहा कि वे अधिकारियों की सेवा के पांचवें और दसवें वर्ष के आगे की अद्यतन वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) को ध्यान में रखें।

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शीर्ष अदालत लगभग छह महिला अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने दावा किया है कि उन्हें एक स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया है क्योंकि उनका मूल्यांकन एक दोषपूर्ण यूएसी प्रणाली के आधार पर किया गया था।

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि इकाई आकलन कार्ड (यूएसी) प्रणाली को अनदेखा करें, लेकिन कृपया अद्यतन किए गए एसीआर पर एक नज़र डालें। यदि उनका एसीआर उत्कृष्ट है, तो उन्हें हटाना सेना और राष्ट्र के लिए एक नुकसान होगा।’’ यूएसी प्रणाली 1999 से 2005 तक सेना में प्रचलित थी और 2005 में सेना द्वारा समाप्त कर दी गई थी।

इसे स्थायी कमीशन (पीसी) प्रदान करने के लिए एसीआर-आधारित मूल्यांकन प्रणाली से बदल दिया गया था। जैन ने कहा कि वह और वरिष्ठ अधिवक्ता बालासुब्रमण्यम प्रत्येक मामले को देखेंगे और उन्होंने संबंधित अधिकारियों से निर्देश लेने के लिए समय मांगा।

पीठ ने कहा, ‘‘शायद यह अधिकारियों का आखिरी समूह हो सकता है, जिन्हें स्थायी कमीशन से बाहर कर दिया गया है। हमें चीजों को ठीक करने और पूरे मुद्दे को समाप्त करने की जरूरत है।उनके मामले में देखें। यदि वे तब भी 60 प्रतिशत मानदंड को पार नहीं करती हैं, तो वे बाहर हैं लेकिन सभी पहलुओं पर एक नजर डालें। यदि एसीआर पर विचार करने से वे 60 प्रतिशत का आंकड़ा पार करती हैं, तो यूएसी में कुछ भी नहीं रहता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह यूएसी प्रणाली में खामी नहीं निकाल रही है और हर विभाग की अपनी मूल्यांकन प्रणाली होती है और जिस तरह से सेना ने इस मुद्दे को संभाला है वह उससे प्रभावित है।

सुनवाई के दौरान जैन ने कहा कि शीर्ष अदालत के अपने फैसले में जो कहा है उसका सेना ने पालन किया है कि उम्मीदवार के 60 फीसदी अंक होने चाहिए और इन महिला अधिकारियों के मामले में उन्हें 60 फीसदी मानदंड नहीं मिले हैं।

उन्होंने कहा कि यहां तक कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी उनकी याचिका को इस आधार पर स्वीकार करने से इनकार कर दिया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित 60 प्रतिशत मानदंड इन अधिकारियों द्वारा पूरे नहीं किए गए हैं।

कुछ महिला अधिकारियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा कि उनमें से अधिकांश ने 60 प्रतिशत मानदंड को पार नहीं किया है क्योंकि उनका मूल्यांकन दोषपूर्ण यूएसी प्रणाली द्वारा किया गया है और यदि सेना केवल उनके एसीआर को ध्यान में रखती है, तो वे 60 प्रतिशत प्रतिशत अंक को पार कर जाएंगी।

उन्होंने कहा कि जब सेना ने पहले की यूएसी प्रणाली को दोषपूर्ण पाया और उसकी जगह नई प्रणाली ला दी, तो वे दोषपूर्ण प्रणाली के आधार पर इन अधिकारियों का आकलन कैसे कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि वह एएसजी जैन और वरिष्ठ अधिवक्ता बालासुब्रमण्यम को 10 दिसंबर तक का समय दे रही है और वे इस मुद्दे पर फिर से विचार करेंगे।

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गत 12 नवंबर को उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत के पूर्व के आदेशों का अनुपालन नहीं करने को लेकर भारतीय थल सेना और उसके प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी थी।

इसके बाद रक्षा बल अपनी सभी योग्य महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने को राजी हो गया था।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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